प्रभु श्री राम वनराधीश सुग्रीव द्वार विभीषण के आगमन की बात सुन कर सुग्रीव के मन की दशा जानने हेतु कहते हैं कि हे सुग्रीव तुम मेरे मित्र हो, मेरे हितैषी हो, अब तुम ही कुछ सलाह दो की क्या करना चाहिये ; सुग्रीव कहता है कि करोगे तो आप वो ही जो आपके मन भायेगा क्योंकि आप नर रूप में नारायण हो पर मेरे मन की बात मैं कह देता हूँ कि ये राक्षशों की छल कपट की नीति बहुत खतरनाक है, ये कामादि मनोरोगों से पीड़ित राक्षस जाने क्या कुटिल योजना बना कर भक्त रूप में आये हैं ये आप ही जान सकते हो प्रभु।
।। राम राम जी।।
##सुंदरकांड पाठ चौपाई📙🚩
