जब सती माता ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होकर स्वयं को अग्नि को समर्पित कर दिया, तो भगवान शिव शोक और क्रोध से भर उठे। उन्होंने सती के शरीर को कंधे पर उठाया और ब्रह्मांड में तांडव करने लगे। ब्रह्मांड की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को सुदर्शन चक्र से खंडित कर दिया। जहाँ जहाँ उनके अंग गिरे, वहाँ शक्ति पीठ बने। असम में जहाँ सती की योनि गिरी, वहाँ बना कामाख्या देवी मंदिर। मासिक धर्म और अम्बुबाची मेला हर साल जून में, देवी को तीन दिन तक मासिक धर्म आता है। इन दिनों मंदिर के द्वार बंद रहते हैं, और धरती माता को विश्राम दिया जाता है। इस परंपरा को "अम्बुबाची मेला" कहा जाता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु आते हैं। इन तीन दिनों में पूजा नहीं होती, और देवी को रजस्वला वस्त्र (रक्तरंजित कपड़ा) अर्पित किया जाता है। यह प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है। भारत की अनोखी सोच जहाँ दुनिया मासिक धर्म को शर्म मानती है, वहाँ भारत की कामाख्या परंपरा इसे शक्ति और मातृत्व का उत्सव मानती है। यह केवल आस्था नहीं, बल्कि स्त्रीत्व का सम्मान है। जय कामाख्या देवी.
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