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कजलियां, जिसे कुछ जगहों पर भुजरिया या भुजलिया भी कहते हैं, मुख्य रूप से मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में मनाया जाने वाला एक पारंपरिक पर्व है. यह त्यौहार सुख-समृद्धि, प्रकृति प्रेम और नई फसल की खुशहाली से जुड़ा है. कजलियां पर्व से जुड़ी खास बातें समय: यह पर्व रक्षाबंधन के ठीक अगले दिन मनाया जाता है. इसकी तैयारी नागपंचमी के आसपास शुरू हो जाती है. प्रक्रिया: नागपंचमी या उसके कुछ दिन बाद, बांस की छोटी टोकरियों या मिट्टी के बर्तनों में साफ मिट्टी डालकर उसमें गेहूं या जौ के दाने बोए जाते हैं. इन बीजों को प्रतिदिन पानी और खाद दी जाती है, जिससे ये धीरे-धीरे अंकुरित होकर हरे-भरे पौधे बन जाते हैं, जिन्हें कजलियां या जवारे कहते हैं. रक्षाबंधन के अगले दिन, इन कजलियों को सिर पर रखकर या हाथ में लेकर पारंपरिक गीत गाते हुए नदियों, तालाबों या कुओं में विसर्जित किया जाता है. पौराणिक महत्व: इस पर्व का संबंध आल्हा-ऊदल की वीर गाथाओं से भी माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि जब आल्हा की बहन चंदा मायके आई थीं, तब नगरवासियों ने कजलियों से उनका स्वागत किया था. एक अन्य कथा के अनुसार, महोबा के राजा परमाल की बेटी चंद्रावली को बचाने के लिए हुए युद्ध में मिली जीत का जश्न भी कजलियां विसर्जन के रूप में मनाया गया था. पर्व का महत्व कजलियां का पर्व सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह आपसी भाईचारे और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक भी है. इस दिन लोग एक-दूसरे को गले मिलकर शुभकामनाएं देते हैं. बड़े-बुजुर्ग, छोटों के कान में कजलियां लगाकर उन्हें सुख-समृद्धि और खुशहाल जीवन का आशीर्वाद देते हैं. इस तरह यह पर्व नई फसल के स्वागत के साथ-साथ रिश्तों में प्यार और सद्भाव बढ़ाने का भी एक जरिया है. #कजलियां #🗞️10 अगस्त के अपडेट 🔴 #🗞️🗞️Latest Hindi News🗞️🗞️ #🗞breaking news🗞 #aaj ki taaja khabar
कजलियां - १० अगस्त सामाजिक बंधुत्व और अपनत्व का प्रतीक, किसानों की समृद्धि के पर्व कजलियां की हार्दिक शुभकामनाएं (rbau Trends Crcalor १० अगस्त सामाजिक बंधुत्व और अपनत्व का प्रतीक, किसानों की समृद्धि के पर्व कजलियां की हार्दिक शुभकामनाएं (rbau Trends Crcalor - ShareChat

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