Davinder Singh Rana
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आई लव शेयरचैट
🌞 *~ श्री गणेशाय नम:~*🌞 🚩 *~ हर हर महादेव~*🚩 🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 🌺 *दिनांक - 06 दिसम्बर 2025* 🌺 *दिन - शनिवार* 🌺 *विक्रम संवत 2082* 🌺 *शक संवत -1947* 🌺 *अयन - दक्षिणायन* 🌺 *ऋतु - हेमंत ॠतु* 🌺 *मास - पौष (गुजरात-महाराष्ट्र)मार्गशीर्ष* 🌺 *पक्ष - कृष्ण* 🌺 *तिथि - द्वितीया रात्रि 09:25 तक तत्पश्चात तृतीया* 🌺 *नक्षत्र - मृगशिरा सुबह 08:48 तक तत्पश्चात आर्द्रा* 🌺 *योग - शुभ रात्रि 11:46 तक तत्पश्चात शुक्ल* 🌺 *राहुकाल - सुबह 09:46 से सुबह 11:08 तक* 🌺 *सूर्योदय - 07:04* 🌺 *सूर्यास्त - 05:55* 👉 *दिशाशूल - पूर्व दिशा मे* 🚩 *व्रत पर्व विवरण-* 💥 *विशेष - द्वितीया को बृहती (छोटा  बैगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)* 🌞~*वैदिक पंचांग* ~🌞 🌞 *~ राणा जी खेड़ांवाली~*🌞 🌷 *विघ्नों और मुसीबते दूर करने के लिए* 🌷 👉 *07 दिसंबर 2025 रविवार को संकष्ट चतुर्थी (चन्द्रोदय रात्रि 08:15)* 🙏🏻 *शिव पुराण में आता हैं कि हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी ( पूनम के बाद की ) के दिन सुबह में गणपतिजी का पूजन करें और रात को चन्द्रमा में गणपतिजी की भावना करके अर्घ्य दें और ये मंत्र बोलें :* 🌷 *ॐ गं गणपते नमः ।* 🌷 *ॐ सोमाय नमः ।* 🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞 ‪🌷 *चतुर्थी‬ तिथि विशेष* 🌷 🙏🏻 *चतुर्थी तिथि के स्वामी ‪भगवान गणेश‬जी हैं।* 📆 *हिन्दू कैलेण्डर में प्रत्येक मास में दो चतुर्थी होती हैं।* 🙏🏻 *पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्ट चतुर्थी कहते हैं।अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं।* 🙏🏻 *शिवपुराण के अनुसार “महागणपतेः पूजा चतुर्थ्यां कृष्णपक्षके। पक्षपापक्षयकरी पक्षभोगफलप्रदा ॥* ➡ *“ अर्थात प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को की हुई महागणपति की पूजा एक पक्ष के पापों का नाश करनेवाली और एक पक्षतक उत्तम भोगरूपी फल देनेवाली होती है ।* 🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞 🌷 *पुष्य नक्षत्र योग* 🌷 ➡ *08 दिसंबर 2025 को प्रातः 04:11 से सूर्योदय तक रविपुष्यामृत योग है ।* 🙏🏻 *१०८ मोती की माला लेकर जो गुरुमंत्र का जप करता है, श्रद्धापूर्वक तो २७ नक्षत्र के देवता उस पर खुश होते हैं और नक्षत्रों में मुख्य है पुष्य नक्षत्र, और पुष्य नक्षत्र के स्वामी हैं देवगुरु ब्रहस्पति | पुष्य नक्षत्र समृद्धि देनेवाला है, सम्पति बढ़ानेवाला है | उस दिन ब्रहस्पति का पूजन करना चाहिये | ब्रहस्पति को तो हमने देखा नहीं तो सद्गुरु को ही देखकर उनका पूजन करें और मन ही मन ये मंत्र बोले –* *ॐ ऐं क्लीं ब्रहस्पतये नम : |...... ॐ ऐं क्लीं ब्रहस्पतये नम : |* 📖 *राणा जी खेड़ांवाली🚩* 🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞 🙏🏻🌷🌸🌼💐☘🌹🌻🌺🙏🏻 #🕉️सनातन धर्म🚩 #श्री हरि #आज का राशिफल / पंचाग ☀
ॐश्री हरिहरो विजयतेतरामॐ 🌼श्री गणेशाय नम:🌼 📖आज का पञ्चाङ्ग📖 🌸शनिवार, ०६ दिसम्बर २०२५🌸 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 सूर्योदय: 🌞 ०७:०६ सूर्यास्त: ☀ ०५:२९ चन्द्रोदय: 🌝 १८:३५ चन्द्रास्त: 🌜०८:३२ अयन 🌘 दक्षिणायणे (दक्षिण गोले) ऋतु: 🌳 हेमन्त शक सम्वत: 👉 १९४७ (विश्वावसु) विक्रम सम्वत: 👉 २०८२ (सिद्धार्थी) मास 👉 पौष पक्ष 👉 कृष्ण तिथि 👉 द्वितीया (२१:२५ से तृतीया) नक्षत्र 👉 मृगशिरा (०८:४८ से आर्द्रा, ३०:१३ से पुनर्वसु) योग 👉 शुभ (२३:४६ से शुक्ल) प्रथम करण 👉 तैतिल (११:०७ तक) द्वितीय करण 👉 गर (२१:२५ तक) 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ ॥ गोचर ग्रहा: ॥ 🌖🌗🌖🌗 सूर्य 🌟 वृश्चिक चंद्र 🌟 मिथुन मंगल 🌟 वृश्चिक (अस्त, पश्चिम , मार्गी) बुध 🌟 वृश्चिक (उदित, पूर्व, मार्गी ) गुरु 🌟 मिथुन (उदित, पूर्व, वक्री) शुक्र 🌟 वृश्चिक (उदित, पश्चिम, मार्गी) शनि 🌟 मीन (उदय, पूर्व, मार्गी) राहु 🌟 कुम्भ केतु 🌟 सिंह 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ शुभाशुभ मुहूर्त विचार ⏳⏲⏳⏲⏳⏲⏳ 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ अभिजित मुहूर्त 👉 ११:४७ से १२:२८ अमृत काल 👉 २१:१८ से २२:४३ द्विपुष्कर योग 👉 ०६:५९ से ०८:४८ विजय मुहूर्त 👉 १३:५१ से १४:३२ गोधूलि मुहूर्त 👉 १७:१४ से १७:४२ सायाह्न सन्ध्या 👉 १७:१७ से १८:३९ निशिता मुहूर्त 👉 २३:४१ से २४:३६ राहुकाल 👉 ०९:३४ से १०:५१ राहुवास 👉 पूर्व यमगण्ड 👉 १३:२५ से १४:४२ दुर्मुहूर्त 👉 ०६:५९ से ०७:४० होमाहुति 👉 चन्द्र (०८:४८ से मंगल) दिशाशूल 👉 पूर्व अग्निवास 👉 आकाश चन्द्र वास 👉 पश्चिम शिववास 👉 सभा में (२१:२५ से क्रीड़ा में) 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ ☄चौघड़िया विचार☄ 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ ॥ दिन का चौघड़िया ॥ १ - काल २ - शुभ ३ - रोग ४ - उद्वेग ५ - चर ६ - लाभ ७ - अमृत ८ - काल ॥रात्रि का चौघड़िया॥ १ - लाभ २ - उद्वेग ३ - शुभ ४ - अमृत ५ - चर ६ - रोग ७ - काल ८ - लाभ नोट👉 दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है। 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ शुभ यात्रा दिशा 🚌🚈🚗⛵🛫 पश्चिम-दक्षिण (वाय विन्डिंग अथवा तिल मिश्रित चावल का सेवन कर यात्रा करें) 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ तिथि विशेष 🗓📆🗓📆 〰️〰️〰️〰️ बुध वृश्चिक में २०:२५ से, विवाहादि मुहूर्त धनु ल० (प्रातः ०८:०७ से ०८:२९ तक), नींव खुदाई एवं गृहारम्भ मुहूर्त+गृह प्रवेश मुहूर्त+व्यवसाय आरम्भ मुहूर्त+देवप्रतिष्ठा मुहूर्त प्रातः ०८:२१ से ०८:४७ तक, वाहन क्रय-विक्रय मुहूर्त दोपहर १२:१७ से सायं ०४:०३ तक आदि। राणा जी खेड़ांवाली🚩 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ आज जन्मे शिशुओं का नामकरण 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ आज ०८:४८ तक जन्मे शिशुओ का नाम मृगशिरा नक्षत्र के चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (की) नामाक्षर से तथा इसके बाद ३०:१३ तक जन्मे शिशुओ का नाम आर्द्रा नक्षत्र के प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (कु, घ, ड, छ) नामाक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओ का नाम पूनर्वसु नक्षत्र के प्रथम चरण अनुसार (के) नामाक्षर से रखना शास्त्र सम्मत है। 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ उदय-लग्न मुहूर्त वृश्चिक - २९:२९ से ०७:४८ धनु - ०७:४८ से ०९:५२ मकर - ०९:५२ से ११:३३ कुम्भ - ११:३३ से १२:५९ मीन - १२:५९ से १४:२२ मेष - १४:२२ से १५:५६ वृषभ - १५:५६ से १७:५१ मिथुन - १७:५१ से २०:०६ कर्क - २०:०६ से २२:२७ सिंह - २२:२७ से २४:४६+ कन्या - २४:४६+ से २७:०४+ तुला - २७:०४+ से २९:२५+ 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ पञ्चक रहित मुहूर्त मृत्यु पञ्चक - ०६:५९ से ०७:४८ अग्नि पञ्चक - ०७:४८ से ०८:४८ शुभ मुहूर्त - ०८:४८ से ०९:५२ रज पञ्चक - ०९:५२ से ११:३३ शुभ मुहूर्त - ११:३३ से १२:५९ चोर पञ्चक - १२:५९ से १४:२२ रज पञ्चक - १४:२२ से १५:५६ शुभ मुहूर्त - १५:५६ से १७:५१ चोर पञ्चक - १७:५१ से २०:०६ शुभ मुहूर्त - २०:०६ से २१:२५ रोग पञ्चक - २१:२५ से २२:२७ शुभ मुहूर्त - २२:२७ से २४:४६+ मृत्यु पञ्चक - २४:४६+ से २७:०४+ अग्नि पञ्चक - २७:०४+ से २९:२५+ अग्नि पञ्चक - २९:२५+ से ३०:१३+ शुभ मुहूर्त - ३०:१३+ से ३१:००+ 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ आज का राशिफल 🐐🐂💏💮🐅👩 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ) आज के दिन परिस्थितियां पहले से बेहतर बनेगी। आज आप किसी भी हालत में समझौता करने के पक्ष ने नही रहेंगे चाहे नुकसान ही क्यो ना हो। दिनचर्या कुछ मामलों को छोड़ सुव्यवस्थित रहेगी। काम धंधा भी मध्यान बाद अकस्मात गति पकड़ेगा लेकिन स्वभाव में नरमी रखे किसी व्यावसायिक अथवा अन्य प्रतिस्पर्धी से गरमा गरमी होने का असर व्यापारिक प्रतिष्ठा पर होगा। धन की आमद आज सहज रूप से ही हो जाएगी फिर भी असंतुष्टि में भाग दौड़ करेंगे खर्च अनियंत्रित होंगे बचत ना के बराबर ही रहेगी। कन्या राशि के लोगो से बहस से बचे। घर मे किसी न किसी से रूठना मनाना लगा रहेगा संतान का सहयोग मिलेगा। गठिया अथवा जननेन्द्रिय संबंधित समस्या उभरेगी। वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो) आज का दिन पहले की तुलना में सुधार वाला रहेगा लेकिन आज धन की प्राप्ति केवल जोखिम लेकर ही हो सकेगी। कार्य क्षेत्र पर हानि के भय से जल्दी से कोई बड़ा निर्णय नही लेंगे भयभीत ना हो निसंकोच होकर किसी भी प्रकार का जोखिम विशेष कर निवेश करें वरना निकट भविष्य में आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। व्यवसाय में आज किया निवेश तुरंत लाभ तो नही देगा लेकिन आने वाले दिनों में इसका सकारत्मक परिणाम अवश्य मिल सकेगा। धर्म कर्म टोन टोटको में भी रुचि रहेगी इनपर समय और अल्प धन भी व्यय होगा। भाई बंधु और स्त्री वर्ग का मिजाज चढ़ा रहेगा सतर्क रहकर व्यवहार करें। सेहत में कुछ ना कुछ नुक्स लगा रहेगा। मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा) आज के दिन आपका मन काल्पनिक दुनिया की सैर करेगा मन मे खयाली पुलाव पकाएंगे लेकिन कर्म करने में लचीले रहेंगे। आज आप जिस भी कार्य को करेंगे उसकी सफ़लता असफ़लता किसी अन्य के हाथ मे रहेगी विशेष कर पति अथवा पति से बनाकर चले अन्यथा अंत समय मे सारी योजना रखी रह जायेगी। मध्यान के आस पास अकस्मात ही कही से धन की प्राप्ती होगी इसी से दैनिक खर्च के साथ भविष्य के खर्च चलाने पड़ेंगे इसलिए फिजूल खर्ची पर नियंत्रण लाये। आज व्यसन अथवा दुराचरण से बच कर रहे पारिवारिक मान हानि के साथ शारीरिक रूप से भी नुकसान देह रहेगा। कमर से नीचे के भाग में कोई नया रोग उभरने की संभावना है। कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो) आज के दिन आप सुनेंगे सबकी लेकिन करेंगे अपने ही मन की फिर भी आज व्यवसाय से आकस्मिक लाभ होने पर स्थिति बिगड़ने नही पाएगी दिन के आरंभ में जो लोग आपके निर्णयों के विरोध कर रहे थे सफर बाद वे ही समर्थन करते दिखेंगे। घर मे भाई बंधुओ से किसी पुश्तैनी अथवा व्यावसायिक बात को लेकर कहा सुनी हो सकती है। भागीदारी के कार्यो में निवेश से बचे अन्यथा हानि ही होगी इसके विपरीत एकल कार्यो में लाभ आवश्यकता से अधिक ही होगा। परिवार का वातावरण पल पल में बदलने पर असमंजस में रहेंगे संताने जिद पर अडेंगी मांगे मनवाकर ही शांत होंगी। मुह पर मीठा बोलने वालों से सतर्क रहें खास कर धनु एवं कुम्भ राशि जातको पर जल्दी से विश्वास ना करें। मानसिक संतुष्टि नही रहेगी। सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे) आज का दिन बीते कल की तुलना में बेहतर रहेगा। समाज से सम्मान तो मिलेगा इसके लिए व्यस्तता से समय भी निकालना पड़ेगा। कार्य व्यवसाय में भी प्रगति होगी लेकिन धन लाभ के समय आश्वाशन ही मिलने से निराश रहेंगे। पूजा पाठ के लिए समय कम ही मिलेगा फिर भी परोपकार के अवसर खाली नही जाने देंगे जरूरतमंदो को आप जितना हो सके उतना सहयोग करेंगे। व्यवसायी वर्ग कार्य स्थल की सुरक्षा सुनिश्चित करें निकट भविष्य में आगजनी अथवा अन्य किसी प्रकार से सामान अथवा आर्थिक क्षति होने की संभावना है। विरोधी पक्ष प्रबल रहेगा लेकिन परोपकार का पुण्य हानि नही होने देगा। संतानों अथवा घर के किसी सदस्य की गलत आदत से मन आहत होगा। घुटनो अथवा अन्य शारीरिक अंगों में निर्बलता रहेगी। कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो) आज के दिन आपमे धार्मिक भावनाए जागृत होंगी पूजा पाठ के लिए समय तो निकालेंगे लेकिन मन टोन टोटको पर ज्यादा विश्वाश करेगा लेकिन इनको करना ना करना एक बराबर ही है समय और धन की बर्बादी ही होगी। कार्य व्यवसाय से बीते दिनों की तुलना में लाभ में वृद्धि होगी। व्यवसाय में विस्तार के अवसर भी मिलेंगे परन्तु गलत मार्गदर्शन के कारण कर नही पाएंगे वर्तमान परिस्थित अनुसार आज काम मे विस्तार ना कर पाना अखरेगा लेकिन बाद में संतोष भी देगा। परिवार में बड़े बुजुर्गों से भाई बंधुओ को लेकर वैचारिक मतभेद रहेंगे। आवश्यक कार्य कल के लिए ना टाले संध्या बाद से सेहत में नरमी आने के कारण अधूरे रह सकते है। तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते) आज का दिन पिछले दिनो की अपेक्षा बेहतर रहेगा सेहत में सुधार अनुभव करेंगे। प्रातः काल से ही व्यवसाय अथवा किसी आवश्यक घरेलू कार्य में विलंब होने की चिंता रहेगी लेकिन दोपहर बाद सही कार्य स्वतः ही व्यवस्थित होने लगेंगे। कार्य क्षेत्र पर अधिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा लेकिन आज आप दिन के आरम्भ में जो भी योजना बनाएंगे उसमे आज नही तो कल सफलता अवश्य मिलेगी इसलिये मेहनत में कमी ना रखे। धन के व्यर्थ कार्यो पर खर्च को रोकने में असमर्थ रहने के कर आर्थिक कारणों से असंतुष्ट ही रहेंगे कल से परिस्थिति हर प्रकार से पक्ष में रहेगी। सरकार संबंधित उलझनों में फंसने की भी संभावना है अनैतिक कार्यो से दूर रहे। धर्म कर्म में कम रुचि रहेगी। घर की बड़ी महिलाओ से कहा सुनी हो सकती है। वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू) आज के दिन परिस्थितियां उलझन में डालने वाली बन रही है। आज कोई भी कार्य करने से पहले उसकी रूप रेखा अवश्य बना कर चले साथ ही हानि लाभ की समीक्षा भी पहले ही कर ले अन्यथा समय और धन की बर्बादी हो सकती है। दिनचर्या दिशाहीन रहने के कारण जिस भी कार्य को करेंगे उसे बीच मे ही अन्य काम पड़ने पर छोड़ना पड़ेगा। व्यवसाय में भी लाभ के पास पहुचते पहुचते भ्रमित हो जाएंगे। संध्या के आस पास ही थोड़ा बहुत धन लाभ हो सकेगा। नौकरी वाले जातक आज जल्दी से काम करने के मूड में नही रहेंगे। घरलू खर्चो में संकीर्णता दिखाना कलह का कारण बनेगा। महिलाए ईर्ष्या भाव से ग्रसित रहेंगी किस्मत को दोष देंगी। अकस्मात यात्रा के योग बन रहे है। धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे) आज के दिन से आप काफी आशाएं लगा कर रहेंगे परन्तु एक समय मे अधिक कार्य करने पर मतिभ्रम का शिकार बनेंगे। कार्य व्यवसाय सामान्य रहेगा लेकिन आकस्मिक कार्य आने पर उचित समय नही दे पाएंगे अधीनस्थ सहकर्मियों का ऊपर निर्भर रहना पड़ेगा। यात्रा की योजना दिन के आरंभ से ही बनेगी इस पर व्यर्थ खर्च भी करना पड़ेगा। घर मे संतान के कारण कोई नई परेशानी खड़ी होगी लेकिन उच्च पदस्थ लोगों का सहयोग मिलने से राहत मिल जाएगी सरकार संबंधित कार्य संध्या से पहले पूर्ण करने का प्रयास करे अन्यथा कुछ समय के लिये लंबित रह जायेगा। परिवार की महिलाए विशेष कर स्त्री वर्ग मानसिक तनाव से ग्रसित रहेंगी। कंधे कमर अथवा अन्य शारीरिक जोड़ो में दर्द रह सकता है। मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी) आज भी आपका हठीला स्वभाव बनते कार्यो में विलंब करेगा लोग आपसे व्यवहार तो करेंगे लेकिन केवल स्वार्थ पूर्ति के लिए ही अंदर से आदर का भाव नही रहेगा। कार्य क्षेत्र पर सहयोग की कमी रहेगी जिससे अधिकांश कार्य अपने ही बल करने ओढ सकते है। नौकरी पेशा लोग भी अधिकारियों से नाराजगी के चलते कार्यो को मनमाने ढंग से जल्दबाजी में करेंगे। धन की आमद आज जिस समय उम्मीद नही होगी तब अकस्मात ही होगी। आज विवेकी सोच रखें अन्यथा आने वाले दिनों में इसका अशुभ परिणाम अवश्य भोगना पड़ेगा। घर के सदस्य विशेष कर स्त्री अथवा संताने अपनी मांगे मनवाने के लिये अशांति फैलाएंगी इन्हें समय पर पूरा करे वरना आने वाले कल शांति से बैठना मुश्किल होगा। संध्या बाद किसी अरिष्ट की आशंका से मन भयभीत रहेगा। कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा) आज के दिन आप पिछली गलतियों से सीख लेकर ही सभी क्षेत्र पर व्यवहार करेंगे इससे मान सम्मान में वृद्धि के साथ ही नुकसान में भी कमी आएगी। कार्य व्यवसाय अथवा सामाजिक क्षेत्र पर विरोधियो के प्रति नरम व्यवहार रखना आज कुछ ना कुछ लाभ ही देकर जाएगा। आज की मेहनत निकट भविष्य में धन लाभ के नए मार्ग खोलेगी इसमे कमी ना रखे। आज भी धन लाभ आशानुकूल रहेगा फिर भी धन संबंधित प्रसंग आने पर दिमाग गर्म होगा इससे बचे। महिला वर्ग कार्य समय पर करेंगी लेकिन अहसान भी जताएंगी। भाई बंधुओ को आपके अथवा आपको उनसे उनके सहयोग की आवश्यकता पड़ेगी व्यवहारिक रहे ईर्ष्या बनते कामो की बिगाड़ेगी। सेहत लगभग सामान्य ही रहेगी। मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची) आज के दिन शांति से बिताने की आवश्यकता है आज आप स्थित को भांप कर ही व्यवहार करेंगे परन्तु सामने वाला आपकी परिस्थिति का खयाल नही करेगा धन सम्बन्धित मामले किसी ना किसी रूप में कलह का कारण बनेंगे इन्हें प्रेम से निपटाने का प्रयास करें। कार्य व्यवसाय से धन की आमद तो होगी लेकिन कोई न कोई खर्च लगा रहने से संध्या बाद हाथ खाली ही रह जायेगा। पति पत्नी की घरेलू कलह बाहर के लोगो तक न पहुचे इसका विशेष ध्यान रहे लोग सुलझाने की जगह आनंद लेंगे। संतानो का व्यवहार भी अनापेक्षित रहने से अंदर ही अंदर परेशान रहेंगे कहल बढ़ने के डर से विरोध भी नही कर पाएंगे। सेहत ठीक ही रहेगी। मध्य रात्रि बाद स्थिति में सुधार आने लगेगा। राणा जी खेड़ांवाली🚩 #🕉️सनातन धर्म🚩 #श्री हरि #आज का राशिफल / पंचाग ☀
*‼️🚩 श्रीसीतारामचन्द्राभ्यां नमः 🚩‼️* *श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण किष्किंधाकाण्ड* *📖 ( उनचासवां- सर्ग) 📖* *✍️अङ्गद और गन्धमादनके आश्वासन देनेपर वानरोंका पुनः उत्साहपूर्वक अन्वेषण-कार्यमें प्रवृत्त होना* ======================= तदनन्तर परिश्रमसे थके हुए महाबुद्धिमान् अङ्गद सम्पूर्ण वानरोंको आश्वासन देकर धीरे-धीरे इस प्रकार कहने लगे—॥१॥ 'हमलोगोंने वन, पर्वत, नदियाँ, दुर्गम स्थान, घने जंगल, कन्दरा और गुफाएँ भीतर प्रवेश करके अच्छी तरह देख डालीं; परंतु उन स्थानोंमें हमें न तो जानकीके दर्शन हुए और न उनका अपहरण करनेवाला वह पापी राक्षस ही मिला॥२-३॥ 'हमारा समय भी बहुत बीत गया। राजा सुग्रीवका शासन बड़ा भयंकर है। अतः आपलोग मिलकर पुनः सब ओर सीताकी खोज आरम्भ करें॥४॥ 'आलस्य, शोक और आयी हुई निद्राका परित्याग करके इस प्रकार ढूँढ़ें, जिससे हमें जनककुमारी सीताका दर्शन हो सके॥५॥ 'उत्साह, सामर्थ्य और मनमें हिम्मत न हारना—ये कार्यकी सिद्धि करानेवाले सद्गुण कहे गये हैं; इसीलिये मैं आपलोगोंसे यह बात कह रहा हूँ॥६॥ 'आज भी सारे वानर खेद छोड़कर इस दुर्गम वनमें खोज आरम्भ करें और सारे वनको ही छान डालें॥७॥ 'कर्ममें लगे रहनेवाले लोगोंको उस कर्मका फल अवश्य होता दिखायी देता है; अतः अत्यन्त खिन्न होकर उद्योगको छोड़ बैठना कदापि उचित नहीं है॥८॥ 'सुग्रीव क्रोधी राजा हैं। उनका दण्ड भी बड़ा कठोर होता है। वानरो! उनसे तथा महात्मा श्रीरामसे आपलोगोंको सदा डरते रहना चाहिये॥९॥ 'आपलोगोंकी भलाईके लिये ही मैंने ये बातें कही हैं। यदि अच्छी लगें तो आप इन्हें स्वीकार करें। अथवा वानरो! जो सबके लिये उचित हो, वह कार्य आप ही लोग बतावें॥१०॥ अङ्गदकी यह बात सुनकर गन्धमादनने प्यास और थकावटसे शिथिल हुई स्पष्ट वाणीमें कहा—॥११॥ 'वानरो! युवराज अङ्गदने जो बात कही है, वह आपलोगोंके योग्य, हितकर और अनुकूल है; अतः सब लोग इनके कथनानुसार कार्य करें॥१२॥ 'हमलोग पुनः पर्वतों, कन्दराओं, शिलाओं, निर्जन वनों और पर्वतीय झरनोंकी खोज करें॥१३॥ 'महात्मा सुग्रीवने जिन स्थानोंकी चर्चा की थी, उन सबमें वन और पर्वतीय दुर्गम प्रदेशोंमें सब वानर एक साथ होकर खोज आरम्भ करें॥१४॥ यह सुनकर वे महाबली वानर उठकर खड़े हो गये और विन्ध्य पर्वतके काननोंसे व्याप्त दक्षिण दिशामें विचरने लगे॥१५॥ सामने शरद्-ऋतुके बादलोंके समान शोभाशाली रजत पर्वत दिखायी दिया, जिसमें अनेक शिखर और कन्दराएँ थीं। वे सब वानर उसपर चढ़कर खोजने लगे॥१६॥ सीताके दर्शनकी इच्छा रखनेवाले वे सभी श्रेष्ठ वानर वहाँके रमणीय लोध्रवनमें और सप्तपर्ण (छितवन) के जंगलोंमें उनकी खोज करने लगे॥१७॥ उस पर्वतके शिखरपर चढ़े हुए वे महापराक्रमी वानर ढूँढ़ते-ढूँढ़ते थक गये, परंतु श्रीरामचन्द्रजीकी प्यारी रानी सीताका दर्शन न पा सके॥१८॥ अनेक कन्दराओंवाले उस पर्वतका अच्छी तरह निरीक्षण करके सब ओर दृष्टिपात करनेवाले वे वानर उससे नीचे उतर गये॥१९॥ पृथ्वी पर उतरकर अधिक थक जाने के कारण अचेत हुए वे सभी वानर वहाँ एक वृक्ष के नीचे गये और दो घड़ी तक वहाँ बैठे रहे॥२०॥ एक मुहूर्ततक सुस्ता लेनेपर जब उनकी थकावट कुछ कम हो गयी तब वे पुनः सम्पूर्ण दक्षिण दिशामें खोजके लिये उद्यत हो गये॥२१॥ हनुमान् आदि सभी श्रेष्ठ वानर सीताके अन्वेषणके लिये प्रस्थित हो पहले विन्ध्य पर्वतके ही चारों ओर विचरने लगे॥२२॥ *इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके किष्किन्धाकाण्डमें उनचासवाँ सर्ग पूरा हुआ॥४९॥* *🚩राणा जी खेड़ांवाली🚩* *🚩 जय जय श्री सीताराम 🚩* 🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷 #🙏श्री राम भक्त हनुमान🚩 #🎶जय श्री राम🚩 #🕉️सनातन धर्म🚩 #🙏रामायण🕉
*आनन्दरामायणम्* *श्रीसीतापतये नमः* *श्रीवाल्मीकि महामुनि कृत शतकोटि रामचरितान्तर्गतं ('ज्योत्स्ना' हृया भाषा टीकयाऽटीकितम्)* *(सारकाण्डम्)द्वादश सर्गः* 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁 *(राम का राज्याभिषेक )...(दिन 107)* 🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹 राम के नेत्रसदृश प्रिय तथा ओजस्वी सुग्रीव आदि मित्र वायव्य आदि चार कोनों में विराजमान हो गये ।॥ १०५ ॥ सुग्रीव ने जलपात्र, विभीषण ने सुन्दर दर्पण, बालिनन्दन अंगद ने पानदान तथा वेगवान् जांबवान्ने अपने हाथ में श्रीराम के वस्त्रों की पिटारी ले ली। तब श्रीराम आकर गद्दी तकिया लगे हुए बहुमूल्य सिंहासन पर विराजमान हो गये। लक्ष्मण के बामभाग में संपाती, भरत के वामभाग में निषादराज, शत्रुघ्न के वामभाग में मकरध्वज तथा हनुमान् ‌के वामभाग में गरुड़ खड़े हुए। सुग्रीव आदि चारों मित्रों के बायें चित्ररथ, विजय, सुमन्त्र तथा दारक खड़े हुए ॥ १०६-११० ॥ बड़े-बड़े तेजस्वी राजे हाथों में अनेक प्रकार की भेटें लेकर आये। सब देवता, असुर, यक्ष, गन्धर्व तथा किन्नरगण वहाँ आकर उपस्थित हो गये। औषधि, पर्वत, वृक्ष, समुद्र तथा नदियाँ भी आ पहुंचीं। इन्द्र के द्वारा भेजे हुए बायु ने आकर राम को एक सुन्दर कंचन की माला पहनायी ॥ १११ ॥ ११२ ॥ पश्चात् स्वयं इन्द्र ने भी आकर सब रत्नों से युक्त तथा सोने से सुशोभित हार राजा राम को समर्पण किया ।। ११३ ॥ देवता और गम्धर्व उनके गुण गाने लगे। सब अप्सरायें और बागिनायें नाचने लगीं। देवताओ के नगाड़े बजने लगे और आकाष से फूलों की वर्षा होने लगी ॥ ११४ ॥ बाद में भरत के द्वारा पूजित होकर मैं (शिव) राम की स्तुति करने लगा ।। ११५ ।। श्रीशिवजी बोले- सुग्रीव के मित्र, परमपावन, सीता के पति, मेघ के समान श्याम शरीरवाले, करुणा के सिंधु और कमल के सदृश नेत्रोंवाले श्रीरामचन्द्र को मैं निरन्तर नमस्कार करता हूँ ॥ ११६ ॥ संसारसागर से भत्तों को पार करने वाले, वेदों का प्रचार करने वाले, धर्म के साक्षात् अवतार, भूभार को हरण करने वाले, अधिकृत स्वरूप वाले और सुख के सर्वोत्तम सागर श्रीरामचन्द्र को में सदा नमस्कार करता हूँ ॥ ११७ ॥ लक्ष्मी के साथ विलास करने वाले, जगत्‌ के निवास स्थान, लङ्का का विनाश करने वाले, भुवनों को प्रकाशित करने वाले, ब्राह्मणों को शरण देने वाले और शारदीय चन्द्रमा के समान शुभ्र हास्य करने वाले श्रीरामचन्द्र को मैं सतत नमस्कार करता हूं ॥ ११८ ॥ मन्दार की माला धारण करने वाले, रसीले बचन बोलने वाले, गुणों में महान्, सात ताल वृक्षों का भेदन करने वाले, राक्षसों के काल तथा देवलोक के पालक रामचन्द्र को मैं सदा नमस्कार करता हूँ। वेदान्त के गेय, सबके साथ समान बर्ताव करने वाले, शत्रु के मान का मर्दन करने वाले, गजेन्द्र की सवारी करने वाले तथा अन्तरहित श्रीरामचन्द्र को में सतत नमस्कार करता हूँ ॥ ११६ ॥ १२० ॥ श्यामरूप से मनोहर, नयनों से मनोहर, गुणों से मनोहर, हृदयग्राही वचन बोलने वाले, विश्ववन्दनीय और भक्तजनों की कामनाओं को पूरी करने वाले श्रीरामचन्द्र को मैं निरन्तर प्रणाम करता हूँ ।। १२१ ॥ लीलामात्र के लिए शरीर धारण करने वाले, रणस्थली-में धीर, विश्वभर के एकमात्र सारभूत, रघुवंश में श्रेष्ठ, गंभीर वाणी बोलने वाले और समस्त बादों को जीतने बाले श्रीरामचन्द्र को मैं प्रतिक्षण प्रणाम करता हूँ ॥ १२२ ॥ दुष्टजनों के लिए कठोर हृदय वाले, अपने भक्तों के प्रति विनम्रभाव वाले, सामवेद जिनका गुण-गान करता है, मनमात्र के विषय, प्रेम से गान करने योग्य तथा वचनो से ग्रहण करने लायक श्रीरामचन्द्र को मैं सर्वदा नमस्कार करता हूँ ॥ १२३ ॥ क्रमशः... जय सिया राम राणा जी खेड़ांवाली🚩 #🕉️सनातन धर्म🚩 #🎶जय श्री राम🚩 #🙏रामायण🕉 #🙏श्री राम भक्त हनुमान🚩
*पेट में जलन और पित्त बढ़ना तुरंत असर करने वाले घरेलू उपाय सर्दियों की मीठी धूप हो या गर्मियों की तपीश* 🪵🪵🪵🪵🪵🪵🪵🪵🪵🪵🪵🪵 पेट में जलन (Acidity) और पित्त बढ़ना (Excess Acid & Heat in Body) आज हर उम्र के व्यक्ति की आम समस्या बन चुकी है। आयुर्वेद इसे अम्ल पित्त, आधुनिक विज्ञान इसे हाइपर एसिडिटी कहता है। कारण वही पेट में आग का बढ़ना! तेज जलन, खट्टा डकार, मुँह कड़वा होना, सीने में सुलगन और सूख लगने पर ये संकेत बताते हैं कि आपका शरीर में पित्त दोष बढ़ चुका है। ♦️पित्त क्यों बढ़ता है?♦️ आयुर्वेद बताता है कि पित्त अग्नि का प्रतिनि‍धि है, और जब ये बढ़ता है तो पेट में मौजूद अम्ल का उत्पादन बढ़ जाता है जिससे जलन और असहजता होने लगती है। ♦️मुख्य कारण♦️ गलत भोजन संयोजन खाली पेट चाय–कॉफी बहुत तीखा, खट्टा, तला हुआ खाना देर रात भोजन तनाव और नींद की कमी तेज गर्मी और सूखे मौसम धूप और गर्म वातावरण में अधिक रहना इसकी जलन, आयुर्वेदिक शोध भी बताता है कि जंक फूड, ऑयली खाने और अनियमित आदतें पेट की श्लेष्मा झिल्ली को कमजोर कर देती हैं, जिससे जलन तेजी से बढ़ती है। Quick-Relief Remedies (जो 5 मिनट में राहत दें) 1) ठंडा दूध + मिश्री — पेट की आग बुझाने का रामबाण दूध की नैचुरल प्रोटीनस परत और मिश्री की शीतल ऊर्जा मिलकर तत्काल पित्त को नीचे गिराती है। 1 गिलास ठंडा दूध + 1 चम्मच मिश्री 5 मिनट में सीने की जलन शांत। 2) सौंफ + मिश्री + ठंडा पानी ठंडक वाला नेचुरल “कूलर” सौंफ में मेथाइल चाविकोल गैस को शांत करता है और acidity को तुरंत कम करता है। 1 चम्मच सौंफ + ½ चम्मच मिश्री ठंडे पानी में हर भोजन के बाद लें या जलन में 2 बार पिएँ। 3 नारियल पानी — शरीर की गर्मी को तुरंत नीचे लाता है नारियल पानी शरीर से Heat को Neutralize करके pH बैलेंस करता है। 1 गिलास नारियल पानी मुँह की सूखापन और जलन गायब! 4) मुलेठी पाउडर — पेट की झिल्ली को बनाता है ढाल मुलेठी में एंटी–अल्सर कंपाउंड होते हैं। ½ चम्मच मुलेठी + 1 कप गुनगुना पानी जैसे ही पीएँ, जलन शांत — पित्त को तुरंत शांत करने वाला टॉनिक। 5) एलोवेरा जूस — पेट की Heat Detox करता है एलोवेरा पेट की आग को 20–30% तक तुरंत कम करता है। 20 ml एलोवेरा जूस 30% ठंडे पानी में भोजन से पहले पिएँ — pH लेवल संतुलित। 6) मिश्री + सौंफ — मीठी ठंडक + गैस कंट्रोल गैस शरीर में गर्मी भरती है और सीधे पाचन को बिगाड़ती है, मिश्री–सौंफ इसे तुरंत रोकती है। मिश्री जितना गुड़ + एलाची सौंफ सीने की जलन और खट्ठेयापन मिटने में राहत। 7) तुलसी के पत्ते — अम्लता का नेचुरल Neutralizer तुलसी माइक्रो एंटी–एसिडिक की तरह काम करती है। 4–5 ताजे पत्ते चबाएँ! गैस, एसिडिटी और जलन सब शांत। 8) नींबू पानी — गर्मी को जड़ से काटने वाला शीतलकार नींबू शरीर की Heat को Detox करता है। 1 चम्मच नींबू पाउडर पानी में क्रॉनिक aci­dity में बेहद असरदार। कैसे पहचानें कि आपका पित्त बढ़ रहा है? बार-बार खट्टा डकार मुँह कड़वा होना सीने में जलन पेट फुलना/चिड़चिड़ापन आँखों में गर्माहट सर भारी महसूस होना ये सभी संकेत बताते हैं कि शरीर का ‘पित्त स्तर’ बढ़ा हुआ है। राणा जी खेड़ांवाली🚩 #💁🏻‍♀️घरेलू नुस्खे #🌿आयुर्वेद #🕉️सनातन धर्म🚩
*श्रीमद्वाल्मीकीय–रामायण* *पोस्ट–612* 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 *(उत्तरकाण्ड–सर्ग-69)* 🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹 *आज की कथा में:–शत्रुघ्न और लवणासुर का युद्ध तथा लवण का वध* महामना शत्रुघ्न का वह भाषण सुनकर लवणासुर को बड़ा क्रोध हुआ और बोला–‘अरे! खड़ा रह, खड़ा रह।’ वह हाथ पर हाथ रगड़ता और दाँत कटकटाता हुआ रघुकुल के सिंह शत्रुघ्न को बारंबार ललकारने लगा। भयंकर दिखायी देने वाले लवण को इस प्रकार बोलते देख देवशत्रुओं का नाश करने वाले शत्रुघ्न ने यह बात कही– शत्रुघ्न ने कहा–‘राक्षस! जब तूने दूसरे वीरों को पराजित किया था, उस समय शत्रुघ्न का जन्म नहीं हुआ था। अतः आज मेरे इन बाणों की चोट खाकर तू सीधे यमलोक की राह ले। पापात्मन्! जैसे देवताओं ने रावण को धराशायी हुआ देखा था, उसी तरह विद्वान् ब्राह्मण और ऋषि आज रणभूमि में मेरे द्वारा मारे गये तुझ दुराचारी राक्षस को भी देखें। निशाचर! आज मेरे बाणों से दग्ध होकर जब तू धरती पर गिर जायगा, उस समय इस नगर और जनपद में भी सबका कल्याण ही होगा। आज मेरी भुजाओं से छूटा हुआ वज्र के समान मुखवाला बाण उसी तरह तेरी छाती में धँस जायगा, जैसे सूर्य की किरण कमलकोश में प्रविष्ट हो जाती है।’ शत्रुघ्न के ऐसा कहने पर लवण क्रोध से मूर्च्छित-सा हो गया और एक महान् वृक्ष लेकर उसने शत्रुघ्न की छाती पर दे मारा; परन्तु शत्रुघ्न ने उसके सैकड़ों टुकड़े कर दिये। वह वार खाली गया देख उस बलवान् राक्षस ने पुन: बहुत-से वृक्ष ले-लेकर शत्रुघ्न पर चलाये। परन्तु शत्रुघ्न भी बड़े तेजस्वी थे। उन्होंने अपने ऊपर आते हुए उन बहुसंख्यक वृक्षों में से प्रत्येक को झुकी हुई गाँठ वाले तीन-तीन या चार-चार बाण मारकर काट डाला। फिर पराक्रमी शत्रुघ्न ने उस राक्षस पर बाणों की झड़ी लगा दी, किन्तु वह निशाचर इससे व्यथित या विचलित नहीं हुआ। तब बल-विक्रमशाली लवण ने हँसकर एक वृक्ष उठाया और उसे शूरवीर शत्रुघ्न के सिर पर दे मारा। उसकी चोट खाकर शत्रुघ्न के सारे अङ्ग शिथिल हो गये और उन्हें मूर्च्छा आ गयी। वीर शत्रुघ्न के गिरते ही ऋषियों, देवसमूहों, गन्धर्वो और अप्सराओं में महान् हाहाकार मच गया। शत्रुनजी को भूमि पर गिरा देख लवण ने समझा ये मर गये, इसलिये अवसर मिलने पर भी वह राक्षस अपने घर में नहीं गया और न शूल ही ले आया। उन्हें धराशायी हुआ देख सर्वथा मरा हुआ समझकर ही वह अपनी उस भोजन सामग्री को एकत्र करने लगा। दो ही घड़ी में शत्रुघ्न को होश आ गया। वे अस्त्र-शस्त्र लेकर उठे और फिर नगर द्वार पर खड़े हो गये। उस समय ऋषियोंने उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। तदनन्तर शत्रुघ्न ने उस दिव्य, अमोघ और उत्तम बाण को हाथ में लिया, जो अपने घोर तेज से प्रज्वलित हो दसों दिशाओं में व्याप्त सा हो रहा था। उसका मुख और वेग वज्र के समान था। वह मेरु और मन्दराचल के समान भारी था। उसकी गाँठे झुकी हुई थीं तथा वह किसी भी युद्ध में पराजित होने वाला नहीं था। उसका सारा अङ्ग रक्तरूपी चन्दन से चर्चित था। पंख बड़े सुन्दर थे। वह बाण दानवराजरूपी पर्वतराजों एवं असुरों के लिये बड़ा भयंकर था। वह प्रलयकाल उपस्थित होने पर प्रज्वलित हुई कालाग्नि के समान उद्दीप्त हो रहा था। उसे देखकर समस्त प्राणी त्रस्त हो गये। देवता, असुर, गन्धर्व, मुनि और अप्सराओं के साथ सारा जगत् अस्वस्थ हो ब्रह्माजी के पास पहुँचा। जगत् के उन सभी प्राणियों ने वर देने वाले देवदेवेश्वर प्रपितामह ब्रह्माजी से कहा– सभी देवता बोले–‘भगवन्! समस्त लोकों के संहार की सम्भावना से देवताओं पर भी भय और मोह छा गया है। देव! कहीं लोकों का संहार तो नहीं होगा अथवा प्रलयकाल तो नहीं आ पहुँचा है ? प्रपितामह! संसार की ऐसी अवस्था न तो पहले कभी देखी गयी थी और न सुनने में ही आयी थी।’ उनकी यह बात सुनकर देवताओं का भय दूर करने वाले लोकपितामह ब्रह्मा ने प्रस्तुत भय का कारण बताते हुए कहा। ब्रह्माजी मधुर वाणी में बोले–‘सम्पूर्ण देवताओ! मेरी बात सुनो। आज शत्रुघ्न ने युद्धस्थल में लवणासुर का वध करने के लिये जो बाण हाथ में लिया है, उसी के तेज से हम सब लोग मोहित हो रहे हैं। ये श्रेष्ठ देवता भी उसी से घबराये हुए हैं। पुत्रो! यह तेजोमय सनातन बाण आदिपुरुष लोककर्ता भगवान् विष्णु का है। जिससे तुम्हें भय प्राप्त हुआ है। परमात्मा श्रीहरि ने मधु और कैटभ इन दोनों दैत्यों का वध करने के लिये इस महान् बाण की सृष्टि की थी। एकमात्र भगवान् विष्णु ही इस तेजोमय बाण को जानते हैं; क्योंकि यह बाण साक्षात् परमात्मा विष्णु की ही प्राचीन मूर्ति है। अब तुम लोग यहाँ से जाओ और श्रीरामचन्द्रजी के छोटे भाई महामनस्वी वीर शत्रुघ्न के हाथ से राक्षसप्रवर लवणासुर का वध होता देखो।’ देवाधिदेव ब्रह्माजी का यह वचन सुनकर देवता लोग उस स्थान पर आये, जहाँ शत्रुघ्नजी और लवणासुर दोनों का युद्ध हो रहा था। शत्रुघ्नजी के द्वारा हाथ में लिये गये उस दिव्य बाण को सभी प्राणियों ने देखा। वह प्रलयकाल के अग्नि के समान प्रज्वलित हो रहा था। आकाश को देवताओं से भरा हुआ देख रघुकुलनन्दन शत्रुघ्नने बड़े जोर से सिंहनाद करके लवणासुर की ओर देखा। महात्मा शत्रुघ्न के पुन: ललकारने पर लवणासुर क्रोध से भर गया और फिर युद्ध के लिये उनके सामने आया। तब धनुर्धरों में श्रेष्ठ शत्रुघ्नजी ने अपने धनुष को कानतक खींचकर उस महाबाण को लवणासुर के विशाल वक्ष:स्थल पर चलाया। वह देवपूजित दिव्य बाण तुरन्त ही उस राक्षस के हृदय को विदीर्ण करके रसातल में घुस गया तथा रसातल में जाकर वह फिर तत्काल ही इक्ष्वाकु कुलनन्दन शत्रुघ्नजी के पास आ गया। शत्रुघ्नजी के बाण से विदीर्ण होकर निशाचर लवण वज्र के मारे हुए पर्वत के समान सहसा पृथ्वी पर गिर पड़ा। लवणासुर के मारे जाते ही वह दिव्य एवं महान् शूल सब देवताओं के देखते-देखते भगवान् रुद्र के पास आ गया। इस प्रकार उत्तम धनुष-बाण धारण करने वाले रघुकुल के प्रमुख वीर शत्रुघ्न एक ही बाण के प्रहार से तीनों लोकों के भय को नष्ट करके उसी प्रकार सुशोभित हुए, जैसे त्रिभुवन का अन्धकार दूर करके सहस्र किरणधारी सूर्यदेव प्रकाशित हो उठते हैं। ‘सौभाग्य की बात है कि दशरथनन्दन शत्रुघ्न ने भय छोड़कर विजय प्राप्त की और सर्प के समान लवणासुर मर गया।’ ऐसा कहकर देवता, ऋषि, नाग और समस्त अप्सराएँ उस समय शत्रुघ्नजी की भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगीं। इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदि काव्य के उत्तरकाण्ड में उनहत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ॥६९॥ राणा जी खेड़ांवाली🚩 ॐश्रीसीतारामचन्द्राभ्यां नमः🚩 #🙏श्री राम भक्त हनुमान🚩 #🙏रामायण🕉 #🕉️सनातन धर्म🚩 #🎶जय श्री राम🚩 #श्री हरि
*मित्रो ये प्रस्तुति श्रीमद्भागवत का सार है, इतने विशाल ग्रंथ का सार एक प्रस्तुति में करना संभव नही था इसलिए हमने इस कथा के सार को एक क्रम दिया है, जो कि सात प्रस्तुतियों में है, पढ़े सातवीं ओर अंतिम प्रस्तुति,,,* 🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵 मित्रों आप , सत्य बोलने का संकल्प लिजिये, ज्यादा से ज्यादा सत्य बोलने का प्रयास करना चाहिये, ब्रह्मचर्य का पालन करें, संयमित जीवन जिये, प्रातः काल जल्दी उठने का प्रयास करें, उठते ही हाथ-पांव धोकर पलंग के पास बैठ जाइये, विचार करें कि मैं भगवान् का एक पार्षद हूँ, एक भक्त हूँ, ऐसा सोचकर परमात्मा का चिन्तन करें, परमात्मा के गुणों का नित्य चिन्तन करे। चिन्तन कैसे करें? परमात्मा के चरणों में ब्रज अंकुश ध्वजा का चिह्न है, ये परमात्मा के चरण हैं, चरणों के चिन्तन की बात पहले क्यों कही कपिल ने? क्योंकि हमारा जो चित है ना सज्जनों, इसे चित क्यों कहते है? क्योंकि जन्म-जन्माँतरों की वासना की गठरी हमारे चित में चिपकी हुई है, कर्मों की गठरी चित में चिपकी हुई है, जब श्रीकृष्ण के चरणों का चिन्तन करेंगे तो कृष्ण पहले अपने चरणों को हमारे चित में स्थापित करेंगे। उनके चरणों की ध्वजा, अंकुश, ब्रज आदि के द्वारा हमारे पाप की गठरी कट-कटकर हट जायेगी और हमारा चित निर्मल हो जायेगा, जब परमात्मा को हम ह्रदय रूपी घर में बिठाना चाहते हैं और उसमें काम, क्रोध, मत्स्य, वासना जैसी गंदगी भरी होगी तो क्या परमात्मा कभी आयेंगे? बिल्कुल नहीं आयेंगे, इसलिये पहले उनके चरणों का चिन्तन करें और चिन्तन के माध्यम से ह्रदय को शुद्ध करें। तब उस ह्रदय में मेरे गोविन्द का प्राकट्य हो सकता है, पहले चरणों का चिन्तन करें, घुटनों का चिन्तन करें, भगवान् के कटि प्रदेश का चिन्तन करें, प्रभु के उदर का चिन्तन करें, नाभि का चिन्तन करें, कण्ठ का चिन्तन करें और धीरे-धीरे मेरे गोविन्द के मुखार विन्द का चिन्तन करें। हासं हरेरवनताखिललोकतीव्र शोकाश्रुसागर विशोषणमत्युदारम्। सम्मोहनाय रचितं निजमाययास्य भ्रूमण्डलं मुनिकृते मकरध्वजस्य।। हंसी से परिपूर्ण प्रभु के मुखार विन्द का चिन्तन करें, क्योंकि शोकरूपी सागर में डूबा हुआ जो मनुष्य है, उसे शोक सागर से निकालकर आनन्द के महासागर में पहुंचाने की ताकत केवल परमात्मा की हंसी में हैं, हंसते हुए भगवान् के चिन्तन की बात क्यों कहीं? सज्जनों! श्रीकृष्ण के चरित्र में जितने संकट आये, जितने भी परमात्मा के चरित्र है, उनमें श्रीकृष्ण के चरित्र में जितना संकट आया, उतना संकट किसी भगवान् के जीवन में कभी नहीं आया, आप भगवान् श्रीकृष्ण के चरित्र पर एक नजर डालकर देखे- इनका जन्म कहां हुआ? जहाँ डाकुओं को बंद किया जाता है, जेलखाने में तो कन्हैया पैदा हुये जेलखाने में, जन्म लेते ही गोकुल भागना पड़ा, वहाँ केवल सात दिन के थे तो पूतना मारने आ गयी, छः महीने के थे तब शंकटासुर राक्षस मारने आ गया, एक वर्ष के थे तो तृणावर्त मारने आया। यमुना में कूद कर कालियादमन किया, उसके बाद गिरिराज को उठाया, अघासुर, बकासुर, व्योमासुर, धेनुकासुर, केशी आदि कई राक्षसों को मारा, ग्यारह वर्ष छप्पन दिन के कृष्ण ने सैंकड़ों राक्षसों से युद्ध किया, कंस का मर्दनकर उद्धार किया, मथुरा में भी शांति नहीं मिली, जरासंध ने मथुरा को घेर लिया तो उसका भी वध करवाया, द्वारिका नामक नगरी बसा कर द्वारिका चले गये। द्वारिका में शान्ति से बैठे थे कि पांडव बोले हम संकट में हैं हमारी रक्षा करो, कौरव-पांडवों में छिड़े युद्ध में कन्हैया ने पांडवों को विजय श्री प्रदान कराई, अब थोड़ा शान्ति से बैठे थे, चलो सुख से जीवन व्यतीत होगा तो घर में ही झगड़ा शुरू हो गया, यदुवंशी एक-दूसरे पर वार करने लगे, घर में भी शान्ति नहीं मिली, कृष्ण की आँखों के सामने निन्यानवे लाख से भी ज्यादा संख्या वाले यदुवंशी ऐसे लड-लडकर, कट-कटकर मर गये। एक भी दिन श्री कृष्ण का सुख और शांति से व्यतीत नहीं हुआ, संकट पर आए संकटों का निवारण करने में ही सम्पूर्ण जीवन बीत गया, इतने संकट आने पर भी कभी आपने श्रीकृष्ण को अपने सिर पर हाथ धर कर कभी चिन्ता करते नहीं सुना, भगवान् कभी चिन्ता में डूबे हो ऐसा शास्त्रों में कहीं पर नहीं लिखा, मुस्कुराते ही रहते थे हमेशा, इसका मतलब क्या है? श्री गोविन्द कहना चाहते है कि हमेशा मुस्कुराते रहे, सदैव प्रसन्न रहना ही मेरी सर्वोपरि भक्ति है, आपने सुना होगा उल्लू को दिन में दिखायी नहीं देता और जो कौआ होता है, उसे रात में दिखायी नहीं देता, उल्लू चाहता है कि हमेशा रात बनी रहे तो अच्छा, कौआ चाहता है कि दिन बना रहे तो अच्छा है, लेकिन उल्लू और कौए के चाहने से दिन-रात कभी बदलेगा, ये कभी हो सकता है क्या? रात्रि के बाद दिन और दिन के बाद रात्रि तो आती ही रहेगी, ये क्रम है संसार का, दुःख और सुख आते-जाते ही रहेंगे, अतः दोनो परिस्थतियों में एक से रहो, जैसी परिस्थितियां जीवन में आयें उनका डटकर मुकाबला करो, उनसे घबराओ नहीं, जो परिस्थितियों से घबरा जाता है, वो मानव जीवन में कभी प्रगति नहीं कर सकता, निराश न होइये सफलता अवश्य मिलेगी। हर जलते दीप के तले अंधेरा होता है। हर अंधेरी रात के पीछे सवेरा होता है।। लोग घबरा जाते हैं मुसीबतों को देखकर। हर मुसीबतों के बाद खुशी का तराना तो आता है।। दुःख से घबराना नहीं है अपने आप दुःख शान्त हो जायेगा, केवल सामना किजिये, भगवान् कपिल कहते हैं- रोज चिन्तन करो, मुस्कुराते हुए प्रभु के चेहरे का चिन्तन करो, भगवान् कपिल कहते है- जो ऐसा मानसिक पूजन नियमित करते है, धीरे-धीरे उसका मन एकाग्र हो जाता है, जिसमें आप नजर डालोगे उसमें आपको परमात्मा दिखेगा, इसलिये मुस्कराते हुयें जीवन को भगवान् की अनुकम्पा के साथ जियों। मित्रो! आप सभी ने भागवतजी के एक एक प्रसंग को अब तक भक्ति के साथ स्वाध्याय व चिन्तन और मनन किया, भगवान् श्रीकृष्णजी आप सभी को आरोग्य और सौभाग्य प्रदान करें, , इति श्री भागवत् सार सम्पूर्णम्। जय श्री कृष्ण! जय श्री हरि! ओऊम् नमो भगवते वासुदेवाय् राणा जी खेड़ांवाली🚩 #🌸 जय श्री कृष्ण😇 #🕉️सनातन धर्म🚩
*कैसे शुरू हुए कृष्ण और शुक्ल पक्ष* 🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿 पंचांग के अनुसार हर माह में तीस दिन होते हैं और इन महीनों की गणना सूरज और चंद्रमा की गति के अनुसार की जाती है। चन्द्रमा की कलाओं के ज्यादा या कम होने के अनुसार ही महीने को दो पक्षों में बांटा गया है जिन्हे कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष कहा जाता है। पूर्णिमा से अमावस्या तक बीच के दिनों को कृष्णपक्ष कहा जाता है, वहीं इसके उलट अमावस्या से पूर्णिमा तक का समय शुक्लपक्ष कहलाता है। दोनों पक्ष कैसे शुरू हुए उनसे जुड़ी पौराणिक कथाएं भी हैं। *कृष्ण और शुक्ल पक्ष से जुड़ी कथा* *इस प्रकार हुआ कृष्णपक्ष का सुभारम्भ* पौराणिक ग्रंथों के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी सत्ताईस बेटियों का विवाह चंद्रमा से कर दिया। ये सत्ताईस बेटियां सत्ताईस स्त्री नक्षत्र हैं और अभिजीत नामक एक पुरुष नक्षत्र भी है। लेकिन चंद्र केवल रोहिणी से प्यार करते थे। ऐसे में बाकी स्त्री नक्षत्रों ने अपने पिता से शिकायत की कि चंद्र उनके साथ पति का कर्तव्य नहीं निभाते। दक्ष प्रजापति के डांटने के बाद भी चंद्र ने रोहिणी का साथ नहीं छोड़ा और बाकी पत्नियों की अवहेलना करते गए। तब चंद्र पर क्रोधित होकर दक्ष प्रजापति ने उन्हें क्षय रोग का शाप दिया। क्षय रोग के कारण सोम या चंद्रमा का तेज धीरे-धीरे कम होता गया। कृष्ण पक्ष की शुरुआत यहीं से हुई। *ऐसे शुरू हुआ शुक्लपक्ष* कहते हैं कि क्षय रोग से चंद्र का अंत निकट आता गया। वे ब्रह्मा के पास गए और उनसे सहायता मांगी। तब ब्रह्मा और इंद्र ने चंद्र से शिवजी की आराधना करने को कहा। शिवजी की आराधना करने के बाद शिवजी ने चंद्र को अपनी जटा में जगह दी। ऐसा करने से चंद्र का तेज फिर से लौटने लगा। इससे शुक्ल पक्ष का निर्माण हुआ। चूंकि दक्ष ‘प्रजापति’ थे। चंद्र उनके शाप से पूरी तरह से मुक्त नहीं हो सकते थे। शाप में केवल बदलाव आ सकता था। इसलिए चंद्र को बारी-बारी से कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में जाना पड़ता है। दक्ष ने कृष्ण पक्ष का निर्माण किया और शिवजी ने शुक्ल पक्ष का। *कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के बीच अंतर* जब हम संस्कृत शब्दों शुक्ल और कृष्ण का अर्थ समझते हैं, तो हम स्पष्ट रूप से दो पक्षों के बीच अंतर कर सकते हैं। शुक्ल उज्ज्वल व्यक्त करते हैं, जबकि कृष्ण का अर्थ है अंधेरा। जैसा कि हमने पहले ही देखा, शुक्ल पक्ष अमावस्या से पूर्णिमा तक है, और कृष्ण पक्ष, शुक्ल पक्ष के विपरीत, पूर्णिमा से अमावस्या तक शुरू होता है। *कौन सा पक्ष शुभ है?* धार्मिक मान्यता के अनुसार, लोग शुक्ल पक्ष को आशाजनक और कृष्ण पक्ष को प्रतिकूल मानते हैं। यह विचार चंद्रमा की जीवन शक्ति और रोशनी के संबंध में है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्ल पक्ष की दशमी से लेकर कृष्ण पक्ष की पंचम तिथि तक की अवधि ज्योतिषीय दृष्टि से शुभ मानी जाती है। इस समय के दौरान चंद्रमा की ऊर्जा अधिकतम या लगभग अधिकतम होती है - जिसे ज्योतिष में शुभ और अशुभ समय तय करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। *नोट:- उपरोक्त सन्देश से यह तथ्य स्पष्ट हैं कि प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्थदशी, पूर्णिमा तथा प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी व पंचमी सभी कार्यो के लिए शुभ मानी जाती हैं।* *राणा जी खेड़ांवाली🚩* #🕉️सनातन धर्म🚩 #श्री हरि
*महादेव_१* *|| भगवान् शिवके द्वारा सृष्टि ||* 🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱 जिस समय सर्वत्र केवल अन्धकार-ही-अन्धकार था; न सूर्य दिखायी देते थे न चन्द्रमा, अन्यान्य ग्रह-नक्षत्रोंका भी कहीं पता नहीं था; न दिन होता था न रात। अग्नि, पृथ्वी, जल और वायुकी भी सत्ता नहीं थी — उस समय एकमात्र सत् ब्रह्म अर्थात् सदाशिवकी ही सत्ता विद्यमान थी, जो अनादि और चिन्मय कही जाती है। उन्हीं भगवान् सदाशिवको वेद, पुराण और उपनिषद् तथा संत-महात्मा आदि ईश्वर तथा सर्वलोकमहेश्वर कहते हैं। एक बार भगवान् शिवके मनमें सृष्टि रचनेकी इच्छा हुई। उन्होंने सोचा कि मैं एकसे अनेक हो जाऊँ। यह विचार आते ही सबसे पहले परमेश्वर शिवने अपनी परा शक्ति अम्बिकाको प्रकट किया तथा उनसे कहा कि हमें सृष्टिके लिये किसी दूसरे पुरुषका सृजन करना चाहिये, जिसके कंधेपर सृष्टि-संचालनका महान् भार रखकर हम आनन्दपूर्वक विचरण कर सकें। ऐसा निश्चय करके शक्तिसहित परमेश्वर शिवने अपने वाम अङ्गके दसवें भागपर अमृत मल दिया। वहाँसे तत्काल एक दिव्य पुरुष प्रकट हुआ। उसका सौन्दर्य अतुलनीय था। उसमें सत्त्वगुणकी प्रधानता थी। वह परम शान्त तथा अथाह सागरकी तरह गम्भीर था। रेशमी पीताम्बरसे उसके अङ्गकी शोभा द्विगुणित हो रही थी। उसके चार हाथोंमें शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित हो रहे थे। उस दिव्य पुरुषने भगवान् शिवको प्रणाम करके कहा कि 'भगवन् ! मेरा नाम निश्चित कीजिये और काम बताइये।' उसकी बात सुनकर भगवान् शङ्करने मुसकराकर कहा— 'वत्स ! व्यापक होनेके कारण तुम्हारा नाम विष्णु होगा। सृष्टिका पालन करना तुम्हारा कार्य होगा। इस समय तुम उत्तम तप करो।' भगवान् शिवका आदेश प्राप्तकर श्रीविष्णु कठोर तपस्या करने लगे। उस तपस्याके श्रमसे उनके अङ्गोंसे जल-धाराएँ निकलने लगीं, जिससे सूना आकाश भर गया। अंततः उन्होंने थककर उसी जलमें शयन किया। जल अर्थात् 'नार' में शयन करनेके कारण ही श्रीविष्णुका एक नाम 'नारायण' हुआ। तदनन्तर सोये हुए नारायणकी नाभिसे एक उत्तम कमल प्रकट हुआ। उसी समय भगवान् शिवने अपने दाहिने अङ्गसे चतुर्मुख ब्रह्माको प्रकट करके उस कमलपर डाल दिया। महेश्वरकी मायासे मोहित हो जानेके कारण बहुत दिनोंतक ब्रह्माजी उस कमलके नालमें भ्रमण करते रहे, किंतु उन्हें अपने उत्पत्तिकर्ताका पता नहीं लगा। आकाशवाणीद्वारा तपका आदेश मिलनेपर ब्रह्माजीने अपने जन्मदाताके दर्शनार्थ बारह वर्षोंतक कठोर तपस्या की। तत्पश्चात् उनके सम्मुख भगवान् विष्णु प्रकट हुए। परमेश्वर शिवकी लीलासे उस समय वहाँ श्रीविष्णु और ब्रह्माजीके बीच विवाद छिड़ गया। सहसा उन दोनोंके मध्य एक दिव्य अग्निस्तम्भ प्रकट हुआ। बहुत प्रयासके बाद भी ब्रह्मा और विष्णु उस अग्निस्तम्भके आदि-अन्तका पता नहीं लगा सके। अंततः थककर भगवान् विष्णुने प्रार्थना किया कि 'महाप्रभो ! हम आपके स्वरूपको नहीं जानते। आप जो कोई भी हों, हमें दर्शन दीजिये।' भगवान् विष्णुकी स्तुति सुनकर महेश्वर सहसा प्रकट हो गये और बोले— 'सुरश्रेष्ठगण ! मैं तुम दोनोंके तप और भक्तिसे भलीभाँति संतुष्ट हूँ। ब्रह्मन् ! तुम मेरी आज्ञासे जगत्‌की सृष्टि करो और वत्स विष्णु ! तुम इस चराचर जगत्‌का पालन करो। तदनन्तर परमेश्वर शिवने अपने हृदयभागसे रुद्रको प्रकट किया और उन्हें संहारका दायित्व सौंपकर वहीं अंतर्धान हो गये। हर हर महादेव राणा जी खेड़ांवाली🚩 #🕉️सनातन धर्म🚩 #हर हर महादेव
*पौष मास का महात्मय* 🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳 हमारे सनातन हिंदू धर्मग्रन्थों में प्रत्येक महीने के महत्व को भली प्रकार से दर्शाया गया है। हमारी हिंदू संस्कृति में बारहों मास व्रत-पर्व- त्यौहारों से युक्त हैं। पौष मास धनु- संक्रान्ति होती है। अत: इस मास में भगवत्पूजन का विशेष महत्त्व है। दक्षिण भारत के मन्दिरों में धनुर्मास का उत्सव मनाया जाता है। मान्यता है कि पौष कृष्ण अष्टमी को श्राद्ध करके ब्राह्मण भोजन कराने से श्राद्ध का उत्तम फल मिलता है। ऐसी मान्यता है कि पौष मास में भगवान भास्कर ग्यारह हजार रश्मियों के साथ तपकर सर्दी से राहत देते हैं। इनका वर्ण रक्त के समान है। शास्त्रों में ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य को ही भग कहा गया है और इनसे युक्त को ही भगवान माना गया है। यही कारण है कि पौष मास का भग नामक सूर्य साक्षात परब्रह्म का ही स्वरूप माना गया है। पौष मास में सूर्य को अर्ध्य देने तथा उसके निमित्त व्रत करने का भी विशेष महत्व धर्मशास्त्रों में उल्लेखित है। इस माह में ज़ब सूर्य भगवान धनु राशि में आते है तब से मकर संक्रांति तक एक महीने के समय को खर मास के नाम से जाना जाता हैं जिसमें कोई शुभ काम नहीं होता है. खर मास लगने के जब 15 दिन हो जाते हैं तब किसी भी एक दिन तेल के पकौड़े बनाकर चील-कबूतरों को खिला देते हैं. कुछ पकौड़े डकौत को भी दे देने चाहिए. अपने आसपास के लोगों तथा जाननों वालों को पकौड़े भोग के रुप में बाँटने चाहिए और उसी के बाद कोई शुभ काम करना चाहिए। इस वर्ष 15 दिसंबर से 14 जनवरी तक का समय खरमास रहेगा। पौष नाम क्यों पड़ा 〰️〰️〰️〰️〰️〰️ विक्रम संवत में पौष का महीना दसवां महीना होता है। भारतीय महीनों के नाम नक्षत्रों पर आधारित हैं। दरअसल जिस महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के आधार पर रखा जाता है। पौष मास की पूर्णिमा को चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है इसलिए इस मास को पौष का मास कहा जाता है। पौष कृष्ण अष्टमी 12 दिसम्बर 👉 पौष कृष्ण अष्टमी को श्राद्ध करके ब्राह्मण भोजन कराने से श्राद्ध का उत्तम फल मिलता है। सफला एकादशी, 15 दिसम्बर 👉 पौष कृष्ण एकादशी सफला एकादशी कहलाती है इस दिन उपवासपूर्वक भगवान का पूजन करना चाहिये । इस व्रत को करने से सभी कार्य सफल हो जाते हैं। सुरूप द्वादशी, 16 दिसम्बर 👉 पौषमास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को सुरूपा द्वादशी का व्रत होता है। यदि इसमें पुष्यनक्षत्र का योग हो तो विशेष फलदायी होता है। इस व्रत का गुजरात प्रान्त में विशेष रूप से प्रचलन है। सौन्दर्य, सुख, सन्तान और सौभाग्य प्राप्ति के लिये इसका अनुष्ठान किया जाता है। आरोग्यव्रत, 21 दिसम्बर 👉 विष्णुधर्मोत्तरपुराण में वर्णन मिलता है कि पौष शुक्ल द्वितीया को आरोग्यप्राप्ति के लिये 'आरोग्यव्रत' किया जाता है। इस दिन गोशृङ्गोदक (गायों की सींगों को धोकर लिये हुए जल से स्नान करके सफेद वस्त्र धारणकर सूर्यास्त के बाद बालेन्दु (द्वितीया तिथि के चन्द्रमा) का गन्ध आदि से पूजन करे। जब तक चन्द्रमा अस्त न हों तब तक गुड़, दही, परमान्न (खीर) और लवण (नमक) से ब्राह्मणों को संतुष्टकर केवल गोरस (छाँछ) पीकर जमीन पर शयन करे। इस प्रकार एक वर्ष तक प्रत्येक शुक्ल पक्ष वाली द्वितीया को चन्द्रपूजन करके बारहवें महीने (मार्गशीर्ष) में इक्षुरस से भरा घड़ा, यथाशक्ति सोना (स्वर्ण) और वस्त्र ब्राह्मण को देकर उन्हें भोजन कराने से रोगों की निवृति और आरोग्यता की प्राप्ति होती है। ब्रह्म गौरी पूनम व्रत, 22 दिसम्बर 👉 इस व्रत को पौष माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया को किया जाता है. इस तिथि पर जगजननी गौरी का षोडशोपचार से पूजन किया जाता है. इस व्रत को मुख्य रुप से स्त्रियों द्वारा ही किया जाता है. इस गौरी पूजन व व्रत से पति व पुत्र दोनों विरंजीवी होते हैं और व्रत करने वाली के लिए परम धाम भी सुगम हो जाता है। मार्तण्डसप्तमी, 27 दिसम्बर 👉 पौष शुक्ल सप्तमी को 'मार्तण्डसप्तमी' कहते हैं। इस दिन भगवान सूर्य की प्रसन्नता के उद्देश्य से हवन करके गोदान करने से वर्षपर्यन्त सूर्यदेव की कृपा प्राप्त होती है। पुत्रदा एकादशी, 30 दिसम्बर 👉 पौष शुक्ल एकादशी 'पुत्रदा' नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन उपवास से सुलक्षण पुत्र की प्राप्ति होती है । भद्रावती नगरी के राजा वसुकेतु ने इस व्रत के अनुष्ठान से सर्वगुणसम्पन्न पुत्र प्राप्त किया था। पौष शुक्ल त्रयोदशी, 01 जनवरी 👉 को भगवान के पूजन तथा घृतदान का विशेष महत्त्व है। माघमास के स्नान का प्रारम्भ, 03 जनवरी 👉 पौष की पूर्णिमा से होता है। इस दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर मधुसूदन भगवान को स्नान कराया जाता है, सुन्दर वस्त्रों से सुसज्जित किया जाता है। उन्हें मुकुट, कुण्डल, किरीट, तिलक, हार तथा पुष्पमाला आदि धारण कराये जाते हैं। फिर धूप-दीप, नैवेद्य निवेदितकर आरती उतारी जाती है। पूज़न के अनन्तर ब्राह्मण भोजन तथा दक्षिणादान का विधान है। केवल इस एक दिन का ही स्नान सभी वैभव तथा दिव्यलोक की प्राप्ति कराने वाला कहा गया है। पौषमास के रविवार👉 07, 14, 21 व 28 दिसम्बर को व्रत करके भगवान् सूर्य के निमित्त अर्घ्यदान दिया जाता है तथा एक समय नमक रहित भोजन किया जाता है। इस प्रकार यह पौष मास का पावन माहात्म्य है। पौष के महीने में सूर्य होते है उत्तरायण 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ पौष के महीने में 21 दिसम्बर से सूर्य नारायण उत्तरायण हो जाते हैं. गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जो व्यक्ति सूर्य के उत्तरायण में, दिन के उजाले में, शुक्ल पक्ष में अपने प्राण त्यागता है, वो मृत्यु लोक में लौट कर नहीं आता. यही वजह है कि महाभारत युद्ध में बाणों से छलनी भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने के बाद ही अपने प्राण त्यागे थे. जब उन्हें बाण लगे थे, तब सूर्य दक्षिणायन थे, तब उन्होंने बाणों की शैय्या पर लेटकर खासतौर पर सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया था. ऐसा माना जाता है कि इस वजह से भीष्म पितामह को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। ऐसे करें सूर्य देव की उपासना 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ इस माह में प्रतिदिन सबसे पहले नित्य प्रातः स्नान करने के बाद सूर्य को जल अर्पित करना चाहिए। 👉 इसके बाद ताम्बे के पात्र से जल दें। 👉 जल में रोली और लाल फूल डालें। 👉 इसके बाद सूर्य के मंत्र "ॐ आदित्याय नमः" का जाप करें। 👉 इस माह नमक का सेवन कम से कम करना चाहिए। खान-पान में रखें सावधानी 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ 👉इस माह में चीनी की बजाय गुड़ का सेवन करें। 👉 खाने पीने में मेवे और स्निग्ध चीजों का इस्तेमाल करें। 👉 इस महीने में बहुत ज्यादा तेल घी का प्रयोग भी उत्तम नहीं होगा। 👉 अजवाइन, लौंग और अदरक का सेवन लाभकारी होता है। 👉 इस महीने में ठन्डे पानी का प्रयोग, स्नान में गड़बड़ी और अत्यधिक खाना खतरनाक हो सकता है। पौष मास के सभी व्रत पर्वो की तारीख 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ शुक्र, 05 दिसंबर 👉 पौष मास कृष्ण पक्ष आरम्भ, रसिक माधुरी जयन्ती, रवि, 07 दिसम्बर 👉 संकष्ट चतुर्थी। रवि, 14 दिसम्बर 👉श्री पार्श्वनाथ जयन्ती (जैन)। सोम,15 दिसम्बर 👉 सफला एकादशी व्रत (सबका), कल्पवास (प्रयागराज) आरम्भ, धनु मल मास आरम्भ। मंगल, 16 दिसम्बर 👉 सुरूप द्वादशी, अन्नपूर्णा व्रत समाप्त। बुध, 17 दिसम्बर 👉 प्रदोष व्रत, श्री चन्द्र प्रभु जयन्ती। गुरु,18 दिसम्बर 👉 मासिक शिवरात्री। शुक्र, 19 दिसम्बर 👉 देव-पितृ कार्ये पौष सोमवती अमावस्या, कालबा देवी यात्रा (मुम्बई)। शनि 20 दिसम्बर 👉 पौष मास शुक्ल पक्ष आरम्भ। रवि 21 दिसम्बर 👉 सूर्य उत्तरायण शिशिर ऋतु आरम्भ, चन्द्रदर्शन। सोम 22 दिसम्बर 👉 राष्ट्रीय पौष मास आरम्भ। मंगल 23 दिसम्बर 👉05 अंगारक विनायक चतुर्थी। बुध 24 दिसम्बर 👉 पंचक आरम्भ 19:16 से। गुरु 25 दिसम्बर 👉 पं मदन मोहन मालवीय जयन्ती, बड़ा दिन, तुलसी पूजन दिवस। शुक्र 26 दिसम्बर 👉 अनुरूपा षष्ठी (बंगाल)। शनि 27 दिसम्बर 👉 गुरू गोविन्द सिंह जयन्ती, उभय मार्तण्ड सप्तमी। रवि 28 दिसम्बर 👉 शाकंभरी नवरात्र आरम्भ, मासिक दुर्गाष्टमी। सोम 29 दिसम्बर 👉 पंचक समाप्त 07:40 पर, स्वामी विवेकानन्द जयन्ती (ता० प्रमाण)। मंगल 30 दिसम्बर 👉 पुत्रदा एकादशी व्रत (स्मार्त), वैकुण्ठ एकादशी, शाम्भ दशमी (उडीसा)। बुध 31 दिसम्बर 👉 पुत्रदा एकादशी (वैष्णव-निम्बार्क), एकादशी तिथिक्षय, ई० सन् 2025 समाप्त। गुरु 01 जनवरी 👉 प्रदोष व्रत, ईसवीं सन् 2026 आरम्भ। शुक्र 02 जनवरी 👉 श्री सत्यनारायण (पूर्णिमा) व्रत। शनि 03 जनवरी 👉 स्नान-दान हेतु, पौष पूर्णिमा, शाकाम्भरी जयन्ती, माघ स्नान आरम्भ। राणा जी खेड़ांवाली🚩 #🕉️सनातन धर्म🚩