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#भगवद गीता के सभी श्लोक ##भगवद गीता🙏🕉️ #श्रीमद भगवद गीता उपदेश 🙏🙏 #भगवद गीता अध्यन 📖 #🚩🔯श्रीमद भगवद गीता🔯🚩
भगवद गीता के सभी श्लोक - श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 2 अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्। तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि I। किन्तु यदि तू इस आत्माको सदा जन्मनेवाला तथा सदा मरनेवाला मानता हो, तो भी हे महाबाहो ! तू इस प्रकार शोक करनेको योग्य नहीं है Il २६ Il मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च। जातस्य हि gளr तस्मादपरिहार्येडर्थें त्वं  शोचितुमर्हसि Il ন क्योंकि इस मान्यताके अनुसार जन्मे हुएकी मृत्यु निश्चित है और मरे हुएका जन्म निश्चित है इससे भी इस बिना उपायवाले विषयमें तू शोक करनेको योग्य नहीं हैIl २७ ।l अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत । अव्यक्तनिधनान्येव परिदेवना I। तत्र T प्राणी जन्मसे पहले अप्रकट हे अर्जुन ! সম্পুত थे और मरनेके बाद भी अप्रकट हा जानेवाले हैँ, केवल बीचमें ही प्रकट हैं ; फिर ऐसी स्थितिमेँ क्या शोक करना है ? II २८ I। आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन- माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः शृणोति  आश्चर्यवच्चैनमन्यः वेद श्रुत्वाप्येनं न चैव कश्चित् II  कोई एक महापुरुष ही इस आत्माको आश्चर्यकी भाँति देखता है और वैसे ही दूसरा कोई महापुरुष ही इसके तत्त्वका आश्चर्यकी भाँति वर्णन करता अधिकारी   पुरुष ही  इसे कोई है নথা दूसरा आश्चर्यकी भाँति सुनता है और कोई-कोई तो सुनकर भी इसको नहीं जानता II २९ ।। गीता प्रेस , गोरखपुर से साभार श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 2 अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्। तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि I। किन्तु यदि तू इस आत्माको सदा जन्मनेवाला तथा सदा मरनेवाला मानता हो, तो भी हे महाबाहो ! तू इस प्रकार शोक करनेको योग्य नहीं है Il २६ Il मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च। जातस्य हि gளr तस्मादपरिहार्येडर्थें त्वं  शोचितुमर्हसि Il ন क्योंकि इस मान्यताके अनुसार जन्मे हुएकी मृत्यु निश्चित है और मरे हुएका जन्म निश्चित है इससे भी इस बिना उपायवाले विषयमें तू शोक करनेको योग्य नहीं हैIl २७ ।l अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत । अव्यक्तनिधनान्येव परिदेवना I। तत्र T प्राणी जन्मसे पहले अप्रकट हे अर्जुन ! সম্পুত थे और मरनेके बाद भी अप्रकट हा जानेवाले हैँ, केवल बीचमें ही प्रकट हैं ; फिर ऐसी स्थितिमेँ क्या शोक करना है ? II २८ I। आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन- माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः शृणोति  आश्चर्यवच्चैनमन्यः वेद श्रुत्वाप्येनं न चैव कश्चित् II  कोई एक महापुरुष ही इस आत्माको आश्चर्यकी भाँति देखता है और वैसे ही दूसरा कोई महापुरुष ही इसके तत्त्वका आश्चर्यकी भाँति वर्णन करता अधिकारी   पुरुष ही  इसे कोई है নথা दूसरा आश्चर्यकी भाँति सुनता है और कोई-कोई तो सुनकर भी इसको नहीं जानता II २९ ।। गीता प्रेस , गोरखपुर से साभार - ShareChat
#संविधान दिवस #★ संविधान दिवस शुभकामनाएं #संविधान दिवस #संविधान दिवस
संविधान दिवस - २६ नवम्ब्र राष्ट्रीय दुग्ध दिवस National Milk Day संविधान दिवस Constitution Day MN २६ नवम्ब्र राष्ट्रीय दुग्ध दिवस National Milk Day संविधान दिवस Constitution Day MN - ShareChat
#☝ मेरे विचार #📖जीवन का लक्ष्य🤔 #❤️जीवन की सीख #मित्र #🙏 प्रेरणादायक विचार
☝ मेरे विचार - 26reecc संसार में वैभव रखना , धनवान होना कोई बुराई नर्ही है। इससे নী নম্তভুন ম থুম কায हो सकते हैं। बुराई तो धन के अभिमान में डूब मोह जाने और उससे करने में है। ٨٨ 26reecc संसार में वैभव रखना , धनवान होना कोई बुराई नर्ही है। इससे নী নম্তভুন ম থুম কায हो सकते हैं। बुराई तो धन के अभिमान में डूब मोह जाने और उससे करने में है। ٨٨ - ShareChat
#🙏 प्रेरणादायक विचार #📖जीवन का लक्ष्य🤔 #मित्र #❤️जीवन की सीख #☝ मेरे विचार
🙏 प्रेरणादायक विचार - 25 499 दुःख तीन प्रकार के होते है ( १ ) दैविक (२ ) दैहिक ( ३ ) भौतिका दैविक दुःख जो मन को होते हैं जैसे चिन्ता॰ आशंका , क्रोधा , अपमान, शत्र्ता , बिछोह॰  शोक ಭೌ> रोग॰ आदि। दैहिक दुःख जैसे चोट॰ F आघ्ात , विष आदि के प्रभाव से होने वाले भौतिक दुःख जो अचानक अदृश्य कष्ट। మ प्रकार से आते हैं जैसे भूकम्प॰ दुर्मिक्ष॰ अतिवृष्टि॰ महामारी॰ युद्ध आदि। इन्ही तीन दुःखों की वेदना से मनुष्य ग्रसित  प्रकार के a 8 तीनों दुःख हमारे शारीरिक. यह मानसिक और सामाजिक कर्मो के फल हैं। शारीरिक पापों के फलस्वरूप दैहिक दुःख ॰ मानसिक पापों के परिणाम से दैविक दुःख और सामाजिक पापों के कारण भौतिक दुःख उत्पन्न होते हैं-शारत्र ٨٨٨ 25 499 दुःख तीन प्रकार के होते है ( १ ) दैविक (२ ) दैहिक ( ३ ) भौतिका दैविक दुःख जो मन को होते हैं जैसे चिन्ता॰ आशंका , क्रोधा , अपमान, शत्र्ता , बिछोह॰  शोक ಭೌ> रोग॰ आदि। दैहिक दुःख जैसे चोट॰ F आघ्ात , विष आदि के प्रभाव से होने वाले भौतिक दुःख जो अचानक अदृश्य कष्ट। మ प्रकार से आते हैं जैसे भूकम्प॰ दुर्मिक्ष॰ अतिवृष्टि॰ महामारी॰ युद्ध आदि। इन्ही तीन दुःखों की वेदना से मनुष्य ग्रसित  प्रकार के a 8 तीनों दुःख हमारे शारीरिक. यह मानसिक और सामाजिक कर्मो के फल हैं। शारीरिक पापों के फलस्वरूप दैहिक दुःख ॰ मानसिक पापों के परिणाम से दैविक दुःख और सामाजिक पापों के कारण भौतिक दुःख उत्पन्न होते हैं-शारत्र ٨٨٨ - ShareChat
#भगवद गीता के सभी श्लोक #श्रीमद भगवद गीता उपदेश 🙏🙏 ##भगवद गीता🙏🕉️ #🚩🔯श्रीमद भगवद गीता🔯🚩 #भगवद गीता अध्यन 📖
भगवद गीता के सभी श्लोक - श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 2 नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः | न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः I। इस आत्माको शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकता II २३ II अच्छेद्योउ्यमदाह्योउ्यमक्लेद्योउशोष्य एव च। नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोउ्यं सनातनः Il क्योँकि यह आत्मा अच्छेद्य है, यह आत्मा अदाह्य, अक्लेद्य और निःसन्देह अशोष्य है तथा नित्य, सर्वव्यापी, स्थिर 3/4(1, आत्मा 46 रहनेवाला और सनातन है Il २४ Il অন্সক্ষীৎমমমিনত্ীৎমমনিন্ধামীৎমমুম্সন | नानुशोचितुमर्हसि विदित्वैनं तस्मादेवं यह आत्मा अव्यक्त है, यह आत्मा अचिन्त्य है और यह आत्मा विकाररहित कहा जाता है। इससे हे अर्जुन ! इस आत्माको उपर्युक्त प्रकारसे जानकर तू शोक करनेको योग्य नहीं है अर्थात् तुझे शोक करना उचित नहीं है Il २५ Il गीता प्रेस , गोरखपुर से साभार श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 2 नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः | न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः I। इस आत्माको शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकता II २३ II अच्छेद्योउ्यमदाह्योउ्यमक्लेद्योउशोष्य एव च। नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोउ्यं सनातनः Il क्योँकि यह आत्मा अच्छेद्य है, यह आत्मा अदाह्य, अक्लेद्य और निःसन्देह अशोष्य है तथा नित्य, सर्वव्यापी, स्थिर 3/4(1, आत्मा 46 रहनेवाला और सनातन है Il २४ Il অন্সক্ষীৎমমমিনত্ীৎমমনিন্ধামীৎমমুম্সন | नानुशोचितुमर्हसि विदित्वैनं तस्मादेवं यह आत्मा अव्यक्त है, यह आत्मा अचिन्त्य है और यह आत्मा विकाररहित कहा जाता है। इससे हे अर्जुन ! इस आत्माको उपर्युक्त प्रकारसे जानकर तू शोक करनेको योग्य नहीं है अर्थात् तुझे शोक करना उचित नहीं है Il २५ Il गीता प्रेस , गोरखपुर से साभार - ShareChat
#☝ मेरे विचार #❤️जीवन की सीख #मित्र #🙏 प्रेरणादायक विचार #📖जीवन का लक्ष्य🤔
☝ मेरे विचार - 25 जिंदगी को बनाएँ नवम्बर कविता और गुनगुनाते रहिये, मुश्किलें हैं लाख पर मुस्कुरते रहिये॰, )0 25 जिंदगी को बनाएँ नवम्बर कविता और गुनगुनाते रहिये, मुश्किलें हैं लाख पर मुस्कुरते रहिये॰, )0 - ShareChat
#🙏 प्रेरणादायक विचार #❤️जीवन की सीख #📖जीवन का लक्ष्य🤔 #मित्र #☝ मेरे विचार
🙏 प्रेरणादायक विचार - 24 जब विचार प्रार्थना नवम्बर  और कर्म सब पॉजिटिव ৪ী জনে ঔন জিকী अपने आप पॉजिटिव ৪ জনৌ ৪ )0 24 जब विचार प्रार्थना नवम्बर  और कर्म सब पॉजिटिव ৪ী জনে ঔন জিকী अपने आप पॉजिटिव ৪ জনৌ ৪ )0 - ShareChat
#भगवद गीता के सभी श्लोक ##भगवद गीता🙏🕉️ #भगवद गीता #🚩🔯श्रीमद भगवद गीता🔯🚩 #भगवद गीता अध्यन 📖
भगवद गीता के सभी श्लोक - श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 2 जायते म्रियते वा कदाचि- न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः | अजो नित्यः शाश्वतोउ्यं पुराणो - हन्यमाने शरीरे ।। چ٠ 7 यह आत्मा किसी कालमें भी न तो जन्मता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होनेवाला ही है; क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है; शरीरके मारे जानेपर भी यह नहीं मारा जाता II २० |l वेदाविनाशिनं   नित्यं 7 एनमजमव्ययम्| कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम्I।  हे पृथापुत्र अर्जुन ! जो पुरुष इस आत्माको नाशरहित पुरुष कैसे नित्य, अजन्मा और अव्यय जानता है, वह किसको मरवाता है और कैसे किसको मारता है ? II २१ II वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि   गृह्णाति नरोउ्पराणि | तथा शरीराणि विहाय जीर्णा - न्यन्यानि संयाति नवानि देही ।। जैसे मनुष्य 7 वस्त्रोंको त्यागकर दूसरे पुराने वस्त्रोंको ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरोंको  नये शरीरोँको प्राप्त होता है Il २२ Il दूसरे त्यागकर गोरखपुर गीता प्रेस , से साभार श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 2 जायते म्रियते वा कदाचि- न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः | अजो नित्यः शाश्वतोउ्यं पुराणो - हन्यमाने शरीरे ।। چ٠ 7 यह आत्मा किसी कालमें भी न तो जन्मता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होनेवाला ही है; क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है; शरीरके मारे जानेपर भी यह नहीं मारा जाता II २० |l वेदाविनाशिनं   नित्यं 7 एनमजमव्ययम्| कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम्I।  हे पृथापुत्र अर्जुन ! जो पुरुष इस आत्माको नाशरहित पुरुष कैसे नित्य, अजन्मा और अव्यय जानता है, वह किसको मरवाता है और कैसे किसको मारता है ? II २१ II वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि   गृह्णाति नरोउ्पराणि | तथा शरीराणि विहाय जीर्णा - न्यन्यानि संयाति नवानि देही ।। जैसे मनुष्य 7 वस्त्रोंको त्यागकर दूसरे पुराने वस्त्रोंको ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरोंको  नये शरीरोँको प्राप्त होता है Il २२ Il दूसरे त्यागकर गोरखपुर गीता प्रेस , से साभार - ShareChat
#मित्र #❤️जीवन की सीख #☝ मेरे विचार #📖जीवन का लक्ष्य🤔 #🙏 प्रेरणादायक विचार
मित्र - 04499& अग्नि की तीव्रता आग ম থাাল নম্কী ষ্ী মকনী है। इसको ठण्डे जल की जरूरत है। इसी तरह क्रोधी का क्रोध भी भड़कीले शब्दों से नर्ही शीतल शब्दों के प्रयोग रे ही दूर हो सकता है। ٨٨ 04499& अग्नि की तीव्रता आग ম থাাল নম্কী ষ্ী মকনী है। इसको ठण्डे जल की जरूरत है। इसी तरह क्रोधी का क्रोध भी भड़कीले शब्दों से नर्ही शीतल शब्दों के प्रयोग रे ही दूर हो सकता है। ٨٨ - ShareChat
#🙏 प्रेरणादायक विचार #❤️जीवन की सीख #📖जीवन का लक्ष्य🤔 #☝ मेरे विचार #मित्र
🙏 प्रेरणादायक विचार - 23499~ आत्मा की पवित्रता मनुष्य के कार्यो पर निर्भर है और उसके कार्य संगति के ऊपर ٤٤٤ ٤١ ٨٨٨ 23499~ आत्मा की पवित्रता मनुष्य के कार्यो पर निर्भर है और उसके कार्य संगति के ऊपर ٤٤٤ ٤١ ٨٨٨ - ShareChat