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गैर के संग ना बिठाया कीजिये
गर खता हो तो बताया कीजिये
बात गर अपनों पे आ जाये कभी
साथ अपनों का निभाया कीजिये
वक़्त कहता है हमारे साथ चल
हम है तुम्हारे यूँ न जाया कीजिये
ख्वाब तो ख्वाब है सच्चाई नहीं
ख्वाब हमको ना दिखाया कीजिये
अब हकीकत में न तो ना ही सही
रात भर ख्वाबो में आया कीजिये
अहदे - गम है बीत जायेंगे ये भी
अश्क यूँ ही ना बहाया कीजिये
आयेगी इक रोज ख़ुशी भी यहाँ
हाथ दुआ में उठाया कीजिये
गैर की बातों से परेशाँ क्यों हो
दर्द हमें अपना सुनाया कीजिये
(लक्षमण दावानी जबलपुर✍️)
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2122 2122 212
कर दिया घायल नज़र के वार से
हम खड़े देखा किये लाचार से
रूह तक नीलाम कर दी इश्क में
ओ मिला क्या बेवफा उस यार से
राहें तकती है निगाहे उनकी भी
आ रही है अब सदा उस पार से
तोड़ ना पाये चमन से फूल हम
मोहब्बत थी उस गुलो गुलजार से
तल्ख लहजे में न कर तू गुफ्तगू
बात करना सीख लोअब प्यार से
जानते हो किस्से तुम भी प्यार के
फायदा कुछ भी नहीं तकरार से
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
1/7/2017
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ज़िन्दगी ढल गई अजनबी के लिये
उम्र भर हम जिये बस उसी के लिये
मयकदा ही मेरा बस ठिकाना बना
आते है हम यहाँ ख़ुदकुशी के लिये
मयकदा साकी तेरा सलामत रहे
और क्या चाहिये मयकशी के लिये
ठुकराया हमें सब ने धोखा दे कर
हम तरसते रहे हर किसी के लिये
प्यासे थे प्यासे ही रह गये हम यहाँ
अश्क ही मझे मिले तिश्नगी के लिये
प्यार दौलत पे भारी न हुआ कभी
खा म खाँ मरते रहे सादगी के लिये
सर झुका ही रहा सजदे में उनके ही
इम्तहाँ था मेरा बन्दगी के लिये
( एल,डी, ) #📜मेरी कलम से✒️ #✒ शायरी #💝 शायराना इश्क़ #शायरी #📚कविता-कहानी संग्रह
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अपने चहरे से पर्दा हटा दो
दर्द - ऐ - दिल कि मेरे दवा दो
जल रहे दिल मे अरमान मेरे
पहलू में तुम बिठा कर बुझा दो
बे असर हो रहीं हर दुआएँ
हाथ अपने उठा कर दुआ दो
बुझ रहे अब चिरागे मुहब्बत
ज़िन्द हाथो से अपने बना दो
हर तरह ज़िन्दगी ने सताया
तुम गले अपने मुझे लगा दो
चुने थे फूल काँटे मिले है
फूल फिर मोहब्बत के खिला दो
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
30/6/2017 #📚कविता-कहानी संग्रह #शायरी #💝 शायराना इश्क़ #✒ शायरी #📜मेरी कलम से✒️
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समझा न दर्दे दिल तो बताना फिजूल है
गैरो को दिल मे अपने बसाना फिजूल है
इक तुम्हे देखने को आये बज्म में तेरी
आना गुनाह है तो मनाना फिजूल है
जो माने ही न इश्के मुहब्बत वफ़ा-ए-दिल
उनके लिये ये आँसू बहाना फिजूल है
पाबंदे वफ़ा हूँ अब में सफाई नही दूंगा
ये फलसफा वफ़ा का सिखाना फिजूल है
इल्जाम तो लगा रहे जज्बात पर मेरे
अब जख्म तुम्हे दिलके दिखाना फिजूल है
खुद में समा के अंधेरे जीता रहा हूँ मै
अब दीप मोहब्बत के जलाना फिजूल है
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
30/6/2017 #📜मेरी कलम से✒️ #✒ शायरी #💝 शायराना इश्क़ #शायरी #📚कविता-कहानी संग्रह
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मेरे गम का तु साथी हुआ तो नही
दर्दे दिल की बना तू दवा तो नही
वक्त की बात करता रहा तू सदा
वक्त नादाँ किसी का सगा तो नही
रूह तेरी तरसती रही मिलने को
रूह ने रूह को भी छुआ तो नही
दिल के आकाश पर चाँद बनके रहे
ज़िन्दगी मेरी रोशन किया तो नही
जीने के बस तरीके सिखाते रहे
ज़िन्दगी साथ मेरे जिया तो नही
अश्क आंखों से तन्हा बहाते रहे
तुमने अपना सहारा दिया तो नही
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
29/6/2017 #📚कविता-कहानी संग्रह #शायरी #💝 शायराना इश्क़ #✒ शायरी #📜मेरी कलम से✒️
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कैद है इश्क इसके सिवा कुछ नही
जो फंसा इस में उसकी दवा कुछ नही
ला इलाजे मुहब्बत के होते है गम
बे असर है दवा ओ दुआ कुछ नही
हमने भी कर के देख ली मुहब्बत यहाँ
इक जफ़ा के सिवा तो मिला कुछ नही
वो नफ़स बन के नस नस में मेरी बसा
धड़कनों के सिवा ओ बचा कुछ नही
हर दुआ बे असर लौट आई मेरी
दर से खुदा के भी तो हुआ कुछ नही
दर्द दिल को मिले अश्क आंखों में है
मोहब्बत के नशे सा नशा कुछ नही
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
29/6/2017 #📜मेरी कलम से✒️ #✒ शायरी #💝 शायराना इश्क़ #शायरी #📚कविता-कहानी संग्रह
2122 1212 22/112
इश्के व्यापार हम नही करते
जाओ तकरार हम नही करते
बैठे है झूठे हर तरफ ग्राहक
सब पे एतबार हम नही करते
आँखों कारिश्ता खाब से ही है
आंखे अब चार हम नही करते
साँसे भी तुम पे हम लुटा देते
आज इंतज़ार हम नही करते
ज़िन्दगी तेरे नाम कर दी थी
इस से इन्कार हम नही करते
हो लबो पर दुआएँ जिनके भी
उन पे ही वार हम नही करते
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
27/6/2017 #📚कविता-कहानी संग्रह #शायरी #💝 शायराना इश्क़ #✒ शायरी #📜मेरी कलम से✒️
2122 1212 22/112
अपने गम की ये आँधियाँ दे दो
शोख नज़रो की बिजलियाँ दे दो
में तरसता रहा सदा जिनको
फिर वही मुझ को मस्तियाँ दे दो
वो लचकता बदन अदाओं से
रस भरे लब की शोखियाँ दे दो
चाँद तारे बिछा दूँ कदमो में
अपने दिल की तो मर्जियाँ दे दो
सब खताएँ भुला के मेरी तुम
जो हुई हम से गलतियाँ दे दो
सब मुरादें करेगा पूरी वो
रब ने माँगी है अर्जियाँ दे दो
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
28/6/2017 #📜मेरी कलम से✒️ #✒ शायरी #💝 शायराना इश्क़ #शायरी #📚कविता-कहानी संग्रह
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खिलबते - खास की रात होती रहे
लज्जते - वस्ल की बात होती रहे
तन सेतन का मिलन हो न पाए भले
प्यार की बस ये बरसात होती रहे
ज़िन्दगी में न हो हिज्र- ए- गम कभी
आरजू है , मुलाकात होती रहे
जंग ओ इश्क में सब है जायज यहाँ
दुश्मनो पर ये आघात होती रहे
दिल मे हो बहारें जुबाँ पर ग़ज़ल
ओ जहाँ की खिलाफात होती रहे
सिलसिला बसयूं चलता रहे उम्रभर
उस खुदा की करामात होती रहे
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
27/6/2017
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