ShareChat
click to see wallet page
search
#❤️जीवन की सीख ##भगवद गीता🙏🕉️ #🙏गीता ज्ञान🛕 #📖जीवन का लक्ष्य🤔 #🙏 प्रेरणादायक विचार
❤️जीवन की सीख - सुखेषु   विगतस्पृहः दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते Il दुःखोंकी प्राप्ति होनेपर जिसके मनमें उद्वेग प्राप्तिमें जो सर्वथा निःस्पृह है नहीं होता, सुखोंकी तथा जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गये हैं, ऐसा मुनि स्थिरबुद्धि कहा जाता है II५६ Il यः सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम्। नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता II जो पुरुष सर्वत्र स्नेहरहित हुआ उस-्उस शुभ वस्तुको प्राप्त होकर न प्रसन्न होता है या अशुभ और न द्वेष करता है उसकी बुद्धि स्थिर है Il ५७ I। यदा संहरते चायं कूर्मोउङ्गानीव सर्वशः इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता II और कछुवा सब ओरसे अपने अंगोंको जैसे समेट लेता है, वैसे ही जब यह पुरुष इन्द्रियोंके विषयोंसे इन्द्रियोंको सब प्रकारसे हटा लेता है, तब उसकी बुद्धि स्थिर है ( ऐसा समझना चाहिये ) II ५८ II श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 2 गीता प्रेस , गोरखपुर से साभार सुखेषु   विगतस्पृहः दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते Il दुःखोंकी प्राप्ति होनेपर जिसके मनमें उद्वेग प्राप्तिमें जो सर्वथा निःस्पृह है नहीं होता, सुखोंकी तथा जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गये हैं, ऐसा मुनि स्थिरबुद्धि कहा जाता है II५६ Il यः सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम्। नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता II जो पुरुष सर्वत्र स्नेहरहित हुआ उस-्उस शुभ वस्तुको प्राप्त होकर न प्रसन्न होता है या अशुभ और न द्वेष करता है उसकी बुद्धि स्थिर है Il ५७ I। यदा संहरते चायं कूर्मोउङ्गानीव सर्वशः इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता II और कछुवा सब ओरसे अपने अंगोंको जैसे समेट लेता है, वैसे ही जब यह पुरुष इन्द्रियोंके विषयोंसे इन्द्रियोंको सब प्रकारसे हटा लेता है, तब उसकी बुद्धि स्थिर है ( ऐसा समझना चाहिये ) II ५८ II श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 2 गीता प्रेस , गोरखपुर से साभार - ShareChat