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#जय श्री कृष्ण 🌼 कृष्ण और भोजन का रहस्य 🌼 कौरव–सभा में जब श्रीकृष्ण पाण्डवों के राजदूत बनकर पहुँचे, सभा के उपरान्त दुर्योधन ने अत्यन्त अभिमान के साथ कहा— “महाराज! आपके लिए विशेष भोज की व्यवस्था की है। कृपया चलकर भोजन करें।” भगवान मुस्कुराए और बोले—“भैया, मैं भोजन नहीं करूँगा।” दुर्योधन आश्चर्य में पड़ गया—“प्रभु! क्यों नहीं करेंगे?” श्रीकृष्ण का उत्तर महाभारत का अनन्त सत्य है। “दुर्योधन! भोजन तीन कारणों से किया जाता है.... 1️⃣ भूख से, 2️⃣ भय से और 3️⃣ प्रेम से... भूख से मैं मरता नहीं, भय तुमसे मुझे है नहीं, और प्रेम तुममें है नहीं… इसलिए, मैं यहाँ भोजन नहीं करूँगा।” दुर्योधन स्तब्ध रह गया। उधर… प्रेम की पुकार श्रीकृष्ण को खींच लाई। बिना बुलाए ही भगवान विदुर-गृह पहुँच गए। जहाँ राजसी व्यंजन नहीं थे,लेकिन अनन्त प्रेम था। विदुरानी प्रेम में डूबी हुई प्रभु को केले खिलाने लगीं, प्रेम इतना गाढ़ा था कि कभी-कभी छिलके भी हाथ से गलती से भगवान को दे देती थीं…और कृष्ण उन्हें भी प्रेम से खा लेते थे। क्योंकि....... कृष्ण को भोजन नहीं, भाव चाहिए। राजसी थाल नहीं, प्रेम की थाली चाहिए। 🌼 निष्कर्ष 🌼 जहाँ प्रेम है, वहाँ कृष्ण स्वयं चलकर आते हैं। जहाँ अहंकार है, वहाँ वे ठहरते भी नहीं। जय श्री कृष्ण 👏🏻👏🏻
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