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#❤️जीवन की सीख #📖जीवन का लक्ष्य🤔 #🙏 प्रेरणादायक विचार ##भगवद गीता🙏🕉️ #भगवद गीता
❤️जीवन की सीख - तृतीयोधध्यायः अथ अर्जुन उवाच ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन। तत्किं कर्मणि घोरे माँ नियोजयसि केशव ।। अर्जुन बोले= हे जनार्दन ! यदि आपको कर्मकी अपेक्षा ज्ञान श्रेष्ठ मान्य है तो फिर हे केशव ! मुझे भयंकर कर्ममें क्यों लगाते हैं ? II१ Il व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धि मोहयसीव मे। तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोष्हमाज्ुयाम् I।  वचनोंसे मेरी बुद्धिको मानो आप मिले हुए-्से मोहित कर रहे हैं । इसलिये उस एक बातको निश्चित करे कहिये जिससे मै कल्याणको प्राप्त हो जाऊँIl २ Il স্পীপযনানুনান लोकेउस्मिन्द्विविधा ` নিম্ভ पुरा प्रोक्ता मयानघ। ज्ञानयोगेन साङ्ख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम् ।I  श्रीभगवान् बोले- हे निष्पाप ! इस लोकमें दो मेरेद्वारा प्रकारको   निष्ठा१ पहले कहीं गयी है। उनमेँसे सांख्ययोगियोंकी निष्ठा तो  ज्ञानयोगसे२ और योगियोँको निष्ठा कर्मयोगसेरै होती है Il ३ II अर्थात् साधनको परिपक्व अवस्था पराकाष्ठाका नाम f1 है। उत्पन्न हुए सम्पूर्ण गुण ही সামাম aాగగే   స गुणोंमें న ऐसे समझकर तथा मन, इन्द्रिय और शरीरद्वारा होनेवाली सम्पूर्ण  क्रियाओंमें कर्तापनके अभिमानसे रहित होकर सर्वव्यापी सच्चिदा- नन्दघन   परमात्मामें ज्ञानयोग एकीभावसे स्थित रहनेका नाम है, इसीको आदि नामोंसे कहा गया है। संन्यास सांख्ययोग फल और आसक्तिको त्यागकर भगवदाज्ञानुसार केवल ३ बुद्धिसे कर्म करनेका भगवदर्थ समत्व निष्काम कर्मयोग नाम है, इसीको कर्मयोग  तदर्थकर्म बुद्धियोग , समत्वयोग  मदर्थकर्म ' मत्कर्म ' आदि नामोंसे T1 ೯l कहा गीता प्रेस , गोरखपुर से साभार तृतीयोधध्यायः अथ अर्जुन उवाच ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन। तत्किं कर्मणि घोरे माँ नियोजयसि केशव ।। अर्जुन बोले= हे जनार्दन ! यदि आपको कर्मकी अपेक्षा ज्ञान श्रेष्ठ मान्य है तो फिर हे केशव ! मुझे भयंकर कर्ममें क्यों लगाते हैं ? II१ Il व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धि मोहयसीव मे। तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोष्हमाज्ुयाम् I।  वचनोंसे मेरी बुद्धिको मानो आप मिले हुए-्से मोहित कर रहे हैं । इसलिये उस एक बातको निश्चित करे कहिये जिससे मै कल्याणको प्राप्त हो जाऊँIl २ Il স্পীপযনানুনান लोकेउस्मिन्द्विविधा ` নিম্ভ पुरा प्रोक्ता मयानघ। ज्ञानयोगेन साङ्ख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम् ।I  श्रीभगवान् बोले- हे निष्पाप ! इस लोकमें दो मेरेद्वारा प्रकारको   निष्ठा१ पहले कहीं गयी है। उनमेँसे सांख्ययोगियोंकी निष्ठा तो  ज्ञानयोगसे२ और योगियोँको निष्ठा कर्मयोगसेरै होती है Il ३ II अर्थात् साधनको परिपक्व अवस्था पराकाष्ठाका नाम f1 है। उत्पन्न हुए सम्पूर्ण गुण ही সামাম aాగగే   స गुणोंमें న ऐसे समझकर तथा मन, इन्द्रिय और शरीरद्वारा होनेवाली सम्पूर्ण  क्रियाओंमें कर्तापनके अभिमानसे रहित होकर सर्वव्यापी सच्चिदा- नन्दघन   परमात्मामें ज्ञानयोग एकीभावसे स्थित रहनेका नाम है, इसीको आदि नामोंसे कहा गया है। संन्यास सांख्ययोग फल और आसक्तिको त्यागकर भगवदाज्ञानुसार केवल ३ बुद्धिसे कर्म करनेका भगवदर्थ समत्व निष्काम कर्मयोग नाम है, इसीको कर्मयोग  तदर्थकर्म बुद्धियोग , समत्वयोग  मदर्थकर्म ' मत्कर्म ' आदि नामोंसे T1 ೯l कहा गीता प्रेस , गोरखपुर से साभार - ShareChat