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#मित्र #🙏 प्रेरणादायक विचार #☝ मेरे विचार #📖जीवन का लक्ष्य🤔 #❤️जीवन की सीख
मित्र - श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 2 कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः | यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेष्हं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ।। इसलिये कायरतारूप दोषसे उपहत हुए स्वभाववाला तथा धर्मके विषयमें मोहितचित्त हुआ मैँ आपसे पूछता  हूँ कि जो साधन निश्चित कल्याणकारक हो, वह मेरे लिये कहिये; क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ॰ इसलिये शिक्षा दीजिये I।७ Il आपके शरण हुए ತಳಹ न हि प्रपश्यामि ममापनुद्या- द्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् ( भूमावसपत्नमृद्ध- अवाप्य राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम्।I क्योंकि भूमिमें निष्कण्टक   धन- धान्यसम्पन्न राज्यको और देवताओंके स्वामीपनेको प्राप्त होकर भी मैँ उस उपायको नहीं देखता हूँ, जो मेरी इन्द्रियोंके सुखानेवाले शोकको दूर कर सके Il ८ II गीता प्रेस , गोरखपुर से साभार श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 2 कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः | यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेष्हं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ।। इसलिये कायरतारूप दोषसे उपहत हुए स्वभाववाला तथा धर्मके विषयमें मोहितचित्त हुआ मैँ आपसे पूछता  हूँ कि जो साधन निश्चित कल्याणकारक हो, वह मेरे लिये कहिये; क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ॰ इसलिये शिक्षा दीजिये I।७ Il आपके शरण हुए ತಳಹ न हि प्रपश्यामि ममापनुद्या- द्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् ( भूमावसपत्नमृद्ध- अवाप्य राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम्।I क्योंकि भूमिमें निष्कण्टक   धन- धान्यसम्पन्न राज्यको और देवताओंके स्वामीपनेको प्राप्त होकर भी मैँ उस उपायको नहीं देखता हूँ, जो मेरी इन्द्रियोंके सुखानेवाले शोकको दूर कर सके Il ८ II गीता प्रेस , गोरखपुर से साभार - ShareChat

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