जब अमेरिका का एक बड़ा नेता, डोनाल्ड ट्रंप, अपनी सोशल मीडिया पर चिल्लाया: "भारत पर 50% टैरिफ लगाऊंगा!"
यूरोपियन यूनियन ने शोर मचाया, जापान ने बैठकर सौदा करने की कोशिश की, और चीन ने सीधा पलटवार कर दिया।
लेकिन भारत?
बस शांत। न कोई भाग-दौड़, न वॉशिंगटन की तरफ दौड़, न कोई हड़बड़ी वाली मीटिंग। सिर्फ सन्नाटा...
क्यों....?
क्योंकि अमेरिका के साथ खेला हो गया..
टैरिफ के मार से भारत की "आह" तक नहीं निकली..
क्यों? क्या मोदी का घमंड था? या अंधा देशभक्ति का जोश?
नहीं...
बिलकुल नहीं...!! ये तो एक लंबी, गहरी साजिश थी,
जो 11 साल पहले शुरू हुई थी।
साल 2014....
मोदी प्रधानमंत्री बने ही थे, तभी NSA अजीत डोभाल ने उनसे कहा, "सर, अगर भारत सुपरपावर बनना चाहता है, तो अमेरिका का दबाव सहने की तैयारी करनी पड़ेगी।
असली दुश्मन चीन नहीं, बल्कि हमारी कमजोरियां हैं – डॉलर की जकड़न, तेल पर दूसरों का कब्जा, और हथियारों की निर्भरता।"
मोदी ने पूछा, "तो क्या करें?"
डोभाल ने जवाब दिया, "खतरे से दूर रहना है अमेरिका से दुश्मनी नहीं। लेकिन भारत पहले खाड़ी और अफ्रीका के देशों से दोस्ती बढ़ाये। अपनी नौसेना मजबूत करे, और अपना बाजार को हथियार बनाये।"
बस, योजना शुरू हो गई। जैसे कोई योद्धा अपना कवच गढ़ता है, वैसे ही साल दर साल ये चलती रही।
शुरुआत 2014 में 'मेक इन इंडिया' से।
फिर 2015 में कतर से गैस का सौदा दोबारा तय किया। 2016-17 में UPI और GST लाए, जो डिजिटल अर्थव्यवस्था की रीढ़ बने।
2018 में ईरान पर अमेरिकी पाबंदी आई, तो हमने अपना सिस्टम बनाया जो पाबंदी से बचाए।
2019 में इलेक्ट्रॉनिक्स पॉलिसी – अब सिर्फ जोड़ना नहीं, बल्कि पार्ट्स खुद बनाना। 2020 में PLI स्कीम, 1.97 लाख करोड़ की।
2021 में तेल का रिजर्व स्टॉक। 2022 में INS विक्रांत जहाज, UAE और ऑस्ट्रेलिया से व्यापार समझौते।
2023 में UPI को विदेश से जोड़ा, रुपए में व्यापार शुरू। 2024 में अग्नि-V मिसाइल टेस्ट, कतर से 20 साल का गैस डील, और चाबहार बंदरगाह।
और 2025 में सर्विस एक्सपोर्ट 387.5 अरब डॉलर तक पहुंचा, अमेरिका का 25% टैरिफ आया, लेकिन असर? जीरो।
ये घमंड नहीं था, भाई।
ये कवच था – मजबूत, अटूट।
2013 में GDP 1.86 ट्रिलियन डॉलर थी,
2025 में 4.19 ट्रिलियन – दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था। PPP में 17.65 ट्रिलियन। रफ्तार 6-8%। गरीबी आधी हो गई। FDI 300 अरब$ से ऊपर।
हां, रास्ता कठिन था। टैक्स भारी पड़े, दर्द हुआ। लेकिन ये आग की परीक्षा थी, जो स्टील को मजबूत बनाती है। अब टैरिफ हमारी जंजीर नहीं, बल्कि हमारी ढाल से टकराते हैं।
वो पुराना भारत, जो अमेरिका के आगे झुकता था, वो खत्म हो चुका। यहां कोई राजा का नुमाइंदा नहीं, कोई कठपुतली नहीं।
अब हम अपनी चाय पीते हैं, अपने जहाज गिनते हैं, अपने समंदर की रखवाली करते हैं, और अपनी कमाई पर किसी की दया नहीं मांगते।
मोदी को गालियां मिलेंगी, आलोचना होगी।
लेकिन ये कवच भारत का है।
और अब सवाल पश्चिम से है: "जब भारत नहीं झुकेगा, तो तुम्हारा अगला दांव क्या होगा, साहब?"
क्योंकि उस इटालियन पप्पू से वोट-चोरी की कितनी भी नौटंकी करा लो मोदी ना तो रुकने वाला ना तो भारत अब झुकने वाला है।
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