mataji
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अटूट रहस्य: देवी उपासना की कुंजी केवल गुरु के पास ही क्यों है।। क्या आप माँ की कृपा चाहते हैं? तो पहले यह जान लें: गुरु नहीं, कृपा नहीं। तांत्रिक ऐसे सत्य फुसफुसाते हैं जो आपको किताबों में नहीं मिलेंगे।। 1. गुरु जीवंत यंत्र हैं कोई मनुष्य नहीं। स्त्री नहीं। ब्रह्मांडीय धाराओं का एक माध्यम। जब सच्चे गुरु साँस लेते हैं, तो देवी के मंत्र मूर्त रूप लेते हैं। इस जीवंत पात्र के बिना, आपकी पूजा एक मृत कर्मकांड है, बहरे आकाश में फेंके गए शब्दों के खोखले खोल। 2. शक्तिपात: निषिद्ध संचरण आपको लगता है कि आप तंत्र "सीख" सकते हैं? असली मंत्र शिराओं से जलते हैं, पन्नों से नहीं। केवल गुरु का स्पर्श, कभी-कभी एक झलक ही उस आंतरिक अग्नि को प्रज्वलित कर सकती है जो सीसे जैसी चेतना को सोने में बदल देती है। 3. जिसे आप "रहस्य" कहते हैं, वो जाल हैं वो बीज मंत्र जो आपको किसी धूल भरी पांडुलिपि में मिला होता है? गुरु सिखाते नहीं, तोड़ते हैं। उनका हर शब्द आपकी आत्मा को नया रूप देता है। उनके बिना, आप वज्रों से करतब दिखाने वाले अंधे व्यक्ति की तरह हैं। 4. बिजली की रक्तरेखा।। यह "आध्यात्मिकता" नहीं है। यह जागृत शवों (जिन्हें संत कहते हैं) के माध्यम से पीछे की ओर फैली शक्ति का एक जीवंत तार है। ज़ंजीर तोड़ दें, और तो मृत शब्दों को बुदबुदाते रह जाएंगे जबकि असली धारा आपके पास से गुज़र जाएगी। 5. अंतिम भ्रम। क्या आप देवी से "मिलना" चाहते हैं? वह आपको ज़िंदा खा रही है। गुरु का एकमात्र काम आपके दाँतों का एहसास कराना है। अंतिम चेतावनी: गुरु नहीं है तो कोई भी साधक नहीं है। केवल शिकार हैं। #mataji #mahakali #🙏ભક્તિ સ્ટેટ્સ #👣 જય મેલડી માઁ #🙏જય મહાકાળી માઁ🌹
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।। महालक्ष्म्यष्टकम् ।। नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते। शंख चक्र गदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।१।। इन्द्र बोले- श्रीपीठ पर स्थित और देवताओं से पूजित होनेवाली हे महामाये। तुम्हें नमस्कार है। हाथ में शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाली हे महालक्ष्मि ! तुम्हें प्रणाम है। नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि। सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।२।। गरुड़पर आरूढ़ हो कोलासुर को भय देनेवाली और समस्त पापों को हरनेवाली हे भगवति महालक्ष्मि ! तुम्हें प्रणाम है। सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि। सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।३।। सब कुछ जाननेवाली, सबको वर देनेवाली, समस्त दुष्टों को भय देनेवाली और सबके दुःखों को दूर करनेवाली, हे देवि महालक्ष्मि ! तुम्हें नमस्कार है। सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि। मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।४।। सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देनेवाली हे मन्त्रपूत भगवति महालक्ष्मि ! तुम्हें सदा प्रणाम है। आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि। योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।५।। हे देवि ! हे आदि-अन्त-रहित आदिशक्ते ! हे महेश्वरि ! हे योग से प्रकट हुई भगवति महालक्ष्मि ! तुम्हें नमस्कार है। स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे। महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।६।। हे देवि ! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बड़े-बड़े पापों का नाश करनेवाली हो ! हे देवि महालक्ष्मि ! तुम्हें नमस्कार है। पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि। परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।७।। हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्मस्वरूपिणी देवि ! हे परमेश्वरि ! हे जगदम्ब ! हे महालक्ष्मि ! तुम्हें मेरा प्रणाम है। श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते। जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।८।। हे देवि ! तुम श्वेत वस्त्र धारण करनेवाली और नाना प्रकार के आभूषणों से विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत में व्याप्त एवं अखिल लोक को जन्म देनेवाली हो। हे महालक्ष्मि ! तुम्हें मेरा प्रणाम है। महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः। सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।।९।। जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर इस महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र का सदा पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राज्यवैभव को प्राप्त कर सकता है। एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्। द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः।।१०।। जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है, उसके बड़े-बड़े पापों का नाश हो जाता है। जो दो समय पाठ करता है, वह धन-धान्य से सम्पन्न होता है। त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्। महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।।११।। जो प्रतिदिन तीन काल पाठ करता है उसके महान् शत्रुओं का नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न होती है। ।। इति इन्द्रकृतं महालक्ष्म्यष्टकं सम्पूर्णम् ।। #mataji #🙏 મારી કુળદેવી માં #🙏ભક્તિ સ્ટેટ્સ #laxmi #👣 જય મેલડી માઁ
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