bharmakumaris om shanti
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दीपाली
20K views 1 months ago
#bharmakumaris om shanti ...*सदा यह स्मृति रहे कि मैं दुनिया में सबसे वैल्युबुल, विशेष आत्मा हूँ, मेरा हर संकल्प, बोल और कर्म विशेष हो, एक सेकण्ड भी व्यर्थ न जाए*...🌟 🌹...*जैसे प्रकृति के पाँच तत्व विकराल रूप धारण करेंगे वैसे पाँच विकार भी अपना शक्तिशाली रूप धारण कर अन्तिम दाव लगायेंगे। ऐसे समय में विशेष रूप से 'समेटने की शक्ति' को धारण करने की आवश्यकता है* 🌹...AV - 14-09-1975 ⭐ *श्रेष्ठ संकल्प* ⭐ 🤍 *मैं अवतरित आत्मा हूँ* 🤍 🏵️🏵️...*अशरीरी बनना अर्थात् आवाज से परे हो जाना। जैसे बापदादा अशरीरी से शरीर में आते हैं वैसे ही बच्चों को भी अशरीरी होकर शरीर में आना है। शरीर छोड़ना और लेना यह अभ्यास करना है। सेकण्ड में सेवा अर्थ आये और सेकण्ड में संकल्प से परे स्वरूप में स्थित हो गये। सेकण्ड में आवाज में आना और सेकण्ड में आवाज से परे हो जाना*...🏵️🏵️ 🧘 *योगाभ्यास* 🧘 🌠🇲🇰...*मैं आत्मा अकालतख्त पर विराजमान हूँ। मैं देह से न्यारी हूँ। मैं आत्मा अपने सूक्ष्म शरीर में प्रवेश कर अव्यक्त वतन में पहुंच गई हूँ, जहाँ प्यारे बापदादा के नयनों से लाइट-माइट की किरणें मुझ आत्मा पर पड़ी रही हैं। फिर सूक्ष्म शरीर को भी छोड़ मैं परमधाम में बाबा के समीप पहुंच गई हूँ। बाबा से सर्वशक्तियों की किरणें मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं। मैं स्वयं को शक्तिशाली महसूस कर रही हूँ। मैं वापिस सूक्ष्म शरीर में वतन से होती हुई देह में आ गई। इस अभ्यास से अशरीरीपन का अनुभव सहज ही होगा*...🌠🇲🇰
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दीपाली
1K views 29 days ago
#bharmakumaris om shanti .....*योग का यथार्थ ज्ञान*..... 🏵️🏵️...*कोशिश कर अपने को आत्मा निश्चय करो तो बाप की याद भी रहेगी। देह में आने से फिर देह के सब सम्बन्ध याद आयेंगे। यह भी एक लॉ है।... किसकी रग टूटती नहीं है। पूछते हैं - बाबा यह क्या है! अरे, तुम नाम-रूप में क्यों फँसते हो। एक तो तुम देहाभिमानी बनते हो और दूसरा फिर तुम्हारा कोई पास्ट का हिसाब-किताब है, वह धोखा देता है*।...सा. बाबा 3.6.05 रिवा. 🏵️🏵️...*अगर योग नहीं लगता तो अवश्य ही इन्द्रियों द्वारा अल्पकाल के सुख प्राप्त कराने वाले और सदाकाल की प्राप्ति से वंचित कराने वाले कोई न कोई भोग भोगने में लगे हुए हैं, इसलिए अपने निजी कार्य को भूले हुए हैं। जैसे आजकल के सम्पत्ति वाले वा कलियुगी राजायें जब भोग-विलास में व्यस्त हो जाते हैं तो अपना निजी कार्य राज्य करना वा अपना अधिकार भूल जाते हैं। ऐसे ही आत्मा भी भोग भोगने में व्यस्त होने के कारण योग भूल जाती है।... जहाँ भोग है, वहाँ योग नहीं*। *अ. बापदादा 16.10.75*..
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