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स्वामी विवेकानंद - 'जिस प्रकार मकड़ी अपने भीतर से ही जाल का विस्तार करतीं है, और फिर स्वयं उसे अपने भीतर समेट लेती है, उसी ईश्वर इस जगत्प्रपंच का विस्तार करता है, और फिर प्रकार उसे अपने भीतर समेट लेता है । स्वामी विवेकानन्द {নিমা: ৩ देववाणी ५ अगस्त , सोमवार} 3ڈ 334[T-H Elnar S/zy FoLLoWUS (e 'TIIITICOTFISTIL TIIIITI Du TT 'जिस प्रकार मकड़ी अपने भीतर से ही जाल का विस्तार करतीं है, और फिर स्वयं उसे अपने भीतर समेट लेती है, उसी ईश्वर इस जगत्प्रपंच का विस्तार करता है, और फिर प्रकार उसे अपने भीतर समेट लेता है । स्वामी विवेकानन्द {নিমা: ৩ देववाणी ५ अगस्त , सोमवार} 3ڈ 334[T-H Elnar S/zy FoLLoWUS (e 'TIIITICOTFISTIL TIIIITI Du TT - ShareChat