हम ब्रह्मचारिणी माता की कथा ...
Devi Brahmacharini : देवी ब्रह्मचारिणी की ...
ब्रह्मचारिणी माता की कथा के अनुसार, भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती ने घोर तपस्या की थी, जिसके कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया। अपनी तपस्या के दौरान उन्होंने हजारों वर्ष केवल फल-फूल खाए, फिर कुछ सौ वर्ष शाक-भाजी पर बिताए, और अंत में कई हजार वर्षों तक निर्जल रहकर टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और फिर उनका भी त्याग कर दिया, जिसके कारण उनका नाम अपर्णा पड़ा। इस कठिन तपस्या से उनका शरीर क्षीण हो गया, लेकिन उनकी तपस्या के बल से देवता, ऋषि-मुनि सभी ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि उनकी मनोकामनाएं पूरी होंगी और शिवजी उन्हें पति रूप में प्राप्त होंगे।
कथा का विस्तार
जन्म और तप का संकल्प: पूर्व जन्म में, ब्रह्मचारिणी देवी का जन्म हिमालय पर्वत पर मैनावती के गर्भ से हुआ था, और उनका नाम पार्वती था। युवावस्था में, उन्होंने देवऋषि नारद के उपदेश पर भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या करने का निर्णय लिया।
कठोर तपस्या का क्रम:
उन्होंने हजारों वर्ष केवल फल और फूल खाकर तपस्या की।
इसके बाद, उन्होंने सौ वर्ष तक जमीन पर रहकर केवल शाक-भाजी खाकर गुजारा किया।
इसके बाद उन्होंने कई हजार वर्षों तक वर्षा, धूप और कड़कड़ाती ठंड में खुले आसमान के नीचे तप किया।
उन्होंने तीन हजार वर्षों तक केवल गिरे हुए सूखे बिल्व पत्र खाए और निरंतर भगवान शिव की आराधना की।
अंततः, उन्होंने पत्ते खाना भी छोड़ दिया और कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रहकर तपस्या की।
नामकरण: पत्तों को खाना छोड़ने के बाद ही उनका नाम 'अपर्णा' पड़ा। हजारों वर्षों तक कठिन तपस्या करने के कारण ही उन्हें ब्रह्मचारिणी या तपश्चारिणी के नाम से जाना गया।
देवी का शरीर क्षीण होना: घोर तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया था।
देवताओं और ऋषियों की प्रतिक्रिया: देवी की इस अभूतपूर्व और कठोर तपस्या से देवता, ऋषि, सिद्धगण और मुनि अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने देवी को प्रणाम करके वरदान दिया कि आज तक किसी ने इस तरह की तपस्या नहीं की है और उनकी मनोकामना अवश्य पूरी होगी।
कथा का सार और महत्व
मां ब्रह्मचारिणी की कथा यह सिखाती है कि जीवन के कठिन संघर्षों और मुश्किलों में भी अपने मन को विचलित नहीं होने देना चाहिए।
उनकी आराधना करने से भक्तों को संयम, बल, सात्विकता, आत्मविश्वास और वैराग्य की प्राप्ति होती है।
मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से भक्त को सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्त होती है, तथा जीवन की कई परेशानियां भी समाप्त हो जाती हैं।
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