#श्री हरि विष्णु
भगवान लक्ष्मी–नारायण : सनातन का दिव्य संदेश, धर्म का अद्भुत संतुलन
भगवान लक्ष्मी–नारायण सनातन धर्म में धन, धर्म, प्रेम, मर्यादा और संतुलन के सर्वोच्च प्रतीक माने जाते हैं। नारायण को ब्रह्मांड का पालनहार कहा गया है, जो पूरी सृष्टि का संचालन संतुलित नियमों से करते हैं। वहीं माता लक्ष्मी समृद्धि, सौभाग्य, तेज, वैभव और मंगलमय जीवन की अराध्या हैं। जब दोनों एक साथ पूजे जाते हैं तो घर में धन के साथ धर्म, वैभव के साथ विनम्रता और समृद्धि के साथ स्थिरता प्राप्त होती है।
सनातन ग्रंथ बताते हैं कि यदि धन धर्म से जुड़कर उपयोग हो तो मंगल फल देता है, और धन जब अहंकार में बदल जाए तो विनाश का कारण बनता है। इसलिए लक्ष्मी–नारायण की पूजा यह शिक्षा देती है कि—
धन आए भी तो मर्यादा के साथ, जाए भी तो संतुलन के साथ।
लक्ष्मी–नारायण की पूजा का आध्यात्म
लक्ष्मी–नारायण की आराधना मन को शुद्ध करती है और जीवन में सही दिशा प्रदान करती है। पूजा में केवल दीपक और धूप का महत्व नहीं, बल्कि श्रद्धा, विनम्रता और सेवा-भाव ही सच्चा प्रसाद माना गया है।
भगवान नारायण का संदेश है—
"कर्म कर, फल की इच्छा मत कर",
और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद कहता है—
"जहां परिश्रम, सत्य और शुद्ध आचरण है, वहीं मेरा वास है।"
लक्ष्मी–नारायण पूजा के लाभ
घर में शांति, सुख और सौहार्द बना रहता है।
व्यापार और आर्थिक जीवन में स्थिरता आती है।
परिवार में सद्भाव, प्रेम और एकता बढ़ती है।
नकारात्मक ऊर्जा दूर होकर सकारात्मकता बढ़ती है।
सरल उपाय
प्रतिदिन प्रातः या सायंकाल
‘ॐ लक्ष्मीनारायणाय नमः’
का 108 बार मंत्र-जप करें।
कमल फूल या तुलसी दल अर्पित करें।
मन में कृतज्ञता रखें और किसी ज़रूरतमंद की सहायता अवश्य करें।
जीवन का सार संदेश
लक्ष्मी–नारायण आराधना का मूल भाव केवल धन की प्राप्ति नहीं, बल्कि धन का सही उपयोग, संबंधों में प्रेम, और कर्म में सत्य स्थापित करना है।
जहां सत्य, प्रेम और स्वच्छ नीयत हो—वहीं लक्ष्मी और नारायण दोनों विराजते हैं।


