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‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼
🚩 *"सनातन परिवार"* 🚩
*की प्रस्तुति*
🔴 *आज का प्रात: संदेश* 🔴
🚩 *" शारदीय नवरात्रि " पर विशेष* 🚩
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*सनातन धर्म ने नारी को सदैव सृष्टि का मूल माना है क्योंकि नारी के बिना सृष्टि की संकल्पना ही नहीं की जा सकती | एक नारी अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में कई रूप धारण करती है उनके इन स्वरूपों का अवलोकन करने के लिए नवरात्र की नौ देवियों का दर्शन एवं मनन करने की आवश्यकता है | जहाँ प्रथम तीन दिन में शैलपुत्री , ब्रह्मचारिणी एवं चन्द्रघण्टा के दिव्य स्वरूप का दर्शन होता है वहीं नवरात्र के चतुर्थ दिवस महामाया कूष्माण्डा का पूजन किया जाता है | "कूष्माण्डेति चतुर्थकम्" | कूष्माण्डा का अर्थ है :-- कुत्सितः ऊष्मा कूष्मा – त्रिविधतापयुतः संसारः, स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्याः स कूष्माण्डा – अर्थात् :- त्रिविध तापयुक्त संसार जिनके उदर में स्थित है वे देवी कूष्माण्डा कहलाती हैं | सृष्टि के सबसे ज्वलनशील सूर्य ग्रह के अंतस्थल में निवास करने वाली महामाया का नाम कूष्माण्डा है , जिसका अर्थ है कि :- जिनके स्मित हास्य से ब्रहाण्ड की उत्पत्ति हुई है वही है - "कूष्माण्डा" | ऐसा पुराणों का मानना है कि जब सृष्टि नहीं थी चारों ओर अंधकार व्याप्त था महामाया कूष्माण्डा ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी इसीलिए इनको आदि स्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है | प्रथम स्वरूप "शैलपुत्री" के बाद विकासक्रम में "ब्रह्मचारिणी" एवं "चन्द्रघण्टा" के बाद महामाया के चौथे स्वरूप "कूष्माण्डा" का पूजन करने का अर्थ यही है कि बिना कूष्माण्डा माँ के सृष्टि की कल्पना करना ही व्यर्थ है | क्योंकि बिना इनकी कृपा से प्रजनन नहीं हो सकता इसी विशेषता के कारण महामाया को जगतजननी कहा जाता है | अष्टभुजा धारी कूष्माण्डा माता के दाहिने प्रथम हाथ में कुंभ (घड़ा) है जिसे महामाया ने अपनी कोख से लगा रखा है , यह गर्भावस्था का प्रतीक है | यह सिंह पर सवार शांत मुद्रा में रहने वाली भक्तवत्सला हैं |*
*आज भी यदि लोग चाहें तो कूष्माण्डा माता का दर्शन कर सकते हैं | आवश्यकता है भावना की , विकृत मानसिकता से उबरने की | कूष्माण्डा का अर्थ हुआ जन्मदात्री | प्रत्येक नारी कन्यारूप में जन्म लेकर "शैलपुत्री" के रूप में जीवन प्रारम्भ करके विवाहोपरान्त गर्भधारण करके कूष्माण्डा माता के रूप में पूजनीय होती है | आज पुरुष समाज बड़े प्रेम से दुर्गापूजा महोत्सव में भागीदारी करता हुआ देखा जा सकता है परंतु घर में बैठी महालक्ष्मी का सम्मान नहीं कर पाता | विचार कीजिए कि यदि नारी गर्भ धारण न करे तो क्या परिवार या समाज वृद्धि कर सकता है ? परंतु आज पुरुष वर्ग स्वयं को श्रेष्ठ मानकर गर्भवती नारी का यथोचित सम्मान नहीं दे पाता है ! मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि जो लोग घर की नारी का सम्मान न करके उन्हें उपेक्षित या तिरस्कृत करते रहते हैं उनके द्वारा भगवती का पूजन किया जाय तो यह निश्चित है कि वह फलदायी नहीं हो सकता | नारी का सम्मान करने का अर्थ यह नहीं हुआ कि पुरुष अपनी पत्नी की सेवा करे ! नारी को उसका यथोचित स्थान एवं मान देना ही नारी का सम्मान है | यदि सूक्ष्मता से देखा जाय तो प्रत्येक नारी अपने जीवनकाल में भगवती के नौ रूपों को प्राप्त होती है | प्रत्येक मनुष्य को एक नारी कूष्माण्डा बनकर जन्म देती है | जीवन भर विभिन्न रूपों में पुरुष वर्ग को समर्पित रहने वाली नारी का दुर्भाग्य ही है वह पुरुष से हार जाती है | पुरुष वर्ग एक नारी पर शासन करके गौरवान्वित भले हो ले परंतु यह उसका गौरव नहीं कहा जा सकता | नारी सदैव से सम्माननीय रही है , नारी का सम्मान करना ही चाहिए |*
*एक नारी जब तक कूष्माण्डा (गर्भ धारण करने वाली) नहीं बनती तब तक सृष्टि का सृजन नहीं हो सकता ! अत: नारी सम्मान करते रहें |*
🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺
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सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना*🙏🏻🙏🏻🌹
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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