𝑱𝑫𝑺 𝑩𝑯𝑼𝑳𝑳𝑨𝑹
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#Dhan dhan baba Shri chand ji🙏🙏🙏🙏 #dhan dhan baba shri chand ji 🙏🙏🙏🙏🙏 #🙏❤️ਧੰਨ ਧੰਨ ਬਾਬਾ ਸ਼੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਮਹਾਰਾਜ❤️🙏 #🙏🌹ਧੰਨ ਧੰਨ ਬਾਬਾ ਸ਼੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਮਹਾਰਾਜ 🙏🌹 #ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ
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ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ - उदासीन | दर्शन /1 ಖಠ] हरि बुलावा ओयाा दियाकबीरा" 336' ತತgಕೊಟಐಕ 6)80 न టశ్యకె ೫೫ೆಪರ್ಶಿಣಃ 83 हरिहर उदासीन | दर्शन /1 ಖಠ] हरि बुलावा ओयाा दियाकबीरा" 336' ತತgಕೊಟಐಕ 6)80 न టశ్యకె ೫೫ೆಪರ್ಶಿಣಃ 83 हरिहर - ShareChat
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Dhan dhan baba Shri chand ji🙏🙏🙏🙏 - श्रीचंद्राय ओँ० नमो भगवते जगद्गुरु श्री श्रीचंद्र भगवान् ओम् पारब्रहमणे नमः अस्टपदी - १३ पद सख्या १ F अविनासी प्रभु अगम अथाह,कीनो सरब विस्व परवाह ।। ,बहिओ जात भव सरिता वारि ।I সনম সতো ন্ধী ৪াং মহ্াহি,: अनिक नरन की देह बनाई,भिंन भिंन तिनि लसत लुनाई II रोम रोम की समता नाहि,नाक आंख सभ भिंन जनाहि I। गंड कपोल स्रवण कर पाद,श्रीचंद्र सभ छिंनी वाद II१Il अविनासी परमात्मा अगम्य और अथाह है,उस प्रभु ने ही विश्व । जन्म -मरण के किनारों की दो धाराओं में संपूर्ण प्रवाह बनाया है का संसार रूपी नदी के जल में बहता जा रहा है | उस प्रभु ने अनेक इंसानों की देह बनाई है और सृष्टि में सभी शरीरों को अलग ~ अलग रूप से प्रकाशित  किया है 4 जिसमें नाक-आंख सब भिन्न है,यहां तक कि रोम - रोम भी एक जैसे नहीं है | गला - गाल-कान - हाथ -पैर इत्यादि भी भिन्न- भिन्न ही कि॰इस हैं, जगद्गुरु श्रीचंद्र भगवान् कहते हैं विषय में सभी वाद-विवाद T೯aT೯ IIqIl श्री श्रीचंद्र सिद्धांत सागर, अंक ४४ श्रीचंद्राय ओँ० नमो भगवते जगद्गुरु श्री श्रीचंद्र भगवान् ओम् पारब्रहमणे नमः अस्टपदी - १३ पद सख्या १ F अविनासी प्रभु अगम अथाह,कीनो सरब विस्व परवाह ।। ,बहिओ जात भव सरिता वारि ।I সনম সতো ন্ধী ৪াং মহ্াহি,: अनिक नरन की देह बनाई,भिंन भिंन तिनि लसत लुनाई II रोम रोम की समता नाहि,नाक आंख सभ भिंन जनाहि I। गंड कपोल स्रवण कर पाद,श्रीचंद्र सभ छिंनी वाद II१Il अविनासी परमात्मा अगम्य और अथाह है,उस प्रभु ने ही विश्व । जन्म -मरण के किनारों की दो धाराओं में संपूर्ण प्रवाह बनाया है का संसार रूपी नदी के जल में बहता जा रहा है | उस प्रभु ने अनेक इंसानों की देह बनाई है और सृष्टि में सभी शरीरों को अलग ~ अलग रूप से प्रकाशित  किया है 4 जिसमें नाक-आंख सब भिन्न है,यहां तक कि रोम - रोम भी एक जैसे नहीं है | गला - गाल-कान - हाथ -पैर इत्यादि भी भिन्न- भिन्न ही कि॰इस हैं, जगद्गुरु श्रीचंद्र भगवान् कहते हैं विषय में सभी वाद-विवाद T೯aT೯ IIqIl श्री श्रीचंद्र सिद्धांत सागर, अंक ४४ - ShareChat
#🙏ਭਗਤੀ ਟੈਮਪਲੇਟ ਵੀਡੀਓ 📹 #🙏 ਭਗਵਤ ਗੀਤਾ
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#🙏❤️ਧੰਨ ਧੰਨ ਬਾਬਾ ਸ਼੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਮਹਾਰਾਜ❤️🙏 #dhan dhan baba shri chand ji 🙏🙏🙏🙏🙏 #Dhan dhan baba Shri chand ji🙏🙏🙏🙏 #🙏🌹ਧੰਨ ਧੰਨ ਬਾਬਾ ਸ਼੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਮਹਾਰਾਜ 🙏🌹 #ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ
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#🙏❤️ਧੰਨ ਧੰਨ ਬਾਬਾ ਸ਼੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਮਹਾਰਾਜ❤️🙏 #dhan dhan baba shri chand ji 🙏🙏🙏🙏🙏 #Dhan dhan baba Shri chand ji🙏🙏🙏🙏 #🙏🌹ਧੰਨ ਧੰਨ ਬਾਬਾ ਸ਼੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਮਹਾਰਾਜ 🙏🌹 #ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ
🙏❤️ਧੰਨ ਧੰਨ ਬਾਬਾ ਸ਼੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਮਹਾਰਾਜ❤️🙏 - उदासीन নংনি தித अधिक विलाप करत रसंगर सहाई मीतरन बहु रोइ Il श्रीचंद्र गुरु दिओ हिलाय दूखन घाणा छिनेक विलॉय || अर्थः वहाँ कोई साथी या मित्र सहायक नहीं होता] वै बहुत अधिक विलाप करते हुए रोते हैl आचार्य श्री श्रीर्चंद्र भगवान जी कहते है कि छ्ुर् दै जब्ा हिलाया Grje் எ 5ிதவழ் பூக &=தி =e 51 ugi ೯ೌ ಳ gಹಕ೯ ऊँ श्रीं गुरूश्रीश्री चद्राये नमः हरिहर उदासीन নংনি தித अधिक विलाप करत रसंगर सहाई मीतरन बहु रोइ Il श्रीचंद्र गुरु दिओ हिलाय दूखन घाणा छिनेक विलॉय || अर्थः वहाँ कोई साथी या मित्र सहायक नहीं होता] वै बहुत अधिक विलाप करते हुए रोते हैl आचार्य श्री श्रीर्चंद्र भगवान जी कहते है कि छ्ुर् दै जब्ा हिलाया Grje் எ 5ிதவழ் பூக &=தி =e 51 ugi ೯ೌ ಳ gಹಕ೯ ऊँ श्रीं गुरूश्रीश्री चद्राये नमः हरिहर - ShareChat
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ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ - श्रीचंद्राय ३ँ॰ नमो भगवते जगद्गुरु श्री श्रीचंद्र भगवान् ओम् पारब्रहमणे नमः अस्टपदी - १२ पद सख्या ३ F नहि गुण  নিনন্ধ  कोइ, संत निंदक कै &s I Ha రేగ दुबिधा  निंदक मुख लिपता धूर I। संत निंदक अपराधिनि पूर,संत संत निंदक सुरपुर ते गिरे,संत निंदक कै लाला परे 11 निंदक  संत निंदक नहिं ईत न ऊत, संत कुल नीच कुपूत I। निंदा संत निंदक नित खाइ पुरीख,श्रीचंद्र मन 59 |/3// संत निंदक को कोई गुण नहीं होता है,संत निंदक को सदा सत्य- असत्य , लोक - परलोक दो की दुविधा बनी है अर्थात एक सही निर्णय रहती नहीं कर सकता है | संत निंदक सदा अपराधों से भरा रहता है,संत निंदक के मुख पर मिट्टी ही लिपटी रहती है अर्थात मुख पर निंदा की मिट्टी मली रहती है। निंदक  निंदक संत स्वर्ग लोक से गिर जाते हैं संत को अनं-्जल का अकाल पड़ा रहता है | संत निंदक ना तो इह लोक और ना ही परलोक का होता है,संत निंदक  के कुल में नीच कुपुत्र होते हैं | संत निंदक नित्य विष्टा को खाता ( भक्षण  निंदा  है, जगद्गुरु श्रीचंद्र भगवान् कहते हैं कि संत निंदक का ही इष्ट है करता ) নিনা ही मिठी लगती है I।३।। अर्थात उसे श्री श्रीचंद्र सिद्घांत सागर, अंक ४२ श्रीचंद्राय ३ँ॰ नमो भगवते जगद्गुरु श्री श्रीचंद्र भगवान् ओम् पारब्रहमणे नमः अस्टपदी - १२ पद सख्या ३ F नहि गुण  নিনন্ধ  कोइ, संत निंदक कै &s I Ha రేగ दुबिधा  निंदक मुख लिपता धूर I। संत निंदक अपराधिनि पूर,संत संत निंदक सुरपुर ते गिरे,संत निंदक कै लाला परे 11 निंदक  संत निंदक नहिं ईत न ऊत, संत कुल नीच कुपूत I। निंदा संत निंदक नित खाइ पुरीख,श्रीचंद्र मन 59 |/3// संत निंदक को कोई गुण नहीं होता है,संत निंदक को सदा सत्य- असत्य , लोक - परलोक दो की दुविधा बनी है अर्थात एक सही निर्णय रहती नहीं कर सकता है | संत निंदक सदा अपराधों से भरा रहता है,संत निंदक के मुख पर मिट्टी ही लिपटी रहती है अर्थात मुख पर निंदा की मिट्टी मली रहती है। निंदक  निंदक संत स्वर्ग लोक से गिर जाते हैं संत को अनं-्जल का अकाल पड़ा रहता है | संत निंदक ना तो इह लोक और ना ही परलोक का होता है,संत निंदक  के कुल में नीच कुपुत्र होते हैं | संत निंदक नित्य विष्टा को खाता ( भक्षण  निंदा  है, जगद्गुरु श्रीचंद्र भगवान् कहते हैं कि संत निंदक का ही इष्ट है करता ) নিনা ही मिठी लगती है I।३।। अर्थात उसे श्री श्रीचंद्र सिद्घांत सागर, अंक ४२ - ShareChat
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ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ - $ उदासीन दर्शन कलियुजा घ्ौर अन्धकार ढैखकर 4R4}396R7{9 शकर रु्ख सदपशिव 2 हर अख्रमपर हरिहर $ उदासीन दर्शन कलियुजा घ्ौर अन्धकार ढैखकर 4R4}396R7{9 शकर रु्ख सदपशिव 2 हर अख्रमपर हरिहर - ShareChat
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