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स्मृति और विस्मृति
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*श्रीमद् भागवत गीता कहती है इस सृष्टि ड्रामा में सारा खेल ही स्मृति और विस्मृति का है।* परमात्मा ने अति सुंदर सृष्टि रची, जिसमें श्रेष्ठ दिव्य गुणों से भरपूर देवी देवताओं का राज्य था। यथा राजा तथा प्रजा। वहां पवित्रता, सुख, शांति और संपन्नता थी। धीरे-धीरे काल चक्र आगे बढ़ा। *पुनर्जन्म लेते-लेते गुणों वा कलाओं की डिग्री में कमी आने लगी।* आधा कल्प के बाद सतयुगी देवी देवताएं वाम मार्ग में चले गए। निर्विकारी देवता विकारों में गिर गए। अवगुणों की प्रविष्टता होने लगी। *आत्माएं विकारों रूपी रावण की गिरफ्त में आ गई।*
अभी संगम युग में परमात्मा ने आकर इन सब बातों की स्मृति दिलाई तो आत्माओं को बहुत वंडर लगने लगा; *हम क्या थे! भगवान ने हमें क्या बनाया था! विकारों के संग में आकर हमने अपनी कितनी दुर्गति कर ली!* हमारी अज्ञानता ने हमारी सुखों की दुनिया को दुखों की दुनिया में परिवर्तित कर दिया। इधर परमात्मा भी वंडर खाते हैं; *जिनको मैंने श्रेष्ठ देवी देवता बनाया था! विश्व का राज्य भाग्य दिया था! उन्होंने मेरी कितनी ग्लानि कर दी! मुझ ऊंचे से ऊंच परमधाम निवासी बाप को ही विस्मृत कर दिया!* मुझे पत्थर-ठिक्कर, कुत्ते-बिल्ली, कच्छ-मच्छ, कण-कण में कह दिया! *यह भी भक्तों का दोष नहीं उन की भावना थी।*
शास्त्रों में दिखाते हैं, हनुमान जी को उनकी शक्तियों की स्मृति दिलाई गई। *उन्हें 'जय श्री राम' का पासवर्ड मिला, तो उन्हें अपने अपार शक्ति की स्मृति हो आई।* उसी आधार पर उन्हें विजय मिली। ऐसे ही परमात्मा हम आत्माओं को स्मृति दिलाते हैं, *तुम कौन हो! किसकी संतान हो! जो परमात्मा पिता की शक्तियां हैं, वही तुम आत्माओं की भी शक्तियां हैं।* 'मनमनाभव' का पासवर्ड दिया। मन को परमात्मा में लगाने से आत्मा पर चढ़ी पांच विकारों की लेयर्स साफ होने लगती हैं। आत्मा में निहित शक्तियां इमर्ज हो जाती हैं। हिम्मत और उल्लास पैदा होता है, *"मैं ही था, मैं ही फिर से बन सकता हूं"* पुरुषार्थ को गति मिल जाती है, आत्मा मनुष्य से देवता बनने की जर्नी की ओर पुनः अग्रसर हो जाती है।

