#राधे कृष्ण
"वारी मेरे लटकन पग धरो छतियाँ।
कमलनैन बलि जाऊँ वदन की
शोभित न्हेंनी न्हेंनी द्वै दूध की दंतियाँ॥"
"लेत उठाय लगाय हियो भरि
प्रेम बिबस लागे दृग ढ़रकन।
लै चली पलना पौढ़ावन लाल को
अरकसाय पौढ़े सुंदरघन॥"
एक ही समय में... एक ही स्वरूप से... एक ही लीला द्वारा ...भिन्न-भिन्न भाववाले भक्तों को... अपने-अपने भावानुसार... भिन्न-भिन्न प्रकार से रसानुभूति कराके... उनका निज स्वरूप में निरोध सिद्ध करानेवाले ... रसराज-रासरसेश्वर- "रसो वै स:" पुष्टिपुरुषोत्तम के चरणकमलों में ...दंडवत् प्रणाम...!!!
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