बिनोद कुमार शर्मा
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बिनोद कुमार शर्मा
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#जय महाकाल दर्शन।।
जय महाकाल दर्शन।। - महाकालेश्वर ज़ी जय श्री ०२-10-२०२५- संध्या आरती दर्शन उज्जैन से७ श्री महाकालेश्वर संध्या आरती दर्शन  महाकालेश्वर ज़ी जय श्री ०२-10-२०२५- संध्या आरती दर्शन उज्जैन से७ श्री महाकालेश्वर संध्या आरती दर्शन - ShareChat
#नीलकंठ महादेव जी 💐💐
नीलकंठ महादेव जी - जय नीलकंठ महादेव विजयदशमी पर्व पर सुबह उठते ही करिये नीलकंठ भगवान का दर्शन जय नीलकंठ महादेव विजयदशमी पर्व पर सुबह उठते ही करिये नीलकंठ भगवान का दर्शन - ShareChat
#दशहरा की शुभकामनाएं 🌺🌺
दशहरा की शुभकामनाएं - श्री राम 055562522 जय HAPPY Dussehral देशवासियों को समस्त -रामकृपा- हृदय में धारण करें पर अच्छाई और अधार्म बुराई " विजयाद्वशमी पर धार्म की विजय के पर्व प्रभु श्री राम का नाम अपने भीतर के ಫ रावण का মননাথা दशहश दशहरा पर्व की हार्दिक पावन अवश२ प२ बहुत -बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं। शुभकामनाएं। ಹ-02/0/2025 गुरुवार श्री राम 055562522 जय HAPPY Dussehral देशवासियों को समस्त -रामकृपा- हृदय में धारण करें पर अच्छाई और अधार्म बुराई " विजयाद्वशमी पर धार्म की विजय के पर्व प्रभु श्री राम का नाम अपने भीतर के ಫ रावण का মননাথা दशहश दशहरा पर्व की हार्दिक पावन अवश२ प२ बहुत -बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं। शुभकामनाएं। ಹ-02/0/2025 गुरुवार - ShareChat
*🌸02/10/2025,गुरुवार 🌸* *श्रीरामलला प्रातःकालीन दर्शन* #श्री रामलला दर्शन अयोध्या
श्री रामलला दर्शन अयोध्या - ShareChat
#जय माँ विंध्यवासिनी🙏🏻🚩
जय माँ  विंध्यवासिनी🙏🏻🚩 - जय माँ विंध्यवासिनी धाम, मिर्जापुर प्रातःकाल मां की मंगला आरती का भव्य श्रृंगार *आज दर्शन* ५ आश्विन, शुक्ल पक्ष, तिथि - विजय दशमी, संवत् २०८२, दिन -गुरुवार, ०२ अक्टूबर २०२५७ * जय मैय्या विंध्यवासिनी की* *जय जय मा विंध्यवासिनी जय माँ विंध्यवासिनी धाम, मिर्जापुर प्रातःकाल मां की मंगला आरती का भव्य श्रृंगार *आज दर्शन* ५ आश्विन, शुक्ल पक्ष, तिथि - विजय दशमी, संवत् २०८२, दिन -गुरुवार, ०२ अक्टूबर २०२५७ * जय मैय्या विंध्यवासिनी की* *जय जय मा विंध्यवासिनी - ShareChat
*दशहरे की पौराणिक कथाएं* *दशहरे के दिन अधर्म पर धर्म की विजय हुई थी। एक तरफ जहां भगवान राम ने रावण का वध किया था तो दूसरी तरफ मां दुर्गा ने महिषासुर का।* *रावण वध* *अयोध्या नगरी के राजा दशरथ के बड़े पुत्र थे भगवान राम। जब भगवान राम का राज्यभिषेक होने लगा तो दशरथ की दूसरी पत्नी ने कसम दिलाकर अपने बेटे भरत को गद्दी बैठा दिया और राम को 14 साल के वनवास पर भेज दिया। श्रीराम ने पिता की आज्ञा का पालन किया और वन को जाने लगे। श्रीराम के साथ उनकी पत्नी और छोटा भाई लक्ष्मण भी वन को चले गए। कई साल उन्होंने वन में बिताए। कई राक्षसों का वध किया। एक दिन रावण की बहन शूर्पण्खा वन में घूम रही थी तो उसकी नज़र श्रीराम पर पड़ी। शूर्पण्खा जबरदस्ती श्रीराम से विवाह रचाने की बात कहकर सीता को मारने की धमकी देने लगी। इस बात से लक्ष्मण गुस्से में आ गए और उन्होंने शूर्पण्खा की नाक काट दी। शूर्पण्खा रोती रोती अपने भाई के पास गई। रावण ने बदला लेने के लिये साधू का वेष धरा और सीता मां का भिक्षा लेने के बहाने अपहरण कर लिया। श्रीराम और लक्ष्मण सीता मां को ढूंढते रहे। रास्ते में ही उन्हें हनुमान, सुग्रीव और जटायु मिले। जब पता चला कि सीता मां को रावम ने अपनी लंका में बंद करके रखा है तो श्री राम ने उनसे युद्ध करने की ठानी और वानरों के साथ सेना तैयार की। समुद्र में पुल बनाया गया और फिर रावण से युद्ध रचा गया। रावण के दस सिर थे। इसलिये जब भी राम उनका सिर काटते वो फिर जिंदा हो जाता। अंत में विभिषण के बताने पर रावण की नाभि पर श्रीराम ने तीर मारा और उसका वध किया। रावण के वध के बाद लोगों को असुरों के आतंक से छुटकारा मिला।* *महिषासुर का वध* *एक बार एक दानवराज था रम्भासुर उसकी एक महिषी यानि भैंस के साथ संयोग हुआ और उनका पुत्र हुआ महिषासुर। महिषासुर अपनी इच्छा के अनुसार भैंस और इंसान का रुप धर सकता था। महिषासुर ने ब्रह्मा जी की घनघोर तपस्या की। कई साल तपस्या में लीन रहे।* *ब्रह्मा जी उसकी अखंड तपस्या से खुश हुए और वरदान मांगने को कहा। महिषासुर ने कहा कि मैं अमर हो जाऊं, लेकिन ब्रह्मा जी ने कहा कि जो भी इस दुनिया में आया है उसे तो वापस जाना ही है इसलिये कोई और वर मांगो। तब महिषासुर ने काफी सोचा और कहा कि मुझे ना तो कोई देवता, ना असुर और ना कोई पुरुष मार पाए। महिलाएं कोमल और नाजुक होती हैं। वो मुझे क्या मार पाएंगी ऐसा सोच कर महिषासुर ने कहा कि मैं सिर्फ स्त्री के हाथों ही मारा जाऊं। ब्रह्माजी ने तथास्तु करके उसे वर दे दिया। वरदान पाकर महिषासुर ने सभी पर आक्रमण कर दिया और जल्द ही असुरों का राजा बन गया। देखते ही देखते उसने धरती और स्वर्ग लोक भी जीत लिये। वो तीनों लोकों का अधिपति बन गया।* *जब सभी देव भगवान विष्णु के पास अपनी समस्या लेकर पहुंचे तो उन्होंने कहा कि आप भगवती महाशक्ति की आराधना करें। सभी देवताओं ने आराधना की। तब भगवती का जन्म हुआ। इन देवी की उत्पत्ति महिषासुर के अंत के लिए हुई थी, इसलिए इन्हें ‘महिषासुर मर्दिनी’ कहा गया। भगवान शिव ने देवी को त्रिशूल दिया। भगवान विष्णु ने देवी को चक्र प्रदान किया। इसी तरह, सभी देवी-देवताओं ने अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र देवी के हाथों में सजा दिए। इंद्र ने अपना वज्र और ऐरावत हाथी से उतारकर एक घंटा देवी को दिया। सूर्य ने अपने रोम कूपों और किरणों का तेज भरकर ढाल, तलवार और दिव्य सिंह यानि शेर को सवारी के लिए उस देवी को अर्पित कर दिया। विश्वकर्मा ने कई अभेद्य कवच और अस्त्र देकर महिषासुर मर्दिनी को सभी प्रकार के बड़े-छोटे अस्त्रों से शोभित किया। अब बारी थी युद्ध की। थोड़ी देर बाद महिषासुर ने देखा कि एक विशालकाय रूपवान स्त्री अनेक भुजाओं वाली और अस्त्र शस्त्र से सज्जित होकर शेर पर बैठ उसकी ओर आ रही है। 60 हजार राक्षसों की सेना ने युद्ध कर दिया। रणचंडिका देवी ने तलवार से सैकड़ों असुरों को एक ही झटके में मौत के घाट उतार दिया। बाद में नौ दिन की लड़ाई के पश्चात महिषासुर का भी वध कर दिया।* *एक विशेष जानकारी* *(पूर्व जन्म में भगवान विष्णु का सेवक था रावण, इस गलती के कारण राक्षस योनी में हुआ जन्म)* *कम ही लोग जानते हैं कि रावण अपने पूर्व जन्म में कोई राक्षस नहीं था बल्कि वह भगवान विष्णु का सेवक था। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय थे जो भगवान के अद्वितीय भक्त और सेवक थे। एक बार सनक, सनंदन आदि ऋषि मुनि विष्णु जी के दर्शन के लिए वैकुंठ आए लेकिन जय-विजय ने उन्हें द्वार पर ही रोक दिया। ऋषियों को उनका ऐसा व्यवहार अपमानजनक प्रतीत हुआ और उन्होंने उन्हें शाप दे दिया कि दोनों द्वारपाल तीन जन्मों तक असुर योनि में जन्म लेंगे।* *इस श्राप के कारण हुआ रावण का जन्म* *श्राप का सुनते ही दोनों द्वारपाल ऋषि मुनियों से क्षमा याचना करने लगे। तब ऋषिगण कहते हैं कि अब श्राप वापस तो नहीं लिया जा सकता है। काफी सोच विचार के बाद ऋषि मुनि ने कहा कि तुम 3 जन्मों तक राक्षस योनि में जन्म लोगे लेकिन हर जन्म में तुम्हारी मृत्यु विष्णु जी के ही अवतार के हाथों होगी, तब जाकर तुम्हें इस श्राप से मुक्ति मिलेगी। कहते हैं इसी श्राप के कारण जय-विजय ने तीन बार राक्षस योनी में जन्म लिया। जिसमें से इन दोनों का एक जन्म रावण और कुंभकरण के रूप में था।* *पहला जन्म हिरण्यकश्यप व हिरण्याक्ष के रूप में* *श्राप के अनुसार, जय-विजय का पहला जन्म हिरण्यकश्यप व हिरण्याक्ष नामक दैत्यों के रूप में हुआ था। हिरण्याक्ष का वध भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर किया तो वहीं उसके भाई हिरण्यकशिपु का वध भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर किया।* *दूसरा जन्म रावण और कुंभकरण के रूप में* *जय-विजय का दूसरा जन्म रावण और कुंभकर्ण के रूप में हुआ। रावण और कुंभकरण का वध प्रभु श्री हरि के 7वें अवतार भगवान श्री राम के हाथों हुआ।* *तीसरे जन्म में जाकर मिली मुक्ति* *श्राप के अनुसार जय-विजय का तीसरा और आखिरी जन्म शिशुपाल व दंतवक्र के रूप में हुआ। दोनों का वध भगवान विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने किया।* *-जय माता दी- जय श्री राम* #किस्से-कहानी