#जय श्री राम
"न राज-मुकुट का मोह था,
न वन का कोई त्रास,
पिता के एक वचन हेतु,
स्वीकार किया वनवास।"
‼️प्रभु श्री राम का वनगमन रामायण का मात्र एक अध्याय नहीं, अपितु भारतीय संस्कृति का वह पृष्ठ है जहाँ से त्याग एवं समर्पण की परिभाषा आरम्भ होती है। यह घटना सिद्ध करती है कि सिंहासन पर बैठकर तो कोई भी राजा बन सकता है, किन्तु कांटों भरे पथ पर चलकर ही कोई पुरुषोत्तम बनता है। यह पारिवारिक कलह की कथा नहीं, अपितु रघुकुल की कीर्ति और वचन-पालन का सर्वोच्च अनुष्ठान था। ‼️
🌷अयोध्या की गलियां उत्सव के रंगों में सराबोर थीं। महाराज दशरथ अपने ज्येष्ठ पुत्र राम को युवराज पद सौंपने वाले थे। पूरी प्रजा के नेत्रों में भविष्य को लेकर सुखद स्वप्न तैर रहे थे। किन्तु, नियति ने समय के गर्भ में कुछ और ही छिपा रखा था।🌷
🍀"सजी थी पूरी अवधपुरी, मंगल गीत गाए जा रहे थे,क्या पता था अपनों के ही हाथों, षड्यंत्र रचे जा रहे थे।"🍀
🤱रानी कैकेयी की प्रिय दासी मंथरा की ईर्ष्या ने एक विनाशकारी भूमिका निभाई। मंथरा ने रानी के मन में यह भय बिठा दिया कि राम के राजा बनते ही उनका और भरत का अस्तित्व शून्य हो जाएगा। जो कैकेयी राम पर अपने प्राणों से अधिक स्नेह बरसाती थीं, उनकी बुद्धि पर कुमति का पर्दा पड़ गया। कोप भवन में जाकर उन्होंने महाराज दशरथ को पिछले देवासुर संग्राम के समय दिए गए उन दो वचनों की स्मृति दिलाई, जो आज अयोध्या के भाग्य का निर्णय करने वाले थे।🤱
"जिस जिह्वा पर सरस्वती,
कभी करती थीं विश्राम,
उसी ने आज मांग लिया,
अपने ही सुत का वन-धाम।"
🔥कैकेयी ने निष्ठुरता की पराकाष्ठा पार करते हुए दो वर मांगे - प्रथम, भरत का राज्याभिषेक और द्वितीय, राम को चौदह वर्षों का वनवास। महाराज दशरथ के लिए यह वज्रपात था। एक ओर पुत्र का मोह था, तो दूसरी ओर रघुकुल की वह शाश्वत परंपरा— "प्राण जाई पर वचन न जाई।" धर्मसंकट में फंसे पिता का हृदय विदीर्ण हो गया, किन्तु वे वचन से बंधे थे।🔥
"धर्म और स्नेह के रण में,
एक पिता का हृदय हार गया,
कुल की रीत निभाने में,
जीवन का सब सुख वार गया।"
🛐जब यह समाचार श्रीराम तक पहुँचा, तो उनकी प्रतिक्रिया ने ही उन्हें ईश्वरत्व के निकट खड़ा कर दिया। न क्रोध, न प्रश्न, न कोई प्रतिवाद। उन्होंने पिता के वचन और माता की आज्ञा को सिर- माथे लगाया। राजसी वस्त्रों का त्याग कर वल्कल धारण किए। उनका यह त्याग ही वह नींव थी जिस पर रामराज्य का भव्य भवन निर्मित होना था।🛐
"मुस्कुरा कर पी लिया,
जिसने विष का प्याला,
वही राम बना जग में, म
र्यादा का रखवाला।"
❣️श्रीराम के वनगमन में सीता और लक्ष्मण का त्याग भी अतुलनीय है। जनकसुता सीता ने महलों के सुख को तुच्छ मानकर पति के चरणों की छाया को चुना। उधर, भ्राता लक्ष्मण ने सेवाधर्म को सर्वोपरि रखते हुए नींद और चैन का त्याग कर दिया। अयोध्या आंसुओं में डूबी रह गई और तीन तपस्वी वन के कंटीले पथ पर अग्रसर हो गए।❣️
"महलों के सुख शैया को,
तिनके सा जिसने तोड़ा,
धन्य वो वैदेही जिसने,
कभी न पति का साथ छोड़ा।"
👩❤️👩लौकिक दृष्टि से यह एक दुखद घटना थी, किन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से यह अनिवार्य था। यदि राम वन न जाते, तो ऋषियों को अभय कौन देता? रावण के अहंकार का अंत कैसे होता? वनवास की अग्नि में तपकर ही राम का व्यक्तित्व निखरा। उन्होंने संसार को सिखाया कि विपत्ति में धैर्य और सत्ता के मद में विनम्रता कैसे रखी जाती है। प्रभु श्रीराम ने सिखाया कि कैसे सोने सा तपकर ही कुंदन, जग में अनमोल बनता है, कष्टों की भट्ठी में ही तपकर इंसान का चरित्र निखरता है।👨❤️👨
🙏जय जय सिया राम। 🙏


