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#श्रीमद् भगवद गीता #श्रीमद भगवद गीता उपदेश 🙏🙏 ##भगवद गीता🙏🕉️ #भगवद गीता #भगवद गीता सार
श्रीमद् भगवद गीता - अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्। यद्राज्यसुखलोभेन 8் TgaగT: Il हा ! शोक ! हमलोग बुद्धिमान् होकर भी महान् पाप करनेको तैयार हो गये हैं, जो राज्य 3117 எச*் लोभसे स्वजनोंको मारनेके लिये उद्यत T ೯ Il %u // यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः | धार्तराष्ट्रा   रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत्।। यदि मुझ शस्त्ररहित एवं सामना न करनेवालेको शस्त्र हाथमें लिये हुए धृतराष्ट्रके पुत्र रणमें मार भी   मेरे लिये   अधिक ভাল   নী वह मारना कल्याणकारक   होगा II ४६ Il सञ्जय उवाच एवमुक्त्वार्जुनः सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत्।  विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः I। संजय बोले  रणभूमिमें शोकसे उद्विग्न मनवाले अर्जुन   इस बाणसहित धनुषको प्रकार  कहकर त्यागकर रथके पिछले भागमें बैठ गये ।। ४७ |l श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे ३ँ० तत्सदिति श्रीकृष्णार्जुनसंवादेर्जुनविषादयोगो नाम प्रथमोउध्यायः II १ II ~~o~ गीता प्रेस , गोरखपुर से साभार अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्। यद्राज्यसुखलोभेन 8் TgaగT: Il हा ! शोक ! हमलोग बुद्धिमान् होकर भी महान् पाप करनेको तैयार हो गये हैं, जो राज्य 3117 எச*் लोभसे स्वजनोंको मारनेके लिये उद्यत T ೯ Il %u // यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः | धार्तराष्ट्रा   रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत्।। यदि मुझ शस्त्ररहित एवं सामना न करनेवालेको शस्त्र हाथमें लिये हुए धृतराष्ट्रके पुत्र रणमें मार भी   मेरे लिये   अधिक ভাল   নী वह मारना कल्याणकारक   होगा II ४६ Il सञ्जय उवाच एवमुक्त्वार्जुनः सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत्।  विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः I। संजय बोले  रणभूमिमें शोकसे उद्विग्न मनवाले अर्जुन   इस बाणसहित धनुषको प्रकार  कहकर त्यागकर रथके पिछले भागमें बैठ गये ।। ४७ |l श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे ३ँ० तत्सदिति श्रीकृष्णार्जुनसंवादेर्जुनविषादयोगो नाम प्रथमोउध्यायः II १ II ~~o~ गीता प्रेस , गोरखपुर से साभार - ShareChat