विभीषण आकाश मार्ग से यही सब मनोरथ करते हुए आ रहा है और सागर के इस तट पर आकर जैसे ही उसने धरती पर कदम रखा और प्रभु श्री राम की शरणागति हेतु कदम बढ़ाया उसका हृदय प्रेम से लबालब हो गया, नयन प्रेमरस से सरोबार हो गए, रखवाले वानरों ने उसको देखा तो बड़े सोच में पड़ गए कि ये क्या विचित्र जीव है, शरीर से तो राक्षस है, मुखमुद्रा से भक्त नजर आता है, कदम यहां वहां पड़ रहे हैं जानो किसी (प्रेम के) नशे में हो, लगता है कि प्रभु के दूत हनुमान जी के जबाब में लंकापति रावण ने कोई विशिष्ट दूत भेजा है।
।। राम राम जी।।
##सुंदरकांड पाठ चौपाई📙🚩
