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तुलसी’ कबहुँ न त्यागिए, अपने कुल की रीति। लायक ही सों कीजिए, ब्याह, बैर अरु प्रीति॥ भावार्थ:- तुलसीदास कहते हैं कि अपने कुल की रीति को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। वैर, विवाह और प्रीति अपने समान व्यक्तियों से ही करना चाहिए। #📢5 अक्टूबर के अपडेट 📰 #🪔पापांकुशा एकादशी🌸 #❤️जीवन की सीख #🪔गणाधिप संकष्टी चतुर्थी🌺
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