यथार्थ गीता
596 Posts • 55K views
Jagdish Sharma
690 views 1 months ago
।। ॐ ।। विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः। निर्ममो निरहङ्कारः स शान्तिमधिगच्छति॥ जो पुरुष सम्पूर्ण कामनाओं को त्यागकर 'निर्ममः' - मैं और मेरे के भाव तथा अहंकार और स्पृहा से रहित हुआ बरतता है, वह उस परमशान्ति को प्राप्त होता है जिसके बाद कुछ भी पाना शेष नहीं रह जाता। #यथार्थ गीता #🧘सदगुरु जी🙏 #🙏गीता ज्ञान🛕 #❤️जीवन की सीख #🙏🏻आध्यात्मिकता😇
5 likes
11 shares
Jagdish Sharma
567 views 1 months ago
।। ॐ ।। अर्जुन उवाच ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन। तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव॥ जनों पर दया करनेवाले जनार्दन ! यदि निष्काम कर्मयोग की अपेक्षा ज्ञानयोग आपको श्रेष्ठ मान्य है, तो हे केशव ! आप मुझे भयंकर कर्मयोग में क्यों लगाते हैं? निष्काम कर्मयोग में अर्जुन को भयंकरता दिखायी पड़ी; क्योंकि इसमें कर्म करने में ही अधिकार है, फल में कभी नहीं। कर्म करने में अश्रद्धा भी न हो और निरन्तर समर्पण के साथ योग पर दृष्टि रखते हुए कर्म में लगा रह। जबकि ज्ञानमार्ग में हारोगे तो देवत्व है, जीतने पर महामहिम स्थिति है। अपनी लाभ-हानि स्वयं देखते हुए आगे बढ़ना है। इस प्रकार अर्जुन को निष्काम कर्मयोग की अपेक्षा ज्ञानमार्ग सरल प्रतीत हुआ। इसलिये उसने निवेदन किया- #यथार्थ गीता #🙏🏻आध्यात्मिकता😇 #🙏गीता ज्ञान🛕 #🧘सदगुरु जी🙏 #महादेव
8 likes
18 shares
Jagdish Sharma
1K views 10 days ago
।। ॐ ।। न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन। नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि॥ हे पार्थ! मुझे तीनों लोकों में कोई कर्त्तव्य नहीं है। पीछे कह आये हैं- उस महापुरुष का समस्त भूतों में कोई कर्त्तव्य नहीं है। यहाँ कहते हैं- तीनों लोकों में मुझे कुछ भी कर्त्तव्य शेष नहीं है तथा किंचिन्मात्र प्राप्त होने योग्य वस्तु अप्राप्त नहीं है, तब भी मैं कर्म में भली प्रकार बरतता हूँ। क्यों?- #यथार्थ गीता #🙏🏻आध्यात्मिकता😇 #🧘सदगुरु जी🙏 #🙏गीता ज्ञान🛕 #❤️जीवन की सीख
14 likes
15 shares
Jagdish Sharma
544 views 1 days ago
।। ॐ ।। ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः। श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभिः ॥ अर्जुन ! जो कोई मनुष्य दोषदृष्टि से रहित होकर, श्रद्धाभाव समर्पण से संयुक्त हुए सदा मेरे इस मत के अनुसार बरतते हैं कि 'युद्ध कर', वे पुरुष भी सम्पूर्ण कर्मों से छूट जाते हैं। योगेश्वर का यह आश्वासन किसी हिन्दू, मुसलमान या ईसाई के लिए नहीं अपितु मानवमात्र के लिए है। उनका मत है कि युद्ध कर! इससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह उपदेश युद्धवालों के लिये है। अर्जुन के समक्ष सौभाग्य से विश्वयुद्ध की संरचना थी, आपके सामने तो कोई युद्ध नहीं है, आप गीता के पीछे क्यों पड़े हैं; क्योंकि कर्मों से छूटने का उपाय तो युद्ध करनेवालों के लिये है? किन्तु ऐसा कुछ नहीं है। वस्तुतः यह अन्तर्देश अविद्या का, धर्मक्षेत्र और कुरुक्षेत्र का संघर्ष है। आप ज्यों-ज्यों ध्यान में चित्त का निरोध करेंगे तो विजातीय प्रवृत्तियाँ बाधा के रूप में प्रत्यक्ष होती हैं, भयंकर आक्रमण करती हैं। उनका शमन करते हुए चित्त का निरोध करते जाना ही युद्ध है। #यथार्थ गीता #🙏🏻आध्यात्मिकता😇 #🙏गीता ज्ञान🛕 #❤️जीवन की सीख #🧘सदगुरु जी🙏
7 likes
19 shares