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जिस प्रकार दायॅं चलाने के समय अनाज को खूॅंदनेवाले पशु छोटी, बड़ी और मध्यम रस्सी से बंधकर क्रमशः निकट, दूर और मध्य में रहकर खंभे के चारों ओर मण्डल बांधकर घूमते रहते हैं, उसी प्रकार सारे नक्षत्र और ग्रहगण बाहर-भीतर के क्रम से इस कालचक्र में नियुक्त होकर ध्रुवलोक का ही आश्रय लेकर वायु की प्रेरणा से कल्प के अन्त तक घूमते रहते हैं। श्रीमद्भागवत-महापुराण/५/२३/३ #PuranikYatra #MBAPanditJi
MBAPanditJi - जिस प्रकार दायँ चलाने के समय अनाज को खूँदनेवाले पशु छोटी , बड़ी और मध्यम रस्सी से बंधकर क्रमशः निकट, दूर और मध्य में रहकर खंभे के चारों ओर मण्डल बांधकर रहते घूमते हैं, उसी प्रकार सारे नक्षत्र और ग्रहगण बाहर- नियुक्त होकर भीतर के क्रम से इस कालचक्र में ध्रुवलोक का ही आश्रय लेकर वायु की प्रेरणा से कल्प के अन्त तक रहते हैं। ঘুসন श्रीमद्भागवत ्महापुराण/ ५/२३/३ Follow us: Puranikyatra जिस प्रकार दायँ चलाने के समय अनाज को खूँदनेवाले पशु छोटी , बड़ी और मध्यम रस्सी से बंधकर क्रमशः निकट, दूर और मध्य में रहकर खंभे के चारों ओर मण्डल बांधकर रहते घूमते हैं, उसी प्रकार सारे नक्षत्र और ग्रहगण बाहर- नियुक्त होकर भीतर के क्रम से इस कालचक्र में ध्रुवलोक का ही आश्रय लेकर वायु की प्रेरणा से कल्प के अन्त तक रहते हैं। ঘুসন श्रीमद्भागवत ्महापुराण/ ५/२३/३ Follow us: Puranikyatra - ShareChat