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#❤️जीवन की सीख ##भगवद गीता🙏🕉️ #☝ मेरे विचार #🙏 प्रेरणादायक विचार #📖जीवन का लक्ष्य🤔
❤️जीवन की सीख - विषया   विनिवर्तन्ते निराहारस्य   देहिनः| दृष्ट्रा   निवर्तते ।। रसवर्जं   रसोउ्प्यस्य परं इन्द्रियोंके द्वारा विषयोँको ग्रहण न करनेवाले भी केवल विषय तो 8 J € निवृत्त पुरुषके परन्तु उनमें रहनेवाली आसक्ति निवृत्त नहीं होती  इस स्थितप्रज्ञ पुरुषको तो आसक्ति भी परमात्माका निवृत्त ೩ ೯ೆr ೯ Il u Il साक्षात्कार करके यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः II हे अर्जुन ! आसक्तिका नाश न होनेके कारण ये प्रमथनस्वभाववाली इन्द्रियाँ यत्न करते हुए बुद्धिमान् मनको भी बलात् हर लेती हैं Il ६० Il पुरुषके तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः | वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता II इसलिये साधकको चाहिये कि वह उन सम्पूर्ण इन्द्रियोंको वशमें करके समाहितचित्त हुआ मेरे परायण इन्द्रियाँ होकर ध्यानमें बैठे, क्योँंकि जिस पुरुषकी वशमें होती हैँ, उसीकी बुद्धि स्थिर हो जाती है II ६१ Il श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 2 गीता प्रेस , गोरखपुर से साभार विषया   विनिवर्तन्ते निराहारस्य   देहिनः| दृष्ट्रा   निवर्तते ।। रसवर्जं   रसोउ्प्यस्य परं इन्द्रियोंके द्वारा विषयोँको ग्रहण न करनेवाले भी केवल विषय तो 8 J € निवृत्त पुरुषके परन्तु उनमें रहनेवाली आसक्ति निवृत्त नहीं होती  इस स्थितप्रज्ञ पुरुषको तो आसक्ति भी परमात्माका निवृत्त ೩ ೯ೆr ೯ Il u Il साक्षात्कार करके यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः II हे अर्जुन ! आसक्तिका नाश न होनेके कारण ये प्रमथनस्वभाववाली इन्द्रियाँ यत्न करते हुए बुद्धिमान् मनको भी बलात् हर लेती हैं Il ६० Il पुरुषके तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः | वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता II इसलिये साधकको चाहिये कि वह उन सम्पूर्ण इन्द्रियोंको वशमें करके समाहितचित्त हुआ मेरे परायण इन्द्रियाँ होकर ध्यानमें बैठे, क्योँंकि जिस पुरुषकी वशमें होती हैँ, उसीकी बुद्धि स्थिर हो जाती है II ६१ Il श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 2 गीता प्रेस , गोरखपुर से साभार - ShareChat

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