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. #🪔शरद पूर्णिमा🌕 जबहिं बन मुरली स्रवन परी। चकित भईं गोप कन्या सब, काम-धाम बिसरीं। कुल मर्जाद बेद की आज्ञा, नैंकुहूँ नहीं डरीं। स्याम-सिंधु, सरिता- ललना-गन, जल की ढरनि ढरीं। अँग-मरदन करिबे कौं लागीं, उबटन तेल धरी। जो जिहिं भाँति चली सो तैसैंहिं, निसि बन कौं जु खरी। सुत पति-नेह, भवन-जन-संका, लज्जा नाहिं करी। सूरदास-प्रभु मन हरि लीन्हौ, नागर ..
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