jay shree kri
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।। राधा अष्टमी ३१ अगस्त २०२५ की शुभकामनाएं ।। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि जगत की देवी राधा रानी को समर्पित है। इस शुभ अवसर पर श्रीजी की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर राधा रानी अवतरित हुई थीं। इसके लिए हर साल भाद्रपद महीने में राधा अष्टमी मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार राधा रानी के महज नाम जप से व्यक्ति विशेष का उद्धार हो जाता है। वह पुण्यकाल भागी बन जाता है। इसके लिए साधक श्रद्धा भाव से राधा अष्टमी के दिन श्रीजी और कृष्ण कन्हैया की पूजा करते हैं। वैदिक पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि ३० अगस्त को देर रात १० बजकर ४६ मिनट पर शुरू होगी। वहीं ३१ अगस्त को देर रात १२ बजकर ५७ मिनट पर अष्टमी तिथि का समापन होगा। सनातन धर्म में सूर्योदय से तिथि की गणना की जाती है। इसके लिए राधा अष्टमी का त्योहार ३१ अगस्त २०२५ को मनाया जाएगा। राधा अष्टमी पर शुभ संयोग- राधा अष्टमी पर सिंह राशि में बुध और सूर्य ग्रह के होने से बुधादित्य योग बनेगा। साथ ही सिंह राशि में केतु, सूर्य और बुध के होने से त्रिग्रही योग का भी निर्माण भी हो रहा है। पूजा विधि- प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त हो जाएं। इसके बाद मंडप के नीचे मंडल बनाकर उसके मध्यभाग में मिट्टी या तांबे का कलश स्थापित करें। कलश पर तांबे का पात्र रखें। अब इस पात्र पर वस्त्राभूषण से सुसज्जित राधाजी की सोने (संभव हो तो) की मूर्ति स्थापित करें।तत्पश्चात राधाजी का षोडशोपचार से पूजन करें। ध्यान रहे कि पूजा का समय ठीक मध्याह्न का होना चाहिए। पूजन पश्चात पूरा उपवास करें अथवा एक समय भोजन करें। दूसरे दिन श्रद्धानुसार सुहागिन स्त्रियों तथा ब्राह्मणों को भोजन कराएं व उन्हें दक्षिणा दें। राधा अष्टमी का महत्व- जन्माष्टमी की तरह राधाष्टमी का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं संतान सुख और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार जो लोग राधा रानी जी को प्रसन्न कर लेते हैं। उनसे भगवान श्री कृष्णा अपने आप प्रसन्न हो जाते हैं। कहा जाता है कि व्रत करने से घर में मां लक्ष्मी आती है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। राधा रानी के बिना भगवान श्री कृष्ण की पूजा भी अधूरी मानी जाती है। इसलिए राधा अष्टमी का त्यौहार भी कृष्ण जन्माष्टमी की तरह बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। ।। जय श्री राधेय्य्य्य्य्य्य ।। #radha #krishna #Jay krishna 🙏🙏 #®️🅰️DH3 KRI$N@🙏 #jay shree kri
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जानें कहां हुआ था श्री राधा जी का जन्म 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰 मथुरा. राधा जी के बारे में प्रचलित है कि वह बरसाना की थीं। लेकिन, हकीकत है कि उनका जन्‍म बरसाना से 50 किलोमीटर दूर हुआ था। यह गांव रावल के नाम प्रसिद्ध है। यहां पर राधा का जन्‍म स्‍थान है। कमल के फूल पर जन्‍मी थीं राधा 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰 - रावल गांव में राधा का मंदिर है। माना जाता है कि यहां पर राधाजी का जन्‍म स्‍थान है। - श्रीकृष्‍ण जन्‍मस्‍थान सेवा संस्‍थान के सचिव कपिल शर्मा के अनुसार, 5 हजार साल पहले रावल गांव को छूकर यमुना बहती थी। - राधा की मां कृति यमुना में स्‍नान करते हुए अराधना करती थी और पुत्री की लालसा रखती थी। - पूजा करते समय एक दिन यमुना से कमल का फूल प्रकट हुआ। कमल के फूल से सोने की चमक सी रोशनी निकल रही थी। इसमें छोटी बच्‍ची का नेत्र बंद था। अब वह स्‍थान इस मंदिर का गर्भगृह है। - इसके 11 महीने बाद 3 किलोमीटर दूर मथुरा में कंस के कारागार में भगवान कृष्‍ण का जन्‍म हुआ था। - वह रात में गोकुल में नंदबाबा के घर पर पहुंचाए गए। तब नंद बाबा ने सभी जगह संदेश भेजा और कृष्‍ण का जन्‍मोत्‍सव मनाया गया। - जब बधाई लेकर वृषभान अपने गोद में राधारानी को लेकर यहां गए तो राधारानी घुटने के बल चलते हुए बालकृष्‍ण के पास पहुंची। वहां बैठते ही तब राधारानी के नेत्र खुले और उन्‍होंने पहला दर्शन बालकृष्‍ण का किया। राधा और कृष्‍ण क्‍यों गए बरसाना 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰 - कृष्‍ण के जन्‍म के बाद से ही कंस का प्रकोप गोकुल में बढ़ गया था। यहां के लोग परेशान हो गए थे। - नंदबाबा ने स्‍थानीय राजाओं को इकट्ठा किया। उस वक्‍त बृज के सबसे बड़े राजा वृषभान थे। इनके पास 11 लाख गाय थीं। जबकि, नंद जी के पास नौ लाख गाय थी। - जिसके पास सबसे ज्‍यादा गाय होतीं थी, वह वृषभान कहलाते थे। उससे कम गाय जिनके पास रहती थीं, वह नंद कहलाए जाते थे। - बैठक के बाद फैसला हुआ कि गोकुल व रावल छोड़ दिया जाए। - गोकुल से नंद बाबा और जनता पलायन करके पहाड़ी पर गए, उसका नाम नंदगांव पड़ा। वृषभान, कृति और राधारानी को लेकर पहाड़ी पर गए, उसका नाम बरसाना पड़ा। रावल में मंदिर के सामने बगीचा, इसमें पेड़ स्‍वरूप में हैं राधा व श्‍याम - रावल गांव में राधारानी के मंदिर के ठीक सामने प्राचीन बगीचा है। कहा जाता है कि यहां पर पेड़ स्‍वरूप में आज भी राधा और कृष्‍ण मौजूद हैं। - यहां पर एक साथ दो पेड़ हैं। एक श्‍वेत है तो दूसरा श्‍याम रंग का। इसकी पूजा होती है। माना जाता है कि राधा और कृष्‍ण पेड़ स्‍वरूप में आज भी यहां से यमुना जी को निहारते हैं। 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰 #Jay krishna 🙏🙏 #®️🅰️DH3 KRI$N@🙏 #krishna #jay shree kri #🙏 જય શ્રી કૃષ્ણ
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