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##भगवद गीता🙏🕉️ #📖जीवन का लक्ष्य🤔 #🙏 प्रेरणादायक विचार #❤️जीवन की सीख #☝ मेरे विचार
#भगवद गीता🙏🕉️ - बुद्धियुक्तो जहातीह उभे   सुकृतदुष्कृते। कर्मसु 7 तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कौशलम्।। समबुद्धियुक्त पुरुष पुण्य और पाप दोनोंको लोकमें त्याग देता है अर्थात् उनसे मुक्त हो इसी जाता है। इससे तू समत्वरूप योगमें लग जा; यह समत्वरूप योग ही कर्मोंमें कुशलता है अर्थात् कर्मबन्धनसे 3٦74 ٤ ١١ ٦٥ ١١ छूटनेका कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः | जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम् II क्योंकि समबुद्धिसे युक्त ज्ञानीजन कर्मोंसे उत्पन्न होनेवाले फलको त्यागकर जन्मरूप बन्धनसे मुक्त हा निर्विकार परमपदको प्राप्त हो जाते हैं Il ५१ Il यदा ते मोहकलिलं बुद्धि्व्यतितरिष्यति। तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रूतस्य च।। जिस कालमें तेरी बुद्धि मोहरूप दलदलको भलीभाँति पार कर जायगी, उस समय तू सुने हुए और सुननेमें आनेवाले इस लोक और परलोकसम्बन्धी सभी भोगोंसे वैराग्यको प्राप्त हो जायगा Il ५२ II श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 2 गीता प्रेस , गोरखपुर से साभार बुद्धियुक्तो जहातीह उभे   सुकृतदुष्कृते। कर्मसु 7 तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कौशलम्।। समबुद्धियुक्त पुरुष पुण्य और पाप दोनोंको लोकमें त्याग देता है अर्थात् उनसे मुक्त हो इसी जाता है। इससे तू समत्वरूप योगमें लग जा; यह समत्वरूप योग ही कर्मोंमें कुशलता है अर्थात् कर्मबन्धनसे 3٦74 ٤ ١١ ٦٥ ١١ छूटनेका कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः | जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम् II क्योंकि समबुद्धिसे युक्त ज्ञानीजन कर्मोंसे उत्पन्न होनेवाले फलको त्यागकर जन्मरूप बन्धनसे मुक्त हा निर्विकार परमपदको प्राप्त हो जाते हैं Il ५१ Il यदा ते मोहकलिलं बुद्धि्व्यतितरिष्यति। तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रूतस्य च।। जिस कालमें तेरी बुद्धि मोहरूप दलदलको भलीभाँति पार कर जायगी, उस समय तू सुने हुए और सुननेमें आनेवाले इस लोक और परलोकसम्बन्धी सभी भोगोंसे वैराग्यको प्राप्त हो जायगा Il ५२ II श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 2 गीता प्रेस , गोरखपुर से साभार - ShareChat