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#रामायण नल-नील द्वारा पुल बाँधना, श्री रामजी द्वारा श्री रामेश्वर की स्थापना सीताराम सीताराम सीताराम * परम शक्तिमान प्रभु श्री रामचन्द्र जी की असीम कृपा का आश्रय पाकर वानर और भालू विशालकाय पर्वतों और वृक्षों को खेल-खेल में ही उखाड़ लेते हैं और कंदुक की भाँति उछालकर नल-नील को थमा देते हैं, जो प्रभु के प्रताप का प्रत्यक्ष प्रमाण है। . * विश्वकर्मा के अंश नल और नील, प्रभु श्री रघुनाथ जी के नाम के प्रभाव से भारी-भरकम शिलाओं को समुद्र के जल पर ऐसे तैरा रहे हैं जैसे वे फूल हों, यह अद्भुत चमत्कार केवल राम नाम की महिमा के कारण ही संभव हो पा रहा है। . * समुद्र के वक्षस्थल पर सेतु की अत्यंत सुंदर और सुदृढ़ रचना को देखकर करुणा के सागर, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी का हृदय हर्षित हो उठा और वे मंद-मंद मुस्कुराते हुए अपनी वानर सेना के उत्साह और भक्ति की सराहना करने लगे। . * समुद्र तट की उस परम रमणीय और पवित्र भूमि को निहारकर त्रिभुवन पति श्री राम के मन में महादेव की स्थापना करने का संकल्प जागा, जिससे यह सिद्ध होता है कि प्रभु श्री हरि और भगवान शंकर में तात्विक रूप से कोई भेद नहीं है। . * वानरराज सुग्रीव के माध्यम से श्रेष्ठ मुनियों को आमंत्रित कर भगवान श्री राम ने विधि-विधान पूर्वक 'श्री रामेश्वर' शिवलिंग की स्थापना की और उनका पूजन करके यह जगजाहिर कर दिया कि शिवजी के समान उन्हें संसार में कोई दूसरा प्रिय नहीं है। . * रघुकुल भूषण श्री राम जी ने स्पष्ट शब्दों में यह घोषणा की कि जो व्यक्ति शिव से द्रोह रखकर मेरी भक्ति करने का दंभ भरता है, वह स्वप्न में भी मुझे प्राप्त नहीं कर सकता, क्योंकि शिव और राम एक दूसरे के हृदय में वास करते हैं। . * भगवान श्री रामचन्द्र जी ने कहा कि जो भी प्राणी श्रद्धापूर्वक श्री रामेश्वर भगवान के दर्शन करेगा, वह इस नश्वर शरीर को त्यागने के पश्चात मेरे परम धाम को प्राप्त होगा; यह वरदान प्रभु की अहैतुकी कृपा और शिवजी के प्रति उनके अनन्य प्रेम को दर्शाता है। . * पतितपावन गंगाजल को लाकर जो भक्त निष्काम भाव से श्री रामेश्वर महादेव पर चढ़ाएगा, उसे सायुज्य मुक्ति प्राप्त होगी, अर्थात वह जीव परमात्मा में लीन हो जाएगा, यह वचन स्वयं सत्यसंध प्रभु श्री रामचन्द्र जी ने अपने मुखारविंद से कहे हैं। . * जो जीव कपट और छल को त्यागकर श्री रामेश्वर जी की सेवा करेगा, भगवान शंकर उसे मेरी (श्री राम की) अविचल भक्ति प्रदान करेंगे, क्योंकि शंकर जी राम-भक्ति के दाता हैं और राम जी शिव-भक्ति के प्रेरक हैं। . * प्रभु श्री रामचन्द्र जी द्वारा निर्मित इस सेतु का जो दर्शन करेगा, वह बिना किसी परिश्रम के ही इस दुस्तर संसार रूपी सागर से तर जाएगा, क्योंकि यह सेतु केवल समुद्र पर नहीं, अपितु भवसागर पर भी विजय प्राप्त करने का साधन है। . * भगवान के मुख से ऐसे कल्याणकारी वचन सुनकर सभी श्रेष्ठ मुनियों और वानरों का हृदय आनंद से भर गया, और वे समझ गए कि श्री रघुनाथ जी शरणागत वत्सल हैं और अपने भक्तों पर सदैव स्नेह की वर्षा करते रहते हैं। . * चतुर शिल्पी नल और नील द्वारा बाँधा गया यह सेतु श्री राम जी की कीर्ति को तीनों लोकों में उज्ज्वल कर रहा है; जो पत्थर स्वभाव से डूबने वाले थे, वे प्रभु की कृपा से स्वयं तैरने वाले और दूसरों को तारने वाले जहाज बन गए। . * यह न तो समुद्र की कोई महिमा है, न ही पाषाणों का कोई गुण है, और न ही वानरों का कोई कौशल है, यह तो केवल और केवल श्री रघुवीर के प्रताप का चमत्कार है कि पत्थर भी जल पर तैर रहे हैं। . * ऐसे परम समर्थ और कृपालु श्री राम जी को त्यागकर जो मंदबुद्धि मनुष्य अन्य देवी-देवताओं की शरण में भटकते हैं, वे वास्तव में अपना अहित ही करते हैं, क्योंकि राम नाम ही कलयुग में एकमात्र आधार और तरने का उपाय है। . * नल और नील द्वारा रचित वह सेतु अत्यंत मजबूत और सुंदर बना, जिसे देखकर कृपानिधान प्रभु के मन को बहुत सुख मिला और उन्होंने अपनी वानर सेना को उस पर से लंका की ओर प्रस्थान करने का आदेश दिया। . * प्रभु की आज्ञा पाते ही वानर सेना गर्जना करती हुई चली, जिसका वर्णन करना असंभव है; उस समय वीर वानरों के जयघोष से आकाश और पाताल गूंज उठे, मानो साक्षात् काल ही रावण के विनाश के लिए उमड़ पड़ा हो। . * सेतुबंध के समीप खड़े होकर जब करुणा कंद भगवान श्री राम ने समुद्र की विशालता को निहारा, तो उनके दर्शन पाने की लालसा में समुद्र के भीतर छिपे हुए असंख्य जलचर प्राणी जल की सतह पर प्रकट हो गए। . * सौ-सौ योजन लंबे विशालकाय मगरमच्छ, घड़ियाल, मछलियाँ और सर्प प्रभु के अलौकिक रूप-सौंदर्य को निहारने के लिए व्याकुल होकर बाहर निकल आए, जो यह दर्शाता है कि जड़-चेतन सभी जीव श्री राम के दर्शन के प्यासे हैं। . * समुद्र के वे जीव, जो एक-दूसरे को खा जाते थे और एक-दूसरे से भयभीत रहते थे, वे सब भगवान श्री राम के मोहिनी रूप को देखकर अपना वैर-भाव और भय भूल गए और केवल प्रभु की छवि में मग्न हो गए। . * जलचरों की संख्या इतनी अधिक थी कि समुद्र का जल दिखाई ही नहीं दे रहा था, वे सब प्रभु श्री राम को एकटक निहार रहे थे और हटाने पर भी नहीं हटते थे, मानो उन्हें परम आनंद की प्राप्ति हो गई हो। . * प्रभु श्री रामचन्द्र जी की सेना की विशालता और वैभव का वर्णन करने में सरस्वती और शेषनाग भी समर्थ नहीं हैं; उस सेना के भार से कच्छप और शेषनाग की पीठ भी डगमगा रही थी, ऐसी प्रभु की लीला अपरंपार है। . * यह सेतु केवल लंका जाने का मार्ग नहीं था, अपितु यह धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश का प्रतीक था, जिसे स्वयं धर्मधुरंधर श्री राम ने अपनी देखरेख में बनवाया था ताकि सीता जी के उद्धार का कार्य संपन्न हो सके। . * भगवान शंकर की स्थापना करके श्री राम ने यह संदेश दिया कि विजय प्राप्ति के लिए शक्ति और भक्ति दोनों की आवश्यकता होती है, और शिव की आराधना के बिना राम का कार्य पूर्ण नहीं होता। . * श्री रामेश्वरम की महिमा गाते हुए प्रभु ने जगत को यह शिक्षा दी कि जो बड़प्पन पाकर भी विनम्र बना रहता है और अपने इष्ट का सम्मान करता है, वही सच्चा वीर और मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाने योग्य है। . * वानर भालुओं द्वारा पत्थरों पर 'श्री राम' लिखकर समुद्र में तैराना यह सिद्ध करता है कि नाम में नामी (जिसका नाम है) से भी अधिक शक्ति होती है, और राम नाम के सहारे असंभव भी संभव हो जाता है। . * प्रभु श्री राम की वह छवि अत्यंत मनमोहक है जब वे धनुष-बाण धारण किए हुए सेतु पर शोभायमान हो रहे थे, मानो नीले मेघों के बीच बिजली चमक रही हो और वे अपने भक्तों को अभयदान दे रहे हों। . * सेतु निर्माण के कार्य में गिलहरी जैसे छोटे प्राणी का सहयोग स्वीकार कर भगवान ने यह दर्शाया कि भक्ति में बड़ा या छोटा नहीं देखा जाता, अपितु भाव की प्रधानता होती है और प्रभु प्रेम के भूखे हैं। . * श्री राम जी की कृपा से वानर सेना में इतना बल आ गया था कि वे बड़े-बड़े पर्वतों को भी तिनके के समान उठा रहे थे, यह सब उस महाशक्ति का प्रभाव था जो कण-कण में व्याप्त रघुनंदन के रूप में उनके साथ थी। . * जब वानर सेना सेतु पार कर रही थी, तब उनकी गर्जना और पैरों की धमक से समुद्र भी कांप रहा था, किंतु प्रभु श्री राम की सौम्य उपस्थिति ने वातावरण को शांत और मंगलमय बना रखा था। . * भगवान श्री रामेश्वर की स्थापना करके प्रभु ने भारतवर्ष की एकता और अखंडता को एक आध्यात्मिक सूत्र में पिरो दिया, जहाँ उत्तर के राम दक्षिण के सागर तट पर शिव की पूजा करते हैं। . * जो भी मनुष्य इस पवित्र कथा को सुनता है या गाता है, कि कैसे भगवान ने पत्थरों को तैराकर सेतु बाँधा, उसके हृदय में अचल विश्वास और भक्ति का संचार होता है और उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। . * प्रभु का यह चरित्र अत्यंत पावन है, जहाँ वे ईश्वर होते हुए भी एक साधारण मनुष्य की भाँति लीला करते हैं और अपने भक्तों (वानरों) को बड़प्पन देकर स्वयं पीछे रहते हैं, यह उनकी महान उदारता है। . * सेतु के दर्शन मात्र से भवसागर तरने की बात कहकर श्री राम ने कलयुग के जीवों के लिए मोक्ष का मार्ग अत्यंत सुलभ कर दिया, जिससे यह सिद्ध होता है कि वे परम दयालु और कृपालु स्वामी हैं। . * भगवान श्री राम के चरणों में अनुराग रखने वाले वानर, भालू और निशाचर (विभीषण) सभी परम गति को प्राप्त हुए, क्योंकि प्रभु का स्पर्श और सानिध्य ही जीव का कल्याण करने के लिए पर्याप्त है। . * आकाश मार्ग से देवता, गंधर्व और सिद्धगण प्रभु की इस अद्भुत लीला को देखकर पुष्पों की वर्षा कर रहे थे और 'जय श्री राम' के उद्घोष से दसों दिशाओं को गुंजायमान कर रहे थे। . * भगवान की सेना में अनुशासन और उत्साह का ऐसा अद्भुत संगम था कि लाखों की संख्या में होते हुए भी वे सब एक ही लक्ष्य 'राम काज' के लिए समर्पित थे, जो प्रभु की नेतृत्व क्षमता का अनुपम उदाहरण है। . * श्री रामेश्वरम लिंग का अभिषेक करते समय प्रभु श्री राम के नेत्रों में जो प्रेम अश्रु थे, वे यह बताते हैं कि भक्त और भगवान का रिश्ता कितना गहरा और भावुक होता है, चाहे वह शिव और राम का ही क्यों न हो। . * इस सेतु बंधन लीला के माध्यम से भगवान ने पुरुषार्थ का महत्त्व समझाया कि ईश्वर कृपा के साथ-साथ कर्म करना भी आवश्यक है, तभी समुद्र जैसे विशाल अवरोध भी पार किए जा सकते हैं। . * अंततः प्रभु श्री राम अपनी अपार सेना के साथ समुद्र के पार उतर गए, और लंका की भूमि उनके चरण कमलों के स्पर्श से धन्य हो गई, जिससे यह निश्चित हो गया कि अब रावण के अत्याचारों का अंत निकट है। . * हम बारंबार उन रघुकुल नंदन, जानकी वल्लभ, कौशल्या नंदन भगवान श्री रामचन्द्र जी के चरणों में नमन करते हैं, जिनकी महिमा का गान वेद और पुराण भी "नेति-नेति" कहकर करते हैं और जिनका नाम ही जगत का आधार है। सीताराम सीताराम सीताराम
रामायण - CONSECRATION OF RAMESHNARAM THE DIVINE CONSTRUCTION SYMBOL OF UNITY THE GRAND MARCH CONSECRATION OF RAMESHNARAM THE DIVINE CONSTRUCTION SYMBOL OF UNITY THE GRAND MARCH - ShareChat

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