मनुष्य मन, वाणी और शरीर से पाप करता है यदि वह उन पापों को इसी जन्म में प्रायश्चित ना कर ले तो मरने के बाद उसे अवश्य ही भयंकर यातनापूर्ण नरको में जाना पड़ता है।
प्रायश्चित स्वरूप जो कर्म करोगे उसको भी भोगना पड़ेगा तो शुकदेवजी ने पुनः कहा
कर्म के द्वारा ही कर्म का निर्बीज नाश नहीं होता क्योंकि कर्म का अधिकारी अज्ञानी है।
अज्ञान रहते पाप वासनाएं सर्वथा नहीं मिट सकती। इसलिए सच्चा प्रायश्चित तो तत्वज्ञान ही है
श्रीमद्भागवत-महापुराण/६/१/६-१२
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श्रीमद्भागवत-महापुराण/5/26/7-37 #PuranikYatra #MBAPanditJi #shrimadbhagwat #MBAPanditJi
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्।।8.13।।
जो पुरुष 'ओम् इति' - ओम् इतना ही, जो अक्षय ब्रह्म का परिचायक है, इसका जप तथा मेरा स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग कर जाता है, वह पुरुष परमगति को प्राप्त होता है।
श्रीमद्भगवद्गीता: यथार्थ गीता/८/१३
स्वामी अड़गड़ानन्द जी
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राजा परीक्षित ने शुकदेव जी से पूछा - भगवन्! आप जिस नरक का वर्णन करते हैं, वह नरक इसी पृथ्वी के कोई देशाविशेष है अथवा त्रिलोकी से बाहर या इसी के भीतर किसी जगह है?
श्रीशुकदेव जी ने कहा - राजन! वे त्रिलोकी के भीतर ही है तथा दक्षिण की ओर पृथ्वी से नीचे जल के ऊपर स्थित है।
श्रीमद्भागवत-महापुराण/५/२६/४
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श्रीमद भागवत महापुराण में रावण का जिक्र आता है कि भगवान नारायण हाथ में गदा लिये सुतल लोक में राजा बलि के द्वार पर सदा उपस्थित रहते हैं। एक बार जब दिग्विजय करता हुआ घमंडी रावण वहां पहुंचा, तब उसे भगवान ने अपने पैर के अंगूठे की ठोकर से ही लाखों योजन दूर फेंक दिया था।
श्रीमद्भागवत-महापुराण/५/२४/२७
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नमो ज्योतिर्लोकाय कालाय-नायानिमिषां पतये महापुरुषायाभिधीमहीति ॥ ८ ॥
-'सम्पूर्ण ज्योतिर्गणोंके आश्रय, कालचक्रस्वरूप, सर्वदेवाधिपति परमपुरुष परमात्माका हम नमस्कारपूर्वक ध्यान करते हैं' ॥ ८ ॥
ग्रह, नक्षत्र और ताराओंके रूपमें भगवान्का आधिदैविकरूप प्रकाशित हो रहा है; वह तीनों समय उपर्युक्त मन्त्रका जप करनेवाले पुरुषोंके पाप नष्ट कर देता है। जो पुरुष प्रातः, मध्याह्न और सायं - तीनों काल उनके इस आधिदैविक स्वरूपका नित्यप्रति चिन्तन और वन्दन करता है, उसके उस समय किये हुए पाप तुरन्त नष्ट हो जाते हैं ॥ ९ ॥
श्रीमद् भागवत महापुराण/५/२३/९
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जिस प्रकार दायॅं चलाने के समय अनाज को खूॅंदनेवाले पशु छोटी, बड़ी और मध्यम रस्सी से बंधकर क्रमशः निकट, दूर और मध्य में रहकर खंभे के चारों ओर मण्डल बांधकर घूमते रहते हैं, उसी प्रकार सारे नक्षत्र और ग्रहगण बाहर-भीतर के क्रम से इस कालचक्र में नियुक्त होकर ध्रुवलोक का ही आश्रय लेकर वायु की प्रेरणा से कल्प के अन्त तक घूमते रहते हैं।
श्रीमद्भागवत-महापुराण/५/२३/३
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राजा सगर के पुत्रों ने अपने यज्ञ को घोड़े को ढूंढते हुए इस पृथ्वी को चारों ओर से खोदा था। उससे जम्बूद्वीप के अंतर्गत ही आठ उपद्वीप और बन गए, ऐसा कुछ लोगों का कथन है। वह स्वर्णप्रस्थ, चन्द्रशुक्ल, आवर्तन, रमणक, मन्दहरिण, पांचजन्य, सिंहल और लंका है।
श्रीमद्भागवत-महापुराण/५/१९/२९-३०
श्रीमद्भागवत-महापुराण/5/19/29-30
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कौन सा अवतार किस देश में हुआ था।
भद्राश्ववर्ष मे हयग्रीवसंज्ञक अवतार हुआ।
हरिवर्षखण्ड मे भगवान नृसिंह रूप में रहते हैं।
केतुमालवर्ष में भगवान कामदेवरूप में निवास करते हैं।
रम्यकवर्ष में मत्स्यरूप में निवास करते हैं।
हिरण्मयवर्ष में भगवान कच्छपरूप धारण करके रहते हैं।
उत्तरकुरुवर्ष में भगवान वराह मूर्ति धारण करके विराजमान हैं।
किम्पुरुष वर्ष में भगवान राम का अवतरण हुआ था।
भारतवर्ष में नर-नारायण रूप में कल्प के अन्त तक तप करते हैं।
श्रीमद्भागवत-महापुराण/५/१९
श्रीमद्भागवत-महापुराण/5/19
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