जय श्री राम — भक्ति की पुरानी गुंजन से लेकर आज की सार्वजनिक प्रतिक्रिया तक: राम का नाम भक्तों के लिए आदर्श पुरुषत्व और नैतिकता का प्रतीक है, पर इतिहास और हालिया रिपोर्टों से दिखता है कि "जय श्री राम" नारा पारंपरिक क़िस्म की भक्ति-उच्चारण से निकलकर कभी-कभी राजनीतिक पहचान और सार्वजनिक मंचों पर संघर्ष का माध्यम बन गया — भक्ति को आत्मिक और अहिंसक रखना धर्मनिरपेक्ष तर्क के अनुसार सही है, हिंसा या डर को जन्म देने के लिए किसी धर्मसूचक वाक्य का इस्तेमाल करना गलत है; वैज्ञानिक दृष्टि से नामजप और तालबद्ध नारे साँस-प्रणाली और तंत्रिका तंत्र पर शिथिलता (relaxation) ला सकते हैं जिससे चिंता कम होती है, इसलिए इसे सकारात्मक आध्यात्मिक अभ्यास की तरह अपनाया जा सकता है, और साथ ही समाजशास्त्रीय तथ्य हैं कि मीडिया, फिल्म-सांस्कृतिक कार्यक्रम और राजनीतिक आंदोलनों ने इस वाक्यांश को व्यापकता दी — नया विचार: अगर संक्रीर्ण राजनीति से अलग रखकर सामूहिक दीपोत्सव और रामलीला जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में इसे केवल श्रद्धा और कला के रूप में मनाया जाए तो यह समाज में मेल और सांस्कृतिक विरासत को मजबूत करेगा; #जय_श्री_राम #राम_कथा #अयोध्या✨🕉️🙏.
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