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#ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ #🙏🌹ਧੰਨ ਧੰਨ ਬਾਬਾ ਸ਼੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਮਹਾਰਾਜ 🙏🌹 #Dhan dhan baba Shri chand ji🙏🙏🙏🙏 #dhan dhan baba shri chand ji 🙏🙏🙏🙏🙏 #🙏❤️ਧੰਨ ਧੰਨ ਬਾਬਾ ਸ਼੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਮਹਾਰਾਜ❤️🙏
ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ - श्रीचंद्राय ३ँ॰ नमो भगवते जगद्गुरु श्री श्रीचंद्र भगवान् ओम् पारब्रहमणे नमः अस्टपदी - १२ पद सख्या ३ F नहि गुण  নিনন্ধ  कोइ, संत निंदक कै &s I Ha రేగ दुबिधा  निंदक मुख लिपता धूर I। संत निंदक अपराधिनि पूर,संत संत निंदक सुरपुर ते गिरे,संत निंदक कै लाला परे 11 निंदक  संत निंदक नहिं ईत न ऊत, संत कुल नीच कुपूत I। निंदा संत निंदक नित खाइ पुरीख,श्रीचंद्र मन 59 |/3// संत निंदक को कोई गुण नहीं होता है,संत निंदक को सदा सत्य- असत्य , लोक - परलोक दो की दुविधा बनी है अर्थात एक सही निर्णय रहती नहीं कर सकता है | संत निंदक सदा अपराधों से भरा रहता है,संत निंदक के मुख पर मिट्टी ही लिपटी रहती है अर्थात मुख पर निंदा की मिट्टी मली रहती है। निंदक  निंदक संत स्वर्ग लोक से गिर जाते हैं संत को अनं-्जल का अकाल पड़ा रहता है | संत निंदक ना तो इह लोक और ना ही परलोक का होता है,संत निंदक  के कुल में नीच कुपुत्र होते हैं | संत निंदक नित्य विष्टा को खाता ( भक्षण  निंदा  है, जगद्गुरु श्रीचंद्र भगवान् कहते हैं कि संत निंदक का ही इष्ट है करता ) নিনা ही मिठी लगती है I।३।। अर्थात उसे श्री श्रीचंद्र सिद्घांत सागर, अंक ४२ श्रीचंद्राय ३ँ॰ नमो भगवते जगद्गुरु श्री श्रीचंद्र भगवान् ओम् पारब्रहमणे नमः अस्टपदी - १२ पद सख्या ३ F नहि गुण  নিনন্ধ  कोइ, संत निंदक कै &s I Ha రేగ दुबिधा  निंदक मुख लिपता धूर I। संत निंदक अपराधिनि पूर,संत संत निंदक सुरपुर ते गिरे,संत निंदक कै लाला परे 11 निंदक  संत निंदक नहिं ईत न ऊत, संत कुल नीच कुपूत I। निंदा संत निंदक नित खाइ पुरीख,श्रीचंद्र मन 59 |/3// संत निंदक को कोई गुण नहीं होता है,संत निंदक को सदा सत्य- असत्य , लोक - परलोक दो की दुविधा बनी है अर्थात एक सही निर्णय रहती नहीं कर सकता है | संत निंदक सदा अपराधों से भरा रहता है,संत निंदक के मुख पर मिट्टी ही लिपटी रहती है अर्थात मुख पर निंदा की मिट्टी मली रहती है। निंदक  निंदक संत स्वर्ग लोक से गिर जाते हैं संत को अनं-्जल का अकाल पड़ा रहता है | संत निंदक ना तो इह लोक और ना ही परलोक का होता है,संत निंदक  के कुल में नीच कुपुत्र होते हैं | संत निंदक नित्य विष्टा को खाता ( भक्षण  निंदा  है, जगद्गुरु श्रीचंद्र भगवान् कहते हैं कि संत निंदक का ही इष्ट है करता ) নিনা ही मिठी लगती है I।३।। अर्थात उसे श्री श्रीचंद्र सिद्घांत सागर, अंक ४२ - ShareChat

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