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#rista #royal family #Dil ka rista
rista - बिलकुल अनजान थी! 6 मेरा उससे रिश्ता बस इतना था कि हम एक पंसारी के ग्राहक थे नए मुहल्ले में। वह मेरे पहले से बैठी थी टॉफ़ी के मर्तबान से टिककर स्ट्रूल के राजसिंहासन पर। ೫೯೯ भी ज्यादा थकी दीखती मुझसे फिर भी वह हँसी! उस हँसी का न तर्क था न व्याकरण न सूत्र न अभिप्राय ! वह ब्रह्म की हँसी थी। उसने फिर हाथ भी बढ़ाया और मेरी शाल का सिरा उठाकर उसके सूत किए सीधे जो बस की किसी कील से लगकर की तरह सिकुड़ गए थे। भृकुटि पल भरको लगा, उसके उन झुके कंधों से मेरे भन्नाए हए सिर का बिलकुल अनजान थी! 6 मेरा उससे रिश्ता बस इतना था कि हम एक पंसारी के ग्राहक थे नए मुहल्ले में। वह मेरे पहले से बैठी थी टॉफ़ी के मर्तबान से टिककर स्ट्रूल के राजसिंहासन पर। ೫೯೯ भी ज्यादा थकी दीखती मुझसे फिर भी वह हँसी! उस हँसी का न तर्क था न व्याकरण न सूत्र न अभिप्राय ! वह ब्रह्म की हँसी थी। उसने फिर हाथ भी बढ़ाया और मेरी शाल का सिरा उठाकर उसके सूत किए सीधे जो बस की किसी कील से लगकर की तरह सिकुड़ गए थे। भृकुटि पल भरको लगा, उसके उन झुके कंधों से मेरे भन्नाए हए सिर का - ShareChat

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