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#❤️जीवन की सीख #🙏गीता ज्ञान🛕 #☝ मेरे विचार #🙏 प्रेरणादायक विचार ##भगवद गीता🙏🕉️
❤️जीवन की सीख - कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः | लोकसङ्ग्रहमेवापि   सम्पश्यन्कर्तुमर्हसि II जनकादि ज्ञानीजन भी आसक्तिरहित कर्मद्वारा ही परम सिद्धिको प्राप्त हुए थे। इसलिये तथा लोकसंग्रहको देखते हुए भी तू कर्म करनेको ही योग्य है अर्थात् तुझे कर्म करना ही उचित है II २० Il श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो ಶಶಷಾೆ : লীন্ধমননুননন Il यत्प्रमाणं कुरुते स श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण करता है, 31?4 पुरुष भी वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं | वह जो कुछ प्रमाण कर देता है, समस्त   मनुष्यसमुदाय उसीके अनुसार बरतने लग जाता है * II २१ II  लोकेषु किञ्चन। fg न मे पार्थास्ति कर्तव्यं নাননামমনামন্ নন ಹ+fT Il a 7 हे अर्जुन! मुझे इन तीनों लोकोंमें न तो कुछ कर्तव्य है और न कोई भी प्राप्त करनेयोग्य वस्तु अप्राप्त है, तो भी मैं कर्ममें ही बरतता हूँ Il २२ यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः II मम क्योंकि हे पार्थ! यदि कदाचित् मैँ सावधान होकर कर्मोंमें न बरतूँ तो बड़ी हानि हो जाय; क्योंकि मनुष्य सब प्रकारसे मेरे ही मार्गका अनुसरण  करते हैंँ II २३ II यहाँ क्रियामें एकवचन है, परंतु * लोक  शब्द समुदायवाचक होनेसे भापामें   बहुवचनको क्रिया fa ٦٩ ٤١ प्रेस , गोरखपुर से साभार ளிள श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 3 कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः | लोकसङ्ग्रहमेवापि   सम्पश्यन्कर्तुमर्हसि II जनकादि ज्ञानीजन भी आसक्तिरहित कर्मद्वारा ही परम सिद्धिको प्राप्त हुए थे। इसलिये तथा लोकसंग्रहको देखते हुए भी तू कर्म करनेको ही योग्य है अर्थात् तुझे कर्म करना ही उचित है II २० Il श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो ಶಶಷಾೆ : লীন্ধমননুননন Il यत्प्रमाणं कुरुते स श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण करता है, 31?4 पुरुष भी वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं | वह जो कुछ प्रमाण कर देता है, समस्त   मनुष्यसमुदाय उसीके अनुसार बरतने लग जाता है * II २१ II  लोकेषु किञ्चन। fg न मे पार्थास्ति कर्तव्यं নাননামমনামন্ নন ಹ+fT Il a 7 हे अर्जुन! मुझे इन तीनों लोकोंमें न तो कुछ कर्तव्य है और न कोई भी प्राप्त करनेयोग्य वस्तु अप्राप्त है, तो भी मैं कर्ममें ही बरतता हूँ Il २२ यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः II मम क्योंकि हे पार्थ! यदि कदाचित् मैँ सावधान होकर कर्मोंमें न बरतूँ तो बड़ी हानि हो जाय; क्योंकि मनुष्य सब प्रकारसे मेरे ही मार्गका अनुसरण  करते हैंँ II २३ II यहाँ क्रियामें एकवचन है, परंतु * लोक  शब्द समुदायवाचक होनेसे भापामें   बहुवचनको क्रिया fa ٦٩ ٤١ प्रेस , गोरखपुर से साभार ளிள श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 3 - ShareChat