bhagawan
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shiv Prakash soni
732 views 1 months ago
#bhagawan मंदिर में दर्शन का महत्त्व ओर प्रयोजन हम लोग हवेली में या मंदिर में दर्शन करने जाते हैं,। दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पैड़ी पर या ओटले पर थोड़ी देर बैठते हैं। इस परंपरा का कारण क्या है ? अभी तो लोग वहां बैठकर अपने घर की, व्यापार की, राजनीति की चर्चा करते हैं। परंतु यह परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई है। वास्तव में वहां मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर के और एक श्लोक बोलना चाहिए ।यह श्लोक हम भूल गए हैं। इस श्लोक को सुने और याद करें ।और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बता कर जाएं । श्लोक इस प्रकार है अनायासेन मरणम ,बिना दैन्येन जीवनम । देहान्ते तव सानिध्यम ,देहिमे परमेश्वरम।। जब हम मंदिर में दर्शन करने जाएं तो खुली आंखों से ठाकुर जी का दर्शन करें । कुछ लोग वहां नेत्र बंद करके खड़े रहते हैं ।आंखें बंद क्यों करना ।हम तो दर्शन करने आए हैं ।ठाकुर जी के स्वरूप का ,श्री चरणों, का मुखारविंद का ,श्रंगार का संपूर्ण आनंद लें । आंखों में भर लें इस स्वरूप को । दर्शन करें और दर्शन करने के बाद जब बाहर आकर बैठें तब नेत्र बंद करके ,जो दर्शन किए हैं, उस स्वरूप का ध्यान करें ।मंदिर में नैत्र नहीं बंद करना, बाहर आने के बाद पैड़ी पर बैठकर जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें, और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं । यह प्रार्थना है याचना नहीं है। याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है, घर ,व्यापार ,नौकरी ,पुत्र पुत्री, दुकान ,सांसारिक सुख या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है, वह याचना है ।वह भीख है । हम प्रार्थना करते हैं। प्रार्थना का विशेष अर्थ है । प्र अर्थात विशिष्ट, श्रेष्ठ ।अर्थना अर्थात निवेदन ।ठाकुर जी से प्रार्थना करें ,और प्रार्थना क्या करना है ,यह श्लोक बोलना है । श्लोक का अर्थ है "अनायासेना मरणम" अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो, बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े ,कष्ट उठाकर मृत्यु नहीं चाहिए ।चलते चलते ही श्री जी शरण हो जाएं। " बिना दैन्येन जीवनम " अर्थात परवशता का जीवन न हो। किसी के सहारे न रहना पड़े ,।जैसे लकवा हो जाता है ,और व्यक्ति पर आश्रित हो जाता है ।वैसे परवश, बेबस न हों। ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख मांगे जीवन बसर हो सके। " देहान्ते तव सानिध्यम " अर्थात जब मृत्यु हो तब ठाकुर जी सन्मुख खड़े हो। जब प्राण तन से निकले , आप सामने खड़े हों। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए । उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले। यह प्रार्थना करें । गाड़ी ,लाड़ी ,लड़का, लड़की पति, पत्नी ,घर ,धन यह मांगना नहीं ।यह तो ठाकुर जी आपकी पात्रता के हिसाब से खुद आपको दे देते हैं ।तो दर्शन करने के बाद बाहर बैठकर यह प्रार्थना अवश्य पढ़ें ।
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shiv Prakash soni
765 views 2 months ago
#bhagawan एक घर में मां-बेटी रहती थीं। रात का समय था, दरवाजे पर खटखटाने की आवाज़ आई। मां और बेटी बहुत गरीब थीं और छोटे से घर में रहती थीं। बेटी ने दरवाजा खोला तो वहां कोई नहीं था। नीचे देखा तो एक चिट्ठी पड़ी हुई थी। बेटी ने चिट्ठी खोलकर पढ़ी तो उसके हाथ कांपने लगे और वह जोर से चिल्लाई — “मां, इधर आओ।” चिट्ठी में लिखा था — “बेटी, मैं तुम्हारे घर आऊंगा, तुमसे और तुम्हारी मां से मिलने।” और नाम की जगह नीचे लिखा था — “भगवान।” मां ने कहा — “यह शायद हमारी गली के किसी लड़के ने तुम्हें छेड़ने के लिए बहुत गंदी शरारत की है।” लेकिन बेटी को मां की बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था। बेटी बोली — “मां, पता नहीं क्यों, मुझे यह सच लग रहा है।” मां को मना कर बेटी और मां दोनों तैयारी में लग गईं। घर भले ही छोटा सा था लेकिन दिल बहुत अमीर था। घर पर एक चटाई थी, वही मेहमानों के लिए निकाल कर बिछा दी। रसोई घर में जाकर देखा तो खाने का एक दाना भी नहीं था। बेटी और मां दोनों गहरी सोच में पड़ गईं कि यदि भगवान सच में आ गए तो खाने में क्या देंगे? बचत के ₹300 बेटी के पास थे। पैसे लेकर वे दोनों छाता और कंबल लेकर किराने की दुकान के लिए निकल पड़ीं। बारिश होने वाली थी और ठंड भी बहुत ज्यादा थी। उन्होंने एक पैकेट दूध, एक मिठाई का बॉक्स और कुल ₹200 की चीजें खरीदीं। वापस लौटने के लिए ऑटो भी ले लिया, क्योंकि उन्हें लगा शायद भगवान घर पर पहुंच गए होंगे। घर से थोड़ी दूर पहुंचीं तो देखा कि जोर से बारिश शुरू हो गई। सड़क किनारे एक पति-पत्नी खड़े थे और उनके हाथ में छोटा बच्चा रो रहा था। स्थिति बिल्कुल ठीक नहीं लग रही थी। ऑटो घर के दरवाजे पर पहुंचा ही था कि बेटी से रहा नहीं गया। वह बोली — “ऑटो वाले भैया, जरा ऑटो को उनके पास ले लो।” पास जाकर देखा तो बच्चे को तेज बुखार था और उनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं था। एक तरफ भगवान घर पर आने वाले थे और दूसरी तरफ यह समस्या। बेटी ने सोचा — भगवान को मना लूंगी, लेकिन यदि इन्हें ऐसे ही छोड़ दिया तो भगवान बिल्कुल भी माफ नहीं करेंगे। बेटी ने जो-जो खरीदा था सब उनके हाथ में थमा दिया। यहां तक कि बचे हुए पचास रुपए भी दे दिए। वह बोली — “अभी मेरे पास इतना ही है, इसे रख लीजिए।” बारिश हो रही थी तो छाता भी दे दिया और बच्चे को ठंड न लगे इसलिए कंबल भी दे दिया। वहां से फटाफट घर पहुंचीं यह सोचकर कि भगवान आ गए होंगे। लेकिन दरवाजे पर मां खड़ी थीं। मां बोलीं — “आने में इतनी देर क्यों लगा दी बेटी? और देखो, एक और चिट्ठी आई है।” बेटी ने चिट्ठी पढ़ना शुरू किया — “बेटी, आज तुमसे मिलकर बहुत खुशी हुई। पहले से दुबली हो गई हो लेकिन आज भी उतनी ही सुंदर हो। मिठाई बहुत अच्छी थी और तुम्हारे दिए हुए कंबल से बहुत आराम मिला। छाता देने के लिए धन्यवाद। अगली बार मिलते ही लौटा दूंगा।” बेटी के तो होश उड़ गए। निशब्द होकर पीछे मुड़कर सड़क किनारे देखा तो वहां कोई नहीं था। चिट्ठी में आगे लिखा था — “इधर-उधर मत ढूंढो मुझे। मैं तो कण-कण में हूं। जहां पवित्र सोच है, मैं हर उस मन में हूं। यदि दिखे कोई जरूरतमंद तो मैं हर जन्म में वही हूं।” बेटी जोर से रो पड़ी और मां को सब बताया। दोनों बहुत भावुक हो गईं और पूरी रात सो नहीं पाईं। संदेश दोस्तों, अब आप सभी से एक प्रश्न है — क्या यह बेटी सच में गरीब थी? मीमांसा कीजिए और अपने दिल से इस सवाल का जवाब दीजिए। क्योंकि व्यक्ति मरने के बाद अपने साथ पैसे नहीं बल्कि कर्म लेकर जाता है। ज़रूरी नहीं कि हर पैसे वाला व्यक्ति अच्छे कर्म लेकर जा रहा हो। इसलिए कोशिश करें कि पैसों से अमीर हों या गरीब, लेकिन कर्मों से अमीर ज़रूर बनें।
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