#श्रीमहाभारतकथा-2️⃣2️⃣8️⃣
श्रीमहाभारतम्
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।। श्रीहरिः ।।
* श्रीगणेशाय नमः *
।। श्रीवेदव्यासाय नमः ।।
(सम्भवपर्व)
चतुसप्ततितमोऽध्यायः
शकुन्तला के पुत्र का जन्म, उसकी अद्भुत शक्ति, पुत्रसहित शकुन्तला का दुष्यन्त के यहाँ जाना, दुष्यन्त-शकुन्तला-संवाद, आकाशवाणी द्वारा शकुन्तला की शुद्धि का समर्थन और भरत का राज्याभिषेक...(दिन 228)
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पतिशुश्रूषणं पूर्व मनोवाक्कायचेष्टितैः । अनुज्ञाता मया पूर्व पूजयैतद् व्रतं तव ।। एतेनैव च वृत्तेन विशिष्टां लप्स्यसे श्रियम्।
सती स्त्रियोंके लिये सर्वप्रथम कर्तव्य यह है कि वे मन, वाणी, शरीर और चेष्टाओंद्वारा निरन्तर पतिकी सेवा करती रहें। मैंने पहले भी तुम्हें इसके लिये आदेश दिया है। तुम अपने इस व्रतका पालन करो। इस पतिव्रतोचित आचार-व्यवहारसे ही विशिष्ट शोभा प्राप्त कर सकोगी।
तस्माद् भद्रे प्रयातव्यं समीपं पौरवस्य ह ।। स्वयं नायाति मत्वा ते गतं कालं शुचिस्मिते । गत्वाऽऽराधय राजानं दुष्यन्तं हितकाम्यया ।।
'भद्रे! तुम्हें पूरुनन्दन दुष्यन्तके पास जाना चाहिये। वे स्वयं नहीं आ रहे हैं, ऐसा सोचकर तुमने बहुत-सा समय उनकी सेवासे दूर रहकर बिता दिया। शुचिस्मिते! अब तुम अपने हितकी इच्छासे स्वयं जाकर राजा दुष्यन्तकी आराधना करो।
दौष्यन्तिं यौवराज्यस्थं दृष्ट्वा प्रीतिमवाप्स्यसि । देवतानां गुरूणां च क्षत्रियाणां च भामिनि । भर्तृणां च विशेषेण हितं संगमनं सताम् ।। तस्मात् पुत्रि कुमारेण गन्तव्यं मत्प्रियेप्सया । प्रतिवाक्यं न दद्यास्त्वं शापिता मम पादयोः ।।
'वहाँ दुष्यन्तकुमार सर्वदमनको युवराज-पदपर प्रतिष्ठित देख तुम्हें बड़ी प्रसन्नता होगी। देवता, गुरु, क्षत्रिय, स्वामी तथा साधु पुरुष- इनका संग विशेष हितकर है। अतः बेटी! तुम्हें मेरा प्रिय करनेकी इच्छासे कुमारके साथ अवश्य अपने पतिके यहाँ जाना चाहिये। मैं अपने चरणोंकी शपथ दिलाकर कहता हूँ कि तुम मुझे मेरी इस आज्ञाके विपरीत कोई उत्तर न देना'।
वैशम्पायन उवाच
एवमुक्त्वा सुतां तत्र पौत्रं कण्वोऽभ्यभाषत । परिष्वज्य च बाहुभ्यां मूर्युपाघ्राय पौरवम् ।। वैशम्पायनजी कहते हैं- पुत्रीसे ऐसा कहकर महर्षि कण्वने उसके पुत्र भरतको दोनों बाँहोंसे पकड़कर अंकमें भर लिया और उसका मस्तक सूँघकर कहा।
कण्व उवाच
सोमवंशोद्भवो राजा दुष्यन्तो नाम विश्रुतः । तस्याग्रमहिषी चैषा तव माता शुचिव्रता ।। गन्तुकामा भर्तृवशं त्वया सह सुमध्यमा । गत्वाभिवाद्य राजानं यौवराज्यमवाप्स्यसि ।। स पिता तव राजेन्द्रस्तस्य त्वं वशगो भव । पितृपैतामहं राज्यमनुतिष्ठस्व भावतः ।।
कण्व बोले- वत्स! चन्द्रवंशमें दुष्यन्त नामसे प्रसिद्ध एक राजा हैं। पवित्र व्रतका पालन करनेवाली यह तुम्हारी माता उन्हींकी महारानी है। यह सुन्दरी तुम्हें साथ लेकर अब पतिकी सेवामें जाना चाहती है। तुम वहाँ जाकर राजाको प्रणाम करके युवराज-पद प्राप्त करोगे। वे महाराज दुष्यन्त ही तुम्हारे पिता हैं। तुम सदा उनकी आज्ञाके अधीन रहना और बाप-दादेके राज्यका प्रेमपूर्वक पालन करना।
शकुन्तले शृणुष्वेदं हितं पथ्यं च भामिनि । पतिव्रताभावगुणान् हित्वा साध्यं न किञ्चन ।। पतिव्रतानां देवा वै तुष्टाः सर्ववरप्रदाः । प्रसादं च करिष्यन्ति ह्यापदर्थे च भामिनि ।। पतिप्रसादात् पुण्यगतिं प्राप्नुवन्ति न चाशुभम् । तस्माद् गत्वा तु राजानमाराधय शुचिस्मिते ।।)
(फिर कण्व शकुन्तलासे बोले-) 'भामिनि ! शकुन्तले! यह मेरी हितकर एवं लाभप्रद बात सुनो। पतिव्रताभाव-सम्बन्धी गुणोंको छोड़कर तुम्हारे लिये और कोई वस्तु साध्य नहीं है। पतिव्रताओंपर सम्पूर्ण वरोंको देनेवाले देवतालोग भी संतुष्ट रहते हैं। भामिनि ! वे आपत्तिके निवारणके लिये अपने कृपा-प्रसादका भी परिचय देंगे। शुचिस्मिते ! पतिव्रता देवियाँ पतिके प्रसादसे पुण्यगतिको ही प्राप्त होती हैं; अशुभ गतिको नहीं। अतः तुम जाकर राजाकी आराधना करो'।
तस्य तद् बलमाज्ञाय कण्वः शिष्यानुवाच ह ।। १० ।।
शकुन्तलामिमां शीघ्रं सहपुत्रामितो गृहात् । भर्तुः प्रापयतागारं सर्वलक्षणपूजिताम् ।। ११ ।।
फिर उस बालकके बलको समझकर कण्वने अपने शिष्योंसे कहा- 'तुमलोग समस्त शुभ लक्षणोंसे सम्मानित मेरी पुत्री शकुन्तला और इसके पुत्रको शीघ्र ही इस घरसे ले जाकर पतिके घरमें पहुँचा दो ।। १०-११ ।।
नारीणां चिरवासो हि बान्धवेषु न रोचते । कीर्तिचारित्रधर्मघ्नस्तस्मान्नयत मा चिरम् ।। १२ ।।
'स्त्रियोंका अपने भाई-बन्धुओंके यहाँ अधिक दिनोंतक रहना अच्छा नहीं होता। वह उनकी कीर्ति, शील तथा पातिव्रत्य धर्मका नाश करनेवाला होता है। अतः इसे अविलम्ब पतिके घरमें पहुँचा दो' ।। १२ ।।
क्रमशः...
साभार~ पं देव शर्मा💐
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#महाभारत
रावण के गुप्तचरों को देखते ही सुग्रीव को श्री हनुमानजी पर लंका में हुए अत्याचार याद आ गए व वो बोले कि हे वीर वानर सैनिकों रावण ने अपने हनुमानजी की पूंछ जलाने की कोशिश की थी, अब ईंट का जवाब पत्थर से देने का वक्त आ गया है, दोनो के अंग भंग करके जीवित वापस लंका भेज दो, बस तुरन्त उनको रस्से से बांध कर वानर दल के चारों और पीटते हुए घुमाया और बोले ध्यान से प्रभु की सेना देख लो, जा कर अच्छे से बखान करना रावण से ताकि उसको अपनी औकात पता लग जाये।
।। राम राम जी।।
##सुंदरकांड पाठ चौपाई📙🚩
*#श्रीमद्वाल्मिकी_रामायण_पोस्ट_क्रमांक०३२*
*श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण*
*बालकाण्ड*
*सत्ताईसवाँ सर्ग*
*विश्वामित्रद्वारा श्रीरामको दिव्यास्त्र-दान*
ताटकावनमें वह रात बिताकर महायशस्वी विश्वामित्र हँसते हुए मीठे स्वरमें श्रीरामचन्द्रजीसे बोले॥१॥
'महायशस्वी राजकुमार! तुम्हारा कल्याण हो। ताटकावधके कारण मैं तुमपर बहुत संतुष्ट हूँ; अतः बड़ी प्रसन्नताके साथ तुम्हें सब प्रकारके अस्त्र दे रहा हूँ॥२॥
'इनके प्रभावसे तुम अपने शत्रुओंको—चाहे वे देवता, असुर, गन्धर्व अथवा नाग ही क्यों न हो, रणभूमिमें बलपूर्वक अपने अधीन करके उनपर विजय पा जाओगे॥३॥
'रघुनन्दन! तुम्हारा कल्याण हो। आज मैं तुम्हें वे सभी दिव्यास्त्र दे रहा हूँ। वीर! मैं तुमको दिव्य एवं महान् दण्डचक्र, धर्मचक्र, कालचक्र, विष्णुचक्र तथा अत्यन्त भयंकर ऐन्द्रचक्र दूँगा॥४-५॥
'नरश्रेष्ठ राघव! इन्द्रका वज्रास्त्र, शिवका श्रेष्ठ त्रिशूल तथा ब्रह्माजीका ब्रह्मशिर नामक अस्त्र भी दूँगा। महाबाहो! साथ ही तुम्हें ऐषीकास्त्र तथा परम उत्तम ब्रह्मास्त्र भी प्रदान करता हूँ॥६½॥
'ककुत्स्थकुलभूषण! इनके सिवा दो अत्यन्त उज्ज्वल और सुन्दर गदाएँ, जिनके नाम मोदकी और शिखरी हैं, मैं तुम्हें अर्पण करता हूँ। पुरुषसिंह राजकुमार राम! धर्मपाश, कालपाश और वरुणपाश भी बड़े उत्तम अस्त्र हैं। इन्हें भी आज तुम्हें अर्पित करता हूँ॥७-८॥
'रघुनन्दन! सूखी और गीली दो प्रकारकी अशनि तथा पिनाक एवं नारायणास्त्र भी तुम्हें दे रहा हूँ॥९½॥
'अग्निका प्रिय आग्नेय-अस्त्र, जो शिखरास्त्रके नामसे भी प्रसिद्ध हैं, तुम्हें अर्पण करता हूँ। अनघ! अस्त्रोंमें प्रधान जो वायव्यास्त्र है, वह भी तुम्हें दे रहा हूँ॥१०½॥
'ककुत्स्थकुलभूषण राघव! हयशिरा नामक अस्त्र, क्रौञ्च-अस्त्र तथा दो शक्तियोंको भी तुम्हें देता हूँ॥११½॥
'कङ्काल, घोर मूसल, कपाल तथा किङ्किणी आदि सब अस्त्र, जो राक्षसोंके वधमें उपयोगी होते हैं, तुम्हें दे रहा हूँ॥१२½॥
'महाबाहु राजकुमार! नन्दन नामसे प्रसिद्ध विद्याधरोंका महान् अस्त्र तथा उत्तम खड्ग भी तुम्हें अर्पित करता हूँ॥१३½॥
'रघुनन्दन! गन्धर्वोंका प्रिय सम्मोहन नामक अस्त्र, प्रस्वापन, प्रशमन तथा सौम्य-अस्त्र भी देता हूँ॥१४½॥
'महायशस्वी पुरुषसिंह राजकुमार! वर्षण, शोषण, संतापन, विलापन तथा कामदेवका प्रिय दुर्जय अस्त्र मादन, गन्धर्वोंका प्रिय मानवास्त्र तथा पिशाचोंका प्रिय मोहनास्त्र भी मुझसे ग्रहण करो॥१५-१७॥
'नरश्रेष्ठ राजपुत्र महाबाहु राम! तामस, महाबली सौमन, संवर्त, दुर्जय, मौसल, सत्य और मायामय उत्तम अस्त्र भी तुम्हें अर्पण करता हूँ। सूर्यदेवताका तेजःप्रभ नामक अस्त्र, जो शत्रुके तेजका नाश करनेवाला है, तुम्हें अर्पित करता हूँ॥१८-१९॥
'सोम देवताका शिशिर नामक अस्त्र, त्वष्टा (विश्वकर्मा) का अत्यन्त दारुण अस्त्र, भगदेवताका भी भयंकर अस्त्र तथा मनुका शीतेषु नामक अस्त्र भी तुम्हें देता हूँ॥२०॥
'महाबाहु राजकुमार श्रीराम! ये सभी अस्त्र इच्छानुसार रूप धारण करनेवाले, महान् बलसे सम्पन्न तथा परम उदार हैं। तुम शीघ्र ही इन्हें ग्रहण करो'॥२१॥
ऐसा कहकर मुनिवर विश्वामित्रजी उस समय स्नान आदिसे शुद्ध हो पूर्वाभिमुख होकर बैठ गये और अत्यन्त प्रसन्नताके साथ उन्होंने श्रीरामचन्द्रजीको उन सभी उत्तम अस्त्रोंका उपदेश दिया॥२२॥
जिन अस्त्रोंका पूर्णरूपसे संग्रह करना देवताओंके लिये भी दुर्लभ है, उन सबको विप्रवर विश्वामित्रजीने ही श्रीरामचन्द्रजीको समर्पित कर दिया॥२३॥
बुद्धिमान् विश्वामित्रजीने ज्यों ही जप आरम्भ किया त्यों ही वे सभी परम पूज्य दिव्यास्त्र स्वतः आकर श्रीरघुनाथजीके पास उपस्थित हो गये और अत्यन्त हर्षमें भरकर उस समय श्रीरामचन्द्रजीसे हाथ जोड़कर कहने लगे—'परम उदार रघुनन्दन! आपका कल्याण हो। हम सब आपके किङ्कर हैं। आप हमसे जो-जो सेवा लेना चाहेंगे, वह सब हम करनेको तैयार रहेंगे'॥२४-२५½॥
उन महान् प्रभावशाली अस्त्रोंके इस प्रकार कहनेपर श्रीरामचन्द्रजी मन-ही-मन बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें ग्रहण करनेके पश्चात् हाथसे उनका स्पर्श करके बोले—'आप सब मेरे मनमें निवास करें'॥२६-२७॥
तदनन्तर महातेजस्वी श्रीरामने प्रसन्नचित्त होकर महामुनि विश्वामित्रको प्रणाम किया और आगेकी यात्रा आरम्भ की॥२८॥
*इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्डमें सत्ताईसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥२७॥*
###श्रीमद्वाल्मिकी_रामायण२०२५
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‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼
🚩 *"सनातन परिवार"* 🚩
*की प्रस्तुति*
🔴 *आज का प्रात: संदेश* 🔴
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*इस संसार में जब से मानवी सृष्टि हुई तब से लेकर आज तक मनुष्य के साथ सुख एवं दुख जुड़े हुए हैं | समय समय पर इस विषय पर चर्चायें भी होती रही हैं कि सुखी कौन ? और दुखी कौन है ?? इस पर अनेक विद्वानों ने अपने मत दिये हैं | लोककवि घाघ (भड्डरी) ने भी अपने अनुभव के आधार पर इस विषय पर लिखा :- "बिन व्याही बिटिया मरै , ठाढै ऊँख बिकाय ! बिन मारे वैरी मरै , ई सुख कहाँ अमाय !!" अर्थात :- कुँवारी पुत्री का निधन हो जाय , खेत से ही गन्ना बिक जाय और बिना युद्ध किये शत्रु मर जाय तो यह संसार के सबसे बड़े सुख हैं ! वहीं दुख की व्याख्या करते हुए भड्डरी जी कहते हैं :- नसकट पनही बतकट जोय ! जौ पहिलौटी बिटिया होय !! पातर कृषी बौरहा भाय ! "घाघ कहैं दुख कहाँ अमाय !! अर्थात :- जूता जब पैर काटने लगे , पत्नी बात काटने लगे पहली संतान के रूप में पुत्री हो जाय , खेती ढंग की न हो और भाई अर्द्धपागल हो तो यह दुनिया का सबसे बड़ा दुख है | परंतु क्या इन लोकोत्तियों से सुख - दुख का आंकलन किया जा सकता है ? इन कहावतों को सुनकर यही कहा जा सकता है कि यह घाघ जी का अनुभव है जो उनको समाज में दिखा वह लिख दिया | परंतु इन अनुभव से अलग हटकर हमारे आध्यात्मिक गुरुओं ने सुखी मनुष्य की व्याख्या करते हुए लिखा है कि :- "अकिञ्चनस्य दान्तस्य शान्तस्य समचेतसः ! सदा सन्तुष्टमनसः सर्वाः सुखमयाः दिशः !! अर्थात :-अकिञ्चन, संयमी, शांत, प्रसन्न चित्तवाले, और संतोषी मनुष्य को सब दिशाएँ सुखमय है | यदि उपरोक्त तथ्य को माना जाय तो विचार किया जा सकता है कि आखिर दु:खी कौन है ??*
*आज समाज में कोई भी सुखी नहीं दिखाई पड़ता है | मानव मात्र को कुछ न कुछ दुख अवश्य घेरे रहता है | मनुष्य के दुख का कारण जहाँ एक ओर उसके अन्त:करण में व्याप्त हो चुकी ईर्ष्या - द्वेष की भावना प्रमुख है वहीं मनुष्य का संसार के प्रति मोह ही मनुष्य के दुख का सबसे बड़ा कारण बताते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने मानस में लिखा है :- "मोह सकल व्याधिन्ह कर मूला !" मनुष्य को सुख एवं दुख कभी भी किसी दूसरे के कारण नहीं मिलता बल्कि उसके द्रारा किये गये कर्म ही उसके सुख एवं दुख का कारण बन जाते हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यह बात कह सकता हूँ कि :- आज न तो कोई अकिञ्चन है और न ही किसी का भी चित्त ही शान्त है , और जब तक चित्त शान्त नहीं होगा तब तक न तो प्रसन्नता हो सकती है और न ही मनुष्य को संतोष प्राप्त हो सकता है | और जब तक मनुष्य को संतोष नहीं होगा तब तक उसे सुख की अनुभूति नहीं हो सकती | इसीलिए कहा गया है :- "संतोषम् परमं सुखम्" परंतु आज किसी को भी संतोष है ही नहीं और यही मनुष्य के दुख का सबसे बड़ा कारण है | इस विषय पर अनेकों पुस्तकें भी लिखी जा चुकी हैं परंतु यह ऐसा विषय है कि इस पर चर्चा अनवरत होती ही रहेगी |*
*सुख और दुख अपने हृदय में उठ रहे विचारों एवं उनके क्रियान्वयन के अनुसार मनुष्य को प्राप्त होते रहते हैं | इस पर गहनता से विचार करने की परम आवश्यकता है |*
🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺
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सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना*🙏🏻🙏🏻🌹
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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#☝अनमोल ज्ञान #🕉️सनातन धर्म🚩
#सत्य वचन
🪷 || सत्य का साथ दें || 🪷
सत्य के पक्ष में खड़ा रहना ही जीवन का सबसे बड़ा साहस भी है। जिम्मेदारियों से बचने वाला व्यक्ति ही असत्य का भाषण करता है। वह असत्य की आड़ में अपनी लापरवाही को छुपाने का प्रयास करता है। निश्चित ही असत्य हमें भीतर से कमजोर बना देता है। जो लोग असत्य भाषित करते हैं, उनका आत्मबल भी बड़ा कमजोर होता है। हमें सत्य का आश्रय लेकर एक जिम्मेदार व्यक्ति बनने का सतत प्रयास करना चाहिए।
उदासी में किये गये प्रत्येक कर्म में पूर्णता का अभाव पाया जाता है। हमें प्रयास करना चाहिए कि प्रत्येक कर्म को प्रसन्नता के साथ किया जाए। निष्कपट, निर्दोष और निर्वैर भाव ही हृदय की पवित्रता है। यदि जीवन में कोई बहुत बड़ी उपलब्धि है तो वह हमारे हृदय की पवित्रता है। पवित्र हृदय से किये गये कार्य भी पवित्र ही होते हैं। हमारी जिह्वा में सत्यता हो, चेहरे में प्रसन्नता हो और हृदय में पवित्रता हो तो इससे बढ़कर सुखद एवं श्रेष्ठ जीवन और नहीं हो सकता है।
जय श्री राधे कृष्ण
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मदद एक ऐसी घटना है।
अगर करें तो लोग भूल जाते हैं..
और ना करें तो लोग याद रखते हैं..😭👆🤔
जय श्री कृष्ण
#🙏सुविचार📿
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#राधे कृष्ण
रोज न आइये जो मन मोहन,
तौ यह नेक मतौ सुन लीजिये।
प्रान हमारे तुम्हारे अधीन,
तुम्हैं बिन देखे सु कैसे कै जीजिये॥
'ठाकुर लालन प्यारे सुनौ,
बिनती इतनी पै अहो चित दीजिये।
दूसरे, तीसरे, पांचयें,
आठयें तो भला आइबो कीजिये॥
ठाकुर जी....
राधे राधे राधे राधे राधे राधे....
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#राधे कृष्ण #राधे राधे #जय श्री कृष्ण
बिहरत लाल बिहारिन दोऊ श्रीजमुना के तीरें तीरें ।
अद्भुत अखंड मंडल भुव पर बर भांमिनि भुज भीरें भीरें ।।
तामें द्वै ससि श्रवत सुधा श्रम-जल-कन मुख छबि नीरें नीरें ।
उपजत किरन कपोल विमल हंसि लसि दसनावलि हीरें होरें ॥
कुंज गगन घन अलक बदरिया चलत परस्पर सीरें सोरें ।
लोचन चारु चकोर चितै हित पीवत अधीर न धीरे धीरें ॥
उमंगि मिलत अनुराग नवल वर कल कुंडल चल बीरें बीरें ।
श्रीबिहारीदास सुरझतन नहिं तन मन अरुझि अरुन पट पोरें पीरें ।॥
श्री बिहारिन देव जू की वाणी
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. निकुंज रस वाणी
#राधे कृष्ण
जब भी सखी,
अपने सतगुरु प्रियतम को स्मरण करे,
तो मन में यह विचार न लाए कि —
क्या गुरुदेव मेरी पुकार सुन रहे हैं या नहीं?
संदेह का स्थान न रहने दे,
बस अंतःकरण से प्रेमपूर्वक उन्हें पुकारे।
जब पुकार सच्चे भाव से उठेगी,
तब अनुभव होगा —
“हाँ, मेरे सतगुरु, मेरे युगल स्वामी,
मेरी पुकार सुन रहे हैं।”
और धीरे-धीरे सखी के मन में
उनकी उपस्थिति का अहसास भी प्रकट होने लगेगा,
जैसे निकुंज में सुगंध फैल जाए —
वैसे ही हृदय में उनका अनुभव भर जाए।
...
#राधे कृष्ण
हमारो धन (श्री) वृंदावन प्यारी।
*खरचत खात घटत नहिं कबहुं बाड़त छिन छिन अति अधिकारी।।*
*ताहि को अभिमान सदाई ताहि बल बस कुंजबिहारी।*
*श्रीहरीदास जू रसिक शिरोमणि प्राण प्राण मिलि कीनी यारी।।*
...





![#सुंदरकांड पाठ चौपाई📙🚩 - सुग्रीव सुनहु सब बानर ] 6 अंग भंग करि पठवहु निसिचर | | सुनि सुग्रीव बचन कपि धाए। बाँधि कटक चहु पास फिराए। l२ | [ सुग्रीव ने कहा- सब वानरों ! राक्षसों के अंग-भंग करके सुनो, दूतों को बाँधकर भेज दो। के वचन सुनकर वानर दौडे ! सुग्रीव " उन्होंने सेना के चारों ओर घुमाया| ।५२-२। | सदरकाण्द सुग्रीव सुनहु सब बानर ] 6 अंग भंग करि पठवहु निसिचर | | सुनि सुग्रीव बचन कपि धाए। बाँधि कटक चहु पास फिराए। l२ | [ सुग्रीव ने कहा- सब वानरों ! राक्षसों के अंग-भंग करके सुनो, दूतों को बाँधकर भेज दो। के वचन सुनकर वानर दौडे ! सुग्रीव " उन्होंने सेना के चारों ओर घुमाया| ।५२-२। | सदरकाण्द - ShareChat #सुंदरकांड पाठ चौपाई📙🚩 - सुग्रीव सुनहु सब बानर ] 6 अंग भंग करि पठवहु निसिचर | | सुनि सुग्रीव बचन कपि धाए। बाँधि कटक चहु पास फिराए। l२ | [ सुग्रीव ने कहा- सब वानरों ! राक्षसों के अंग-भंग करके सुनो, दूतों को बाँधकर भेज दो। के वचन सुनकर वानर दौडे ! सुग्रीव " उन्होंने सेना के चारों ओर घुमाया| ।५२-२। | सदरकाण्द सुग्रीव सुनहु सब बानर ] 6 अंग भंग करि पठवहु निसिचर | | सुनि सुग्रीव बचन कपि धाए। बाँधि कटक चहु पास फिराए। l२ | [ सुग्रीव ने कहा- सब वानरों ! राक्षसों के अंग-भंग करके सुनो, दूतों को बाँधकर भेज दो। के वचन सुनकर वानर दौडे ! सुग्रीव " उन्होंने सेना के चारों ओर घुमाया| ।५२-२। | सदरकाण्द - ShareChat](https://cdn4.sharechat.com/bd5223f_s1w/compressed_gm_40_img_373778_205d1efe_1763268371535_sc.jpg?tenant=sc&referrer=user-profile-service%2FrequestType50&f=535_sc.jpg)



![🙏सुविचार📿 - ३ँ हं हनुमते नमः एक प्रार्थना है प्रभु अहंकार का भाव न रखूँ, नहीं किसी पर क्रोध करूँ देख दूसरों की बढ़ती को, कभी न ईर्ष्या भाव रखूँ, भावना ऐसी मेरी, सत्य व्यवहार करूँ सरल EE बने जहाँ तक इस जीवन में, 3 EEE 5 E '9 औरों का उपकार करूँ। | ढिच ೯೯ शिहागसव > ५ ] % ٤ J 41 ] Iட LL LL LL IELL Lu L ३ँ हं हनुमते नमः एक प्रार्थना है प्रभु अहंकार का भाव न रखूँ, नहीं किसी पर क्रोध करूँ देख दूसरों की बढ़ती को, कभी न ईर्ष्या भाव रखूँ, भावना ऐसी मेरी, सत्य व्यवहार करूँ सरल EE बने जहाँ तक इस जीवन में, 3 EEE 5 E '9 औरों का उपकार करूँ। | ढिच ೯೯ शिहागसव > ५ ] % ٤ J 41 ] Iட LL LL LL IELL Lu L - ShareChat 🙏सुविचार📿 - ३ँ हं हनुमते नमः एक प्रार्थना है प्रभु अहंकार का भाव न रखूँ, नहीं किसी पर क्रोध करूँ देख दूसरों की बढ़ती को, कभी न ईर्ष्या भाव रखूँ, भावना ऐसी मेरी, सत्य व्यवहार करूँ सरल EE बने जहाँ तक इस जीवन में, 3 EEE 5 E '9 औरों का उपकार करूँ। | ढिच ೯೯ शिहागसव > ५ ] % ٤ J 41 ] Iட LL LL LL IELL Lu L ३ँ हं हनुमते नमः एक प्रार्थना है प्रभु अहंकार का भाव न रखूँ, नहीं किसी पर क्रोध करूँ देख दूसरों की बढ़ती को, कभी न ईर्ष्या भाव रखूँ, भावना ऐसी मेरी, सत्य व्यवहार करूँ सरल EE बने जहाँ तक इस जीवन में, 3 EEE 5 E '9 औरों का उपकार करूँ। | ढिच ೯೯ शिहागसव > ५ ] % ٤ J 41 ] Iட LL LL LL IELL Lu L - ShareChat](https://cdn4.sharechat.com/bd5223f_s1w/compressed_gm_40_img_664229_c3ddcb8_1763266583806_sc.jpg?tenant=sc&referrer=user-profile-service%2FrequestType50&f=806_sc.jpg)



