श्रीकृष्ण चरितामृत ॥
जय हो नंदनंदन श्रीकृष्णचन्द्र!
जिनकी मोहिनी मूर्ति देख, ब्रह्मा विष्णु शंकर तक मौन हो गए।
जिनकी वंशी की मधुर ध्वनि से गोकुल की ग्वालिनें सुध-बुध खो बैठीं,
और जिनके चरणकमल को देख, यमुना की धारा भी ठहर गई।
वे ही माधव, वे ही मुरारी, वे ही गोविंद हरि —
जो रासमण्डल में नटनारायण रूप से लीला करते हैं,
और कुरुक्षेत्र में अर्जुन के सारथी बन धर्म की पुनर्स्थापना करते हैं।
उनके अधरों की मुरली, साक्षात् वेदों का संगीत है,
उनकी चितवन, कामदेव को भी लज्जित करती है।
उनके चरणों की रज, मुक्ति की सीढ़ी है —
और उनके नाम का स्मरण, समस्त पापों का हरण है।
"नमो भगवते वासुदेवाय" —
जग में जितनी सुषमा है, सब उनके ही अंश की छाया है।
वे नित्य, शुद्ध, बुद्ध, मुक्त —
अनादि पुरुष, परब्रह्म, प्रेमावतार श्रीकृष्ण हैं॥
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