*🌹वस्तु का मूल्य🌹*
🙏🙏🙏
*एक गांव में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था जो वस्तुओं के उपयोग के मामले में बहुत कंजूस था।उन्हें बचा बचा कर उपयोग किया करता था। उसके पास एक चांदी का पात्र था, जिसे वह बहुत संभाल कर रखता था क्योंकि वह उसकी सबसे मूल्यवान वस्तु थी। उसने सोचा हुआ था कि कभी किसी विशेष व्यक्ति के आने पर उसे भोजन कराने के लिए उस पात्र को उपयोग करेगा।*
*एक बार उसके यहां एक संत भोजन पर आए। उसका विचार था कि संत को उस चांदी के पात्र में भोजन परोसेंगे।भोजन का समय आते आते उसका विचार बदल गया। "मेरा पात्र बहुत कीमती है, एक गांव-गांव भटकने के वाले साधू के लिए उसे क्या निकालना!" किसी राजसी व्यक्ति के आने पर यह पात्र इस्तेमाल करूंगा।*
*कुछ दिनों बाद उसके घर राजा का मंत्री भोजन पर आया। पहले उसके मन में विचार आया कि मंत्री को चांदी के पात्र में भोजन कराएंगे लेकिन तुरन्त उसने विचार बदल दिया। "यह तो राजा का मंत्री है, जब राजा स्वयं मेरे घर भोजन करने आएंगे तब कीमती पात्र निकाल लूंगा"।*
*कुछ समय और बीता। एक दिन राजा स्वयं उस के घर भोजन के लिए पधारे। वह राजा अभी कुछ समय पूर्व ही अपने पड़ोसी राजा से युद्ध में हार गए थे और उनके राज्य के कुछ हिस्से पर पड़ोसी राजा ने कब्जा कर लिया था। भोजन परोसते समय बूढ़े व्यक्ति को विचार आया कि अभी-अभी हुई पराजय के कारण राजा का गौरव कम हो गया है। इस कीमती पात्र में तो किसी गौरवशाली व्यक्ति को ही भोजन कराऊंगा।इस तरह उसका पात्र बिना उपयोग के पड़ा रहा।*
*कुछ समय उपरांत बूढ़े व्यक्ति की मृत्यु हो गई। मृत्यु उपरांत एक दिन उसके बेटे को वह पात्र दिखाई दिया जो कि रखे रखे काला पड़ चुका था। उसने वह पात्र अपनी पत्नी को दिखाया पूछा, इसका क्या करें ? वह चांदी का पात्र इतना काला पड़ चुका था कि पहचान में नहीं आ रहा था कि यह चांदी का हो सकता है। उसकी पत्नी मुंह बनाते हुए बोली, "कितना गंदा पात्र है, इसे कुत्ते के भोजन देने के लिए निकाल दो"। उस दिन के बाद से उनका पालतू कुत्ता उस चांदी के बर्तन में भोजन करने लगा।*
*जिस पात्र को बूढ़े व्यक्ति ने जीवन भर किसी विशेष व्यक्ति के लिए संभाल कर रखा था, अंततः उसकी यह गत हुई।*
*शिक्षा : कोई वस्तु कितनी भी मूल्यवान क्यों ना हो, उसका मूल्य तभी है जब वह उपयोग में लाई जाए। बिना उपयोग के बेकार पड़ी कीमती से कीमती वस्तु का भी कोई मूल्य नहीं। इसलिए अपने पास जो भी वस्तुऐं हों उसका यथा समय उपयोग अवश्य करना चाहिए।*
*प्रेरणास्पद कथाएं हेतु जुड़े रहे.., व्हाट्सएप ग्रुप*
*मंगलमय प्रभात*
*स्नेह वंदन*
*प्रणाम* #😇 जीवन की प्रेरणादायी सीख #👍 सफलता के मंत्र ✔️ #✍ आदर्श कोट्स #👌 अच्छी सोच👍 #👌 आत्मविश्वास
🌺 *ॐ घृणि सूर्य भाष्कराय नमः*🌺
*"उदिता सूर्य: ताम्र: ताम्रमेवास्तिमेव च*!!
*सम्पत्तौ विपत्तौ च महत्ताम एक रूपताम"*!!
🙏 *सूर्यदेवजी उदय और अस्त के समय ताम्र वर्ण के होते हैं ठीक उसी प्रकार महान व्यक्ति संपत्ति और विपत्ति के समय एक ही भाव में रहते हैं*।।
🌺 *आपका दिन शुभ हो*🌺 #🌸 जय श्री कृष्ण😇 #🔱हर हर महादेव #🌞 Good Morning🌞 #शुभ रविवार #🌅सूर्य देव🙏
*🌹समय सीमा🌹*
🙏🙏🙏
*एक धन सम्पन्न व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ रहता था। पर कालचक्र के प्रभाव से धीरे धीरे वह कंगाल हो गया।*
*उस की पत्नी ने कहा कि सम्पन्नता के दिनों में तो राजा के यहाँ आपका अच्छा आना जाना था। क्या विपन्नता में वे हमारी मदद नहीं करेंगे जैसे श्रीकृष्ण ने सुदामा की की थी!*
*पत्नी के कहने से वह भी सुदामा की तरह राजा के पास गया।
द्वारपाल ने राजा को संदेश दिया कि एक निर्धन व्यक्ति आपसे मिलना चाहता है और स्वयं को आपका मित्र बताता है।*
*राजा भी श्रीकृष्ण की तरह मित्र का नाम सुनते ही दौड़े चले आए और मित्र को इस हाल में देखकर द्रवित होकर बोले कि मित्र बताओ, मैं तुम्हारी क्या सहायता कर सकता हूँ?*
*मित्र ने सकुचाते हुए अपना हाल कह सुनाया।*
*चलो, मै तुम्हें अपने रत्नों के खजाने में ले चलता हूँ। वहां से जी भरकर अपनी जेब में रत्न भर कर ले जाना। पर तुम्हें केवल 3 घंटे का समय ही मिलेगा। यदि उससे अधिक समय लोगे तो तुम्हें खाली हाथ बाहर आना पड़ेगा।*
*ठीक है, चलो। व्यक्ति ने कहा और राजा के साथ चल पड़ा।*
*वह व्यक्ति रत्नों का भंडार और उनसे निकलने वाले प्रकाश की चकाचौंध देखकर हैरान हो गया। पर समय सीमा को देखते हुए उसने भरपूर रत्न अपनी जेब में भर लिए। जब वह बाहर आने लगा तो उसने देखा कि दरवाजे के पास रत्नों से बने छोटे छोटे खिलौने रखे थे जो बटन दबाने पर तरह तरह के खेल दिखाते थे। उसने सोचा कि अभी तो समय बाकी है, क्यों न थोड़ी देर इनसे खेल लिया जाए?*
*पर यह क्या? वह तो खिलौनों के साथ खेलने में इतना मग्न हो गया कि समय का भान ही नहीं रहा।*
*उसी समय घंटी बजी जो समय सीमा समाप्त होने का संकेत था और वह निराश होकर खाली हाथ ही बाहर आ गया।*
*राजा ने कहा- मित्र, निराश होने की आवश्यकता नहीं है। चलो, मैं तुम्हें अपने स्वर्ण के खजाने में ले चलता हूँ। वहां से जी भरकर सोना अपने थैले में भर कर ले जाना। पर समय सीमा का ध्यान रखना।*
*ठीक है, चलो। व्यक्ति ने कहा और राजा के साथ चल पड़ा।*
*उसने देखा कि वह कक्ष भी सुनहरे प्रकाश से जगमगा रहा था। उसने शीघ्रता से अपने थैले में सोना भरना प्रारम्भ कर दिया। तभी उसकी नजर एक घोड़े पर पड़ी जिसे सोने की काठी से सजाया गया था।*
*अरे! यह तो वही घोड़ा है जिस पर बैठ कर मैं राजा साहब के साथ घूमने जाया करता था।*
*वह उस घोड़े के निकट गया, उस पर हाथ फिराया और कुछ समय के लिए उस पर सवारी करने की इच्छा से उस पर बैठ गया।*
*पर यह क्या? समय सीमा समाप्त हो गई और वह अभी तक सवारी का आनन्द ही ले रहा था।*
*उसी समय घंटी बजी जो समय सीमा समाप्त होने का संकेत था और वह घोर निराश होकर खाली हाथ ही बाहर आ गया।*
*राजा ने कहा- मित्र, निराश होने की आवश्यकता नहीं है। चलो, मैं तुम्हें अपने रजत के खजाने में ले चलता हूँ। वहां से जी भरकर चाँदी अपने ढोल में भर कर ले जाना। पर समय सीमा का ध्यान अवश्य रखना।*
*ठीक है, चलो। व्यक्ति ने कहा और राजा के साथ चल पड़ा।*
*उसने देखा कि वह कक्ष भी चाँदी की धवल आभा से शोभायमान था।*
*उसने अपने ढोल में चाँदी भरनी आरम्भ कर दी।*
*इस बार उसने तय किया कि वह समय सीमा से पहले कक्ष से बाहर आ जाएगा। पर समय तो अभी बहुत बाकी था। दरवाजे के पास चाँदी से बना एक छल्ला टंगा हुआ था। साथ ही एक नोटिस लिखा हुआ था कि इसे छूने पर उलझने का डर है। यदि उलझ भी जाओ तो दोनों हाथों से सुलझाने की चेष्टा बिल्कुल न करना।*
*उसने सोचा कि ऐसी उलझने वाली बात तो कोई दिखाई नहीं देती।*
*बहुत कीमती होगा तभी बचाव के लिए लिख दिया होगा। देखते हैं कि क्या माजरा है!*
*बस! फिर क्या था। हाथ लगाते ही वह तो ऐसा उलझा कि पहले तो एक हाथ से सुलझाने की कोशिश करता रहा। जब सफलता न मिली तो दोनों हाथों से सुलझाने लगा।*
*पर सुलझा न सका और उसी समय घंटी बजी जो समय सीमा समाप्त होने का संकेत था और वह निराश होकर खाली हाथ ही बाहर आ गया।*
*राजा ने कहा- मित्र*, *कोई बात नहीं*।
*निराश होने की आवश्यकता नहीं है। अभी तांबे का खजाना बाकी है।*
*चलो, मैं तुम्हें अपने तांबे के खजाने में ले चलता हूँ। वहां से जी भरकर तांबा अपने बोरे में भर कर ले जाना। पर समय सीमा का ध्यान रखना।*
*ठीक है,चलो। व्यक्ति ने कहा और राजा के साथ चल पड़ा।*
*जाते हुए वह यही सोच रहा था कि मैं तो जेब में रत्न भरने आया था और बोरे में तांबा भरने की नौबत आ गई। थोड़े तांबे से तो काम नहीं चलेगा। उसने कई बोरे तांबे के भर लिए।*
*लेकिन भरते भरते उसकी कमर दुखने लगी लेकिन फिर भी वह काम में लगा रहा। विवश होकर उसने आसपास सहायता के लिए देखा।*
*एक पलंग बिछा हुआ दिखाई दिया। उस पर सुस्ताने के लिए थोड़ी देर लेटा तो नींद आ गई और अंत में वहाँ से भी खाली हाथ बाहर निकाल दिया गया।*
*मोरल ऑफ़ द स्टोरी*
*क्या इसी प्रकार हम भी अपने जीवन में अपने साथ कुछ नहीं ले जा पाएंगे? बचपन खिलौनों के साथ खेलने में, जवानी विवाह के आकर्षण में और गृहस्थी की उलझन में बिता दी। बुढ़ापे में जब कमर दुखने लगी तो पलंग के सिवा कुछ दिखा नहीं।*
*और*
*समय सीमा समाप्त होने की घंटी बजने वाली है....*
*ऐसी ही प्रेरणास्पद कथायें संस्कारित कहानियां पढ़ने के लिये जुड़े रहे*
*मंगलमय प्रभात*
*स्नेह वंदन*
*प्रणाम* #💔पुराना प्यार 💔 #👍 सफलता के मंत्र ✔️ #❤️Love You ज़िंदगी ❤️ #👌 आत्मविश्वास #☝अनमोल ज्ञान
🙏ॐ शं शनैश्चराय नमः🙏
आपका आज का दिवस शुभ एवं मंगलमय हो, भगवान सूर्यदेव के पुत्र परम बलशाली भगवान शनिदेव महाराज एवम् श्री हनुमानजी आपकी समस्त कामनाओं की पूर्ति करें और हम सभी का सदा कल्याण करें..
जय शनिदेव जय हनुमान
🌺🌸💐🌹🙏 #🌞 Good Morning🌞 #🌸 जय श्री कृष्ण😇 #🔱हर हर महादेव #शुभ शनिवार #✋भगवान भैरव🌸
ॐ मां लक्ष्मी नमः
श्री लक्ष्मी नारायण नमः
ॐ श्रीं हरिंग श्री कमले
कमलालए प्रसिद्द प्रसिद्द
श्रीं ह्रिं श्रीं ॐ महालक्ष्मी नमः
शुभ शुक्रवार
🚩🚩🌺🌺🪷🌺🌺🙏🙏 #🔱हर हर महादेव #🌸 जय श्री कृष्ण😇 #🌞 Good Morning🌞 #महालक्ष्मी #🙏माँ लक्ष्मी महामंत्र🌺
🌹शब्दों की चोट और नाम का चमत्कार🌹
🙏🙏🙏
स्वामी विवेकानंद अपने प्रभावपूर्ण प्रवचन में “भगवान के नाम की महिमा” समझा रहे थे और श्रोता भावविभोर होकर सुन रहे थे, तभी भीड़ में से एक व्यक्ति अचानक खड़ा हो गया। वह अपने को बड़ा तर्कशील मानता था।
उसने कहा—“स्वामी जी, नाम, शब्द—इन सब में क्या रखा है? इन्हें कह देने से क्या लाभ?” स्वामी जी ने शांत भाव से उसे समझाया कि शब्द मात्र ध्वनि नहीं, शक्ति होते हैं, पर वह व्यक्ति हर बात पर कुतर्क किए जा रहा था। अंत में स्वामी जी ने उसे देखकर मुस्कुराते हुए कहा—“तुम मूर्ख हो, नासमझ हो, बेवकूफ हो… ऐसे कुतर्क केवल नालायक लोग ही करते हैं।” यह सुनते ही वह तथाकथित तर्कशील व्यक्ति भड़क उठा।
बोला—“स्वामी जी! आप जैसे महान संन्यासी के मुख से ऐसे वचन शोभा नहीं देते। आपके शब्दों से मुझे गहरी चोट पहुँची है!” उसकी बात सुनकर स्वामी जी ज़ोर से हँस दिए। पूरी सभा आश्चर्य में पड़ गई—ये कैसा हास्य?
स्वामी जी ने गंभीरता से कहा—“बंधु! मैं तो केवल शब्द बोल रहा था। आपने स्वयं ही कहा था न—‘शब्दों में क्या रखा है’? मैंने कोई पत्थर तो नहीं मारा, फिर इतनी चोट कैसी?”
उसका क्रोध पल भर में शांत हो गया। उसे अपनी भूल समझ में आ गई। वह हाथ जोड़कर बोला—“स्वामी जी, मुझे आपको बीच में रोकना नहीं चाहिए था। अब समझ आया कि शब्दों में कितनी शक्ति होती है।” सभा में बैठे सभी लोग भी सकपका गए—अभी-अभी उन्होंने शब्दों की वास्तविक ताकत देखी थी।
अपशब्द मनुष्य को जला सकते हैं और स्नेहभरे शब्द अमृत बनकर मन को शीतल कर सकते हैं। यही तो स्वामी जी समझा रहे थे कि जब एक कठोर शब्द किसी को तड़पा सकता है, तो भक्ति का नाम, प्रेम का शब्द, ईश्वर का स्मरण क्यों नहीं हृदय को ऊँचा कर सकता?
शब्द वह दीपक है जो चाहे तो भीतर के अंधकार—क्रोध, अहंकार, भ्रम—सबको उजागर कर बाहर निकाल दे, और चाहे तो भक्ति का प्रकाश भीतर प्रज्वलित कर दे।
शक्ति शब्द में है, पर दिशा देने वाला मनुष्य स्वयं है—कौन से शब्दों को अपनाना है: वे जो भीतर आग जलाएँ, या वे जो आत्मा में शांति और श्रद्धा भर दें।
इसलिए स्वामी जी ने कहा था—“नाम में सब कुछ है,” क्योंकि शब्द केवल बोला हुआ उच्चारण नहीं, मन की तरंग, हृदय की ऊर्जा और आत्मा की पुकार होते हैं—चाहे वह प्रेम जगाएँ या विकार। अन्ततः पूरा विधान यही है कि वाणी मनुष्य का सबसे बड़ा हथियार भी है और सबसे शुभ वरदान भी—वह चाहकर किसी को गिरा सकता है, और चाहकर किसी को उबार सकता है।
शिक्षा:
अपशब्द मन को घायल कर देते हैं, इसलिए वाणी पर नियंत्रण ही सबसे बड़ा सद्गुण है।
प्रेम, भक्ति और सद्भाव से भरे शब्द हर हृदय में प्रकाश जगा देते हैं।
मंगलमय प्रभात
प्रणाम #👍 सफलता के मंत्र ✔️ #❤️Love You ज़िंदगी ❤️ #😇 जीवन की प्रेरणादायी सीख #☝अनमोल ज्ञान #👍मोटिवेशनल कोट्स✌
*अंतरात्मा के अंधकार को
प्रकाश के सन्मुख करने वाली
माँ, सरस्वतीजी की चरण
वंदना*॥
आपका दिन शुभ हो*🙏🌺🙏 #🌞 Good Morning🌞 #🌸 जय श्री कृष्ण😇 #🔱हर हर महादेव #शुभ शुक्रवार #🙏माँ लक्ष्मी महामंत्र🌺
🌹तलाक🌹
🙏🙏🙏
कल रात एक ऐसा वाकया हुआ जिसने मेरी ज़िन्दगी के कई पहलुओं को छू लिया.
करीब 7 बजे होंगे,
शाम को मोबाइल बजा ।
उठाया तो उधर से रोने की आवाज...
मैंने शांत कराया और पूछा कि भाभीजी आखिर हुआ क्या ?
उधर से आवाज़ आई..
आप कहाँ हैं??? और कितनी देर में आ सकते हैं ?
मैंने कहा:- "आप परेशानी बताइये"।
और "भाई साहब कहाँ हैं...?माताजी किधर हैं..?" "आखिर हुआ क्या...?"
लेकिन उधर से केवल एक रट कि "आप आ जाइए", मैंने आश्वाशन दिया कि कम से कम एक घंटा पहुंचने में लगेगा. जैसे तैसे पूरी घबड़ाहट में पहुँचा;देखा तो भाई साहब [हमारे मित्र जो जज हैं] सामने बैठे हुए हैं;भाभीजी रोना चीखना कर रही हैं 12 साल का बेटा भी परेशान है; 9 साल की बेटी भी कुछ नहीं कह पा रही है।
मैंने भाई साहब से पूछा कि "आखिर क्या बात है"
"भाई साहब कोई जवाब नहीं दे रहे थे ".
फिर भाभी जी ने कहा ये देखिये तलाक के पेपर, ये कोर्ट से तैयार करा के लाये हैं, मुझे तलाक देना चाहते हैं,
मैंने पूछा - ये कैसे हो सकता है???. इतनी अच्छी फैमिली है. 2 बच्चे हैं. सब कुछ सेटल्ड है."प्रथम दृष्टि में मुझे लगा ये मजाक है".लेकिन मैंने बच्चों से पूछा दादी किधर है,बच्चों ने बताया पापा ने उन्हें 3 दिन पहले नोएडा के वृद्धाश्रम में शिफ्ट कर दिया है.मैंने घर के नौकर से कहा।
मुझे और भाई साहब को चाय पिलाओ;
कुछ देर में चाय आई. भाई साहब को बहुत कोशिशें कीं चाय पिलाने की.
लेकिन उन्होंने नहीं पी और कुछ ही देर में वो एक "मासूम बच्चे की तरह फूटफूट कर रोने लगे "बोले मैंने 3 दिन से कुछ भी नहीं खाया है. मैं अपनी 61 साल की माँ को कुछ लोगों के हवाले करके आया हूँ.
पिछले साल से मेरे घर में उनके लिए इतनी मुसीबतें हो गईं कि पत्नी (भाभीजी) ने कसम खा ली. कि "मैं माँ जी का ध्यान नहीं रख सकती"ना तो ये उनसे बात करती थी
और ना ही मेरे बच्चे बात करते थे. रोज़ मेरे कोर्ट से आने के बाद माँ खूब रोती थी. नौकर तक भी अपनी मनमानी से व्यवहार करते थे माँ ने 10 दिन पहले बोल दिया.. बेटा तू मुझे ओल्ड ऐज होम में शिफ्ट कर दे.मैंने बहुत कोशिशें कीं पूरी फैमिली को समझाने की, लेकिन किसी ने माँ से सीधे मुँह बात नहीं की.जब मैं 2 साल का था तब पापा की मृत्यु हो गई थी दूसरों के घरों में काम करके "मुझे पढ़ाया. मुझे इस काबिल बनाया कि आज मैं जज हूँ". लोग बताते हैं माँ कभी दूसरों के घरों में काम करते वक़्त भी मुझे अकेला नहीं छोड़ती थीं.उस माँ को मैं ओल्ड ऐज होम में शिफ्ट करके आया हूँ. पिछले 3 दिनों से
मैं अपनी माँ के एक-एक दुःख को याद करके तड़प रहा हूँ,जो उसने केवल मेरे लिए उठाये।
मुझे आज भी याद है जब.. "मैं 10th की परीक्षा में अपीयर होने वाला था. माँ मेरे साथ रात रात भर बैठी रहती".
एक बार माँ को बहुत फीवर हुआ मैं तभी स्कूल से आया था. उसका शरीर गर्म था, तप रहा था. मैंने कहा माँ तुझे फीवर है हँसते हुए बोली अभी खाना बना रही थी इसलिए गर्म है.
लोगों से उधार माँग कर मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी तक पढ़ाया. मुझे ट्यूशन तक नहीं पढ़ाने देती थीं कि कहीं मेरा टाइम ख़राब ना हो जाए.
कहते-कहते रोने लगे..और बोले--"जब ऐसी माँ के हम नहीं हो सके तो हम अपने बीबी और बच्चों के क्या होंगे".
हम जिनके शरीर के टुकड़े हैं,आज हम उनको ऐसे लोगों के हवाले कर आये, "जो उनकी आदत, उनकी बीमारी, उनके बारे में कुछ भी नहीं जानते",जब मैं ऐसी माँ के लिए कुछ नहीं कर सकता तो "मैं किसी और के लिए भला क्या कर सकता हूँ".
आज़ादी अगर इतनी प्यारी है और माँ इतनी बोझ लग रही हैं, तो मैं पूरी आज़ादी देना चाहता हूँ
जब मैं बिना बाप के पल गया तो ये बच्चे भी पल जाएंगे. इसीलिए मैं तलाक देना चाहता हूँ।
सारी प्रॉपर्टी इन लोगों के हवाले करके उस ओल्ड ऐज होम में रहूँगा. कम से कम मैं माँ के साथ रह तो सकता हूँ।
और अगर इतना सब कुछ कर के "माँ आश्रम में रहने के लिए मजबूर है", तो एक दिन मुझे भी आखिर जाना ही पड़ेगा.
माँ के साथ रहते-रहते आदत भी हो जायेगी. माँ की तरह तकलीफ तो नहीं होगी.
जितना बोलते उससे भी ज्यादा रो रहे थे.
बातें करते करते रात के 12:30 हो गए।
मैंने भाभीजी के चेहरे को देखा.
उनके भाव भी प्रायश्चित्त और ग्लानि से भरे हुए थे; मैंने ड्राईवर से कहा अभी हम लोग नोएडा जाएंगे।
भाभीजी और बच्चे हम सारे लोग नोएडा पहुँचे.
बहुत ज़्यादा रिक्वेस्ट करने पर गेट खुला. भाई साहब ने उस गेटकीपर के पैर पकड़ लिए, बोले मेरी माँ है, मैं उसको लेने आया हूँ,चौकीदार ने कहा क्या करते हो साहब,भाई साहब ने कहा मैं जज हूँ, उस चौकीदार ने कहा:-"जहाँ सारे सबूत सामने हैं तब तो आप अपनी माँ के साथ न्याय नहीं कर पाये,औरों के साथ क्या न्याय करते होंगे साहब"।
इतना कहकर हम लोगों को वहीं रोककर वह अन्दर चला गया.अन्दर से एक महिला आई जो वार्डन थी. उसने बड़े कातर शब्दों में कहा:-"2 बजे रात को आप लोग ले जाके कहीं मार दें, तो मैं अपने ईश्वर को क्या जबाब दूंगी..?"
मैंने सिस्टर से कहा आप विश्वास करिये. ये लोग बहुत बड़े पश्चाताप में जी रहे हैं. अंत में किसी तरह उनके कमरे में ले गईं. कमरे में जो दृश्य था, उसको कहने की स्थिति में मैं नहीं हूँ.
केवल एक फ़ोटो जिसमें पूरी फैमिली है और वो भी माँ जी के बगल में, जैसे किसी बच्चे को सुला रखा है.मुझे देखीं तो उनको लगा कि बात न खुल जाए लेकिन जब मैंने कहा हम लोग आप को लेने आये हैं, तो पूरी फैमिली एक दूसरे को पकड़ कर रोने लगी
आसपास के कमरों में और भी बुजुर्ग थे सब लोग जाग कर बाहर तक ही आ गए.
उनकी भी आँखें नम थीं कुछ समय के बाद चलने की तैयारी हुई. पूरे आश्रम के लोग बाहर तक आये. किसी तरह हम लोग आश्रम के लोगों को छोड़ पाये.
सब लोग इस आशा से देख रहे थे कि शायद उनको भी कोई लेने आए, रास्ते भर बच्चे और भाभी जी तो शान्त रहे.......
लेकिन भाई साहब और माताजी एक दूसरे की भावनाओं को अपने पुराने रिश्ते पर बिठा रहे थे.घर आते-आते करीब 3:45 हो गया.
भाभीजी भी अपनी ख़ुशी की चाबी कहाँ है; ये समझ गई थी
मैं भी चल दिया. लेकिन रास्ते भर वो सारी बातें और दृश्य घूमते रहे.
"माँ केवल माँ है"
उसको मरने से पहले ना मारें.
माँ हमारी ताकत है उसे बेसहारा न होने दें , अगर वह कमज़ोर हो गई तो हमारी संस्कृति की "रीढ़ कमज़ोर" हो जाएगी , बिना रीढ़ का समाज कैसा होता है किसी से छुपा नहीं
अगर आपकी परिचित परिवार में ऐसी कोई समस्या हो तो उसको ये जरूर पढ़ायें, बात को प्रभावी ढंग से समझायें , कुछ भी करें लेकिन हमारी जननी को बेसहारा बेघर न होने दें, अगर माँ की आँख से आँसू गिर गए तो "ये क़र्ज़ कई जन्मों तक रहेगा", यकीन मानना सब होगा तुम्हारे पास पर "सुकून नहीं होगा" , सुकून सिर्फ माँ के आँचल में होता है उस आँचल को बिखरने मत देना।
मंगलमय प्रभात
प्रणाम #💔पुराना प्यार 💔 #😇 जीवन की प्रेरणादायी सीख #❤️Love You ज़िंदगी ❤️ #👍 सफलता के मंत्र ✔️ #✍️ जीवन में बदलाव
*ॐ नारायणाय विद्महे
वासुदेवाय धीमहि तन्नो
विष्णु: प्रचोदयात*॥
*श्रीहरि विष्णुजी चारों
दिशाओं में आपकी रक्षा करें*🙏🙏🌺 #🔱हर हर महादेव #🌸 जय श्री कृष्ण😇 #🌞 Good Morning🌞 #शुभ गुरुवार #🙏🏻श्री साईं भजन
*🌹भीतर के मैं🌹*
🙏🙏🙏
भीतर के "मैं" का मिटना ज़रूरी है
सुकरात समुन्द्र तट पर टहल रहे थे| उनकी नजर तट पर खड़े एक रोते बच्चे पर पड़ी.
वो उसके पास गए और प्यार से बच्चे के सिर पर हाथ फेरकर पूछा , -''तुम क्यों रो रहे हो?
लड़के ने कहा- 'ये जो मेरे हाथ में प्याला है मैं उसमें इस समुन्द्र को भरना चाहता हूँ पर यह मेरे प्याले में समाता ही नहीं |
बच्चे की बात सुनकर सुकरात विस्माद में चले गये और स्वयं रोने लगे |
अब पूछने की बारी बच्चे की थी |
बच्चा कहने लगा- आप भी मेरी तरह रोने लगे पर आपका प्याला कहाँ है?
सुकरात ने जवाब दिया- बालक, तुम छोटे से प्याले में समुन्द्र भरना चाहते हो,और मैं अपनी छोटी सी बुद्धि में सारे संसार की जानकारी भरना चाहता हूँ |
आज तुमने सिखा दिया कि समुन्द्र प्याले में नहीं समा सकता है , मैं व्यर्थ ही बेचैन रहा |
प्रेरणास्पद कथाएं - जुड़े रहे
यह सुनके बच्चे ने प्याले को दूर समुन्द्र में फेंक दिया और बोला- "सागर अगर तू मेरे प्याले में नहीं समा सकता तो मेरा प्याला तो तुम्हारे में समा सकता है |
इतना सुनना था कि सुकरात बच्चे के पैरों में गिर पड़े और बोले-
बहुत कीमती सूत्र हाथ में लगा है |
हे परमात्मा ! आप तो सारा का सारा मुझ में नहीं समा सकते हैं पर मैं तो सारा का सारा आपमें लीन हो सकता हूँ |
ईश्वर की खोज में भटकते सुकरात को ज्ञान देना था तो भगवान उस बालक में समा गए |
सुकरात का सारा अभिमान ध्वस्त कराया | जिस सुकरात से मिलने के सम्राट समय लेते थे वह सुकरात एक बच्चे के चरणों में लोट गए थे
ईश्वर जब आपको अपनी शरण में लेते हैं तब आपके अंदर का "मैं " सबसे पहले मिटता है |
या यूँ कहें जब आपके अंदर का "मैं" मिटता है तभी ईश्वर की कृपा होती है
मंगलमय प्रभात
प्रणाम #👍 सफलता के मंत्र ✔️ #❤️Love You ज़िंदगी ❤️ #😇 जीवन की प्रेरणादायी सीख #❤️जीवन की सीख #💔पुराना प्यार 💔




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