Jagdish Sharma
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।। ॐ ।।
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः॥
कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्।
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्॥
सम्पूर्ण प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं। 'अन्नं ब्रह्मेति व्यजानात्।' (तैत्तरीयोपनिषद्, भृगुबल्ली २) -अन्न परमात्मा ही है। उस ब्रह्मपीयूष को ही उद्देश्य बनाकर प्राणी यज्ञ की ओर अग्रसर होता है। अन्न की उत्पत्ति वृष्टि से होती है। बादलों से होनेवाली वर्षा नहीं अपितु कृपावृष्टि। पूर्वसंचित यज्ञ-कर्म ही इस जन्म में, जहाँ से साधन छूटा था, वहीं से इष्टकृपा के रूप में बरस पड़ता है। आज की आराधना कल कृपा के रूप में मिलेगी। इसीलिये वृष्टि यज्ञ से होती है। स्वाहा बोलने और तिल-जौ जलाने से ही वृष्टि होती तो विश्व की अधिकांश मरुभूमि ऊसर क्यों रहती, उर्वरा बन जाती। यहाँ कृपावृष्टि यज्ञ की देन है। यह यज्ञ कर्मों से ही उत्पन्न होनेवाला है। कर्म से यज्ञ पूर्ण होता है।
इस कर्म को वेद से उत्पन्न हुआ जान। वेद ब्रह्मस्थित महापुरुषों की वाणी है। जो तत्त्व विदित नहीं है उसकी प्रत्यक्ष अनुभूति का नाम वेद है, न कि कुछ श्लोक-संग्रह। #यथार्थ गीता #🙏गीता ज्ञान🛕 #🧘सदगुरु जी🙏 #महादेव #❤️जीवन की सीख
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