प्रभु श्री राम के सागर से विनय की बात सुन कर रावण अपनी राजसभा में हँसते हुए गुप्तचरों से कहता है कि मूर्खो तुम क्या मिथ्या बड़ाई पर बड़ाई करे जा रहे हो, मैंने शत्रु तपस्वीयों का बुद्धि , बल आदि को भली भांति पहचान लिया है , वो स्वभाव से डरपोक हैं बस अपनी वाणी में कठोरता लिए हैं, वो अभी बालक हैं व उनकी बालकबुद्धि का ही ये निर्णय है कि सागर से बालहठ कर रहे हैं ,भला सागर भी किसी की बालहठ से मार्ग देता होगा, तुम व्यर्थ ही उनकी प्रशंसा के पुल बांधे जा रहे हो।
जय श्री राम
##सुंदरकांड पाठ चौपाई📙🚩
#❤️जीवन की सीख
🪷 || सामाजिक होने का अर्थ || 🪷
धूप से मुरझाये पौधे के लिए थोड़ा सा जल जीवनदायी बन जाता है एवं नैराश्य की आँच से संतप्त व्यक्ति के लिए थोड़ा सा सहारा प्राणदायी बन जाता है। मनुष्य को उस ईश्वर ने एक सामाजिक प्राणी बनाया है। समाज में घट रही प्रत्येक अच्छी-बुरी घटना के प्रति संवेदनशील रहना ही हमें और अधिक सामाजिक बनाता है। अपने साथ-साथ समाज में रह रहे अन्य लोगों की वेदनाओं की चुभन हमारे हृदय में भी होनी ही चाहिए।
सामाजिक प्राणी होने का अर्थ केवल इतना नहीं कि मनुष्य समाज के बीच में रहता है अपितु यह है कि समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को साथ लेकर चलने की जिम्मेदारी भी हमारी होनी चाहिए। जो लोग निराशा में, विषाद में अथवा तो अभाव में अपना जीवन जी रहे हैं अपनी सामर्थ्यानुसार उनसे जुड़े रहना ही हमें और अधिक मानवीय बनाकर एक स्वस्थ समाज के नवनिर्माण में अपना योगदान देता है।
जय श्री राधे कृष्ण
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गुणाधिकान्मुदं लिप्सेत् अनुक्रोशं गुणाधमात्।
मैत्रीं समानादन्विच्छेत् न तापैरभिभूयते।।
[ श्रीमद्भागवतपुराणम् - ४/८/३४ ]
अर्थात् 👉🏻 अपने से अधिक गुणवालों से आनन्द प्राप्त करें , कम गुणवालों के प्रति दयाभाव रखें तथा समान गुणवालों से मित्रता की इच्छा करे - ऐसा करनेवाले पुरुष संतापों से व्यथित नहीं होते ।
🌄🌄 प्रभात वंदन 🌄🌄
#❤️जीवन की सीख #शुभ रविवार
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हनुमान जी से जुड़े रहें तो श्री राम से जुड़ना आसान हो जाता है।
!श्रीराम जय राम जय जय राम!
श्रीराम जब वानरों को विदा कर रहे थे तो अंगद सबसे ज्यादा भावुक हो गए। हनुमान जी उन्हें विदा करने बाहर तक आए तो अंगद ने कहा....
‘कहेहु दंडवत प्रभु सैं
तुम्हहि कहउं कर जोरि।
बार-बार रघुनायकहि
सुरति कराएहु मोरि।’
‘मैं हाथ जोड़कर कहता हूं, प्रभु से मेरी दण्डवत कहना और रघुनाथजी को बार-बार मेरी याद दिलाते रहना’।
विदा करके हनुमान जी लौटे और उन्होंने प्रभु से अंगद के प्रेम का वर्णन भी किया। इस घटना में दो बातें सामने आती हैं। पहली ये कि अंगद ने हनुमान जी पर भरोसा किया। दूसरी ये कि हनुमान जी ने अंगद की बात श्रीराम तक पहुंचाई। आज सब भक्तों के लिए परमात्मा तक अपनी बात पहुंचाना संभव नहीं।
सबसे सरल माध्यम हनुमान जी हैं। हनुमान जी और श्रीराम की निकटता के यूं तो कई प्रसंग हैं, लेकिन महिरावण और अहिरावण का वध करके श्रीराम-लक्ष्मण को मुक्त कराना इनके संबंधों की अद्भुत घटना है। वैसे वाल्मीकि रामायण और तुलसी के मानस में भी इसका वर्णन नहीं है। लेकिन फिर भी तुलसीदास ने हनुमान जी की आरती और हनुमानष्टक में अहिरावण की बात बोली है और ये बताया है कि जो सेवा, जिस तरह की निकटता हनुमान जी श्री राम से रखते हैं, दुनिया में कोई नहीं रखता। हनुमान जी से जुड़े रहें तो श्री राम से जुड़ना आसान हो जाता है।
!!श्रीराम जय राम जय जय राम!!
!!श्रीराम जय राम जय जय राम!!
!!श्रीराम जय राम जय जय राम!!
!!श्रीराम जय राम जय जय राम!!
!! श्रीराम समर्थ!!
. #🌿दादी नानी के नुस्खे
हनुमान जी से जुड़े रहें तो श्री राम से जुड़ना आसान हो जाता है।
!श्रीराम जय राम जय जय राम!
श्रीराम जब वानरों को विदा कर रहे थे तो अंगद सबसे ज्यादा भावुक हो गए। हनुमान जी उन्हें विदा करने बाहर तक आए तो अंगद ने कहा....
‘कहेहु दंडवत प्रभु सैं
तुम्हहि कहउं कर जोरि।
बार-बार रघुनायकहि
सुरति कराएहु मोरि।’
‘मैं हाथ जोड़कर कहता हूं, प्रभु से मेरी दण्डवत कहना और रघुनाथजी को बार-बार मेरी याद दिलाते रहना’।
विदा करके हनुमान जी लौटे और उन्होंने प्रभु से अंगद के प्रेम का वर्णन भी किया। इस घटना में दो बातें सामने आती हैं। पहली ये कि अंगद ने हनुमान जी पर भरोसा किया। दूसरी ये कि हनुमान जी ने अंगद की बात श्रीराम तक पहुंचाई। आज सब भक्तों के लिए परमात्मा तक अपनी बात पहुंचाना संभव नहीं।
सबसे सरल माध्यम हनुमान जी हैं। हनुमान जी और श्रीराम की निकटता के यूं तो कई प्रसंग हैं, लेकिन महिरावण और अहिरावण का वध करके श्रीराम-लक्ष्मण को मुक्त कराना इनके संबंधों की अद्भुत घटना है। वैसे वाल्मीकि रामायण और तुलसी के मानस में भी इसका वर्णन नहीं है। लेकिन फिर भी तुलसीदास ने हनुमान जी की आरती और हनुमानष्टक में अहिरावण की बात बोली है और ये बताया है कि जो सेवा, जिस तरह की निकटता हनुमान जी श्री राम से रखते हैं, दुनिया में कोई नहीं रखता। हनुमान जी से जुड़े रहें तो श्री राम से जुड़ना आसान हो जाता है।
!!श्रीराम जय राम जय जय राम!!
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. #🌿आयुर्वेदिक नुस्खों पर चर्चा #💁🏻♀️घरेलू नुस्खे
#💁🏻♀️घरेलू नुस्खे #🌿दादी नानी के नुस्खे #🌿आयुर्वेदिक नुस्खों पर चर्चा
🔱 मार्कण्डेय जी के दीर्घजीवी होने का रहस्य 🔱
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🙏🏻🌷🙏🏻 अभिवादनसे अमरत्व 🙏🏻🌷🙏🏻
सभी धर्मशास्त्रकारोंने 'अभिवादनशीलता' को महान् धर्म और सदाचारका मुख्य लक्षण बतलाया है। महाराज मनुने अपनी स्मृतिके प्रारम्भमें ही अभिवादनशील व्यक्तिको दीर्घ आयु, सविद्या, उत्तम यश और महान बल-पराक्रमकी सहज ही प्राप्ति बतलायी है।
मूलतः महर्षि मार्कण्डेयजी अभिवादनशीलताके सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। उनमें विनय, नम्रता, शिष्टाचार, मर्यादा-रक्षण, अभिवादनशीलता, श्रेष्ठ जनों, वृद्धों तथा गुरुजनोंके प्रति आदर-बुद्धि, सेवाभाव आदि सद्गुण स्वभावसे ही भरे हुए थे और नित्य विप्रोंके अभिवादन करनेसे जो उन्हें आशीर्वाद प्राप्त हुआ, उसीसे वे कल्पकल्पान्तजीवी और सदाके लिये अजर-अमर हो गये। अपने इस धर्माचरणसे मार्कण्डेयजीने यह संदेश दिया है कि अपने माता-पिता, गुरु तथा श्रेष्ठ जनोंको सदा प्रणाम करना चाहिये और विनीतभावसे सदा उनका अभिवादन करना चाहिये, इससे दीर्घायु प्राप्त होती है और जीवन सफल हो जाता है।
(क) अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः
चत्वारि सम्प्रवर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम् ॥
(मनु०
(ख) मातापितरमुत्थाय पूर्वमेवाभिवादयेत् ।
आचार्यमथवाप्यन्यं तथायुर्विन्दते महत् ॥
महाभारत, अनु०
पुराणों° में कथा आती है कि जब मार्कण्डेयजी ५ वर्षके थे, एक दिन वे अपने पिता महर्षि मृकण्डुजीकी गोदमें खेल रहे थे, उसी समय संयोगसे एक महाज्ञानी दैवज्ञ वहाँ आ पहुँचे और उन्होंने उस बालकके विशिष्ट लक्षणोंको देखकर महर्षि मृकण्डुसे कहा— 'मुने ! आपका यह बालक कोई सामान्य बालक नहीं है, यह दैवीगुणोंसे सम्पन्न है और इससे संसारका महान् कल्याण होनेवाला है। इसके शरीरमें जो शुभ लक्षण हैं, ऐसे लक्षण किसीमें हों तो वह अजर-अमर होता है, किंतु इस बालकमें एक विशेष लक्षण है, जिससे सूचित होता है कि आजके दिनसे ६ महीने होते ही इसकी मृत्यु हो जायगी। अतः आप इसके लिये जो हितकर कार्य हो सो कीजिये।' ऐसा कहकर वे सिद्ध महात्मा चले गये।
°स्कन्दपुराण, नागरखण्ड अ० २२,
पद्मपुराण, सृष्टिखण्ड अ० ३३ इत्यादि ।
महात्माओंकी बात झूठ होती नहीं, अतः मृकण्डुजी सोचमें पड़ गये और बालककी मृत्यु कैसे टले, यह विचार करने लगे। कुछ सोचकर उन्होंने समयसे पहले ही बालकका यज्ञोपवीत-संस्कार कर दिया और फिर उसे धर्ममय कर्तव्यका उपदेश देते हुए कहा— 'बेटा ! तुम जिस किसी भी ब्राह्मणको देखना, उसे अवश्य विनयपूर्वक प्रणाम करना।'—
यं कंचिद्वीक्षसे पुत्र भ्रममाणं द्विजोत्तमम् ।
तस्यावश्यं त्वया कार्यं विनयादभिवादनम् ॥
स्कन्द०, नाग०
—ऐसा निर्देश देकर मृकण्डुजी निश्चिन्त हो गये; क्योंकि वे ब्राह्मणोंके आशीर्वादकी शक्ति एवं महत्तासे भलीभाँति परिचित थे। ब्राह्मणोंके आशीर्वादसे कालपर भी विजय पायी जा सकती है।
बालक मार्कण्डेयने पिताकी आज्ञा सहर्ष स्वीकार की। कल्पकल्पान्तरीय भगवत्कृपाका संबल तो उनके पास था ही, अब वे अभिवादन-व्रतमें स्थित हो गये जो भी श्रेष्ठ जन दीखते, मार्कण्डेयजी बड़े ही भक्ति एवं विनयपूर्वक उन्हें प्रणाम करते। इस प्रकार छः महीने बीतनेमें केवल तीन दिन शेष रह गये। इसी बीच तीर्थयात्रापरायण सप्तर्षिगण उधर आ निकले, जहाँ वटुवेषमें मार्कण्डेयजी खड़े थे। उनका दर्शन कर मार्कण्डेयजीको बड़ा ही आनन्द हुआ। उन्होंने श्रद्धा-भक्तिपूर्वक बड़े ही विनीतभावसे बारी-बारी सभी महर्षियोंको प्रणाम किया और सबने पृथक् पृथक् 'दीर्घायु' होनेका आशीर्वाद दिया। महर्षि वसिष्ठजीने उस बालककी ओर जब ध्यानसे देखा तो वे समझ गये और सप्तर्षियोंसे कहने लगे— 'अरे ! यह महान् आश्चर्य है जो हमलोगोंने इस बालकको 'दीर्घायु' होनेका आशीर्वाद दे दिया; क्योंकि इस बालककी तो केवल तीन दिन ही आयु शेष रह गयी है, अतः अब कोई ऐसा उपाय करना चाहिये। जिससे हमलोगोंकी बात झूठी न हो; क्योंकि हमलोगोंका आशीर्वाद भी झूठा नहीं हो सकता और विधाताका विधान भी असत्य नहीं हो सकता। अतः इस बालकके चिरजीवी होनेकी कोई युक्ति निकालनी चाहिये।'
तदनन्तर सप्तर्षिगण परस्पर विचार करके इस निश्चयपर पहुँचे कि 'ब्रह्माजीको छोड़कर दूसरा इसके जीवनका कोई उपाय नहीं है, अतः इस बालकको उनके पास ले जाकर उन्हींकी आज्ञासे चिरजीवी बनाना चाहिये।' ऐसा निर्णय करके वे उस बालकको लेकर शीघ्र ही ब्रह्मलोक जा पहुँचे। सप्तर्षियोंने ब्रह्माजीको प्रणाम किया। बालकने भी ब्रह्माजीके चरणोंमें मस्तक झुकाया। तब ब्रह्माजीने उन्हें 'दीर्घायु' होनेका आशीर्वाद दिया। तत्पश्चात् ब्रह्माजीने सप्तर्षियोंसे आनेका प्रयोजन और उस बालकके सम्बन्धमें पूछा तो उन्होंने सारी घटना उन्हें निवेदित कर दी और यह भी कहा कि 'प्रभो ! आपने भी इसे यशस्वी, विद्वान् तथा दीर्घायु होनेका आशीर्वाद दिया है। अतः अब आप और हम सब सत्यवादी बने रहें, हमारी बात झूठी न होने पाये, ऐसा कोई उपाय आप करे।
उनकी बात सुनकर ब्रह्माजी मुस्करा उठे और कहने लगे— 'मुनिवरो ! आपलोग चिन्तित न हों। इस बालकने अपने विनय और अभिवादनके बलपर कालको भी जीत लिया है। 'तब ब्रह्माजीने विचार कर अपनी विशिष्ट शक्तिसे मार्कण्डेयजीको अजर-अमर तथा जरामुक्त होनेका वर प्रदान किया और उन्हें घर पहुँचानेका निर्देश भी दिया। सप्तर्षिगण बालकको आश्रममें पहुँचाकर पुनः तीर्थयात्राके लिये निकल पड़े। मार्कण्डेयजीने सारी घटना माता-पिताको बता दी, जिसे सुनकर चिन्तातुर माता-पिता भी प्रसन्न हो गये।
मार्कण्डेयजी तप और स्वाध्यायमें रत हो गये। हिमालयकी गोदमें पुष्पभद्रा नदीके किनारे वे भगवान् नर-नारायणकी आराधना करने लगे। उनका चित्त सब ओरसे हटकर भगवान्में ही लगा रहता। अधोक्षजका ध्यान करते हुए मार्कण्डेयजीको ६ मन्वन्तरका काल बीत गया। इन्द्रको उनके तपसे भय होने लगा कि कहीं ये मेरा ऐन्द्र-पद न छीन लें। उनके तपमें विघ्न करनेके लिये उन्होंने वसन्त, कामदेव तथा पुञ्जिकस्थली नामक अप्सराको भेजा, किंतु मुनि तो सर्वथा वीतराग हो चुके थे। भला भगवान्में जिसका चित्त लग गया हो उसे कौन ऐसा है, जो लुभा सकता है। भगवान्की कृपासे उनके हृदयमें कोई विकार नहीं उठा, उनकी ऐसी एकतानता देख कामदेव आदि भयभीत होकर वापस लौट गये। मार्कण्डेयजीमें कामको जीत लेनेका गर्व भी नहीं आया, वे उसे भगवान्की कृपा समझकर और भी भावनिमग्न हो गये। उनकी ऐसी निश्छल प्रीति देखकर भक्तवत्सल भगवान् श्रीहरि नर-नारायणरूपमें उनके सामने प्रकट हो गये। मार्कण्डेयजी उनके चरणोंमें लेट गये और उनकी स्तुति करने लगे। प्रसन्न हो भगवान्ने वर माँगनेको कहा। मुनि बोले— 'प्रभो ! आपके श्रीचरणोंका दर्शन हो जाय, इतना ही प्राणीका परम पुरुषार्थ है। मेरे लिये अब और क्या पाना शेष रह गया है, तथापि मेरी यह इच्छा है कि जिस आपकी मायासे यह सत्-वस्तु भेदयुक्त प्रतीत होती है, उस मायाको मैं देखना चाहता हूँ।' भगवान् 'एवमस्तु' कहकर बदरीवनकी ओर चले गये और मार्कण्डेयजी पुनः भगवान्की आराधना, ध्यान तथा पूजनमें लग गये।
सहसा एक दिन ऋषिके सामने महाप्रलयका दृश्य उपस्थित हो गया। समस्त पृथ्वी जलमें डूब गयी। सूर्य, चन्द्र, तारोंका कहीं पता नहीं था। सब ओर घोर अन्धकार व्याप्त हो गया। बात-की-बातमें सर्वत्र जल-ही-जल हो गया। उस अनन्त भीषण महार्णवमें एक अकेले मार्कण्डेयजी ही रह गये। बड़े-बड़े मगर आदि समुद्री जीव-जन्तुओंको देखकर मार्कण्डेयजी भयभीत हो उठे उसी प्रलय-समुद्रमें थपेड़े खाते हुए व्याकुल हो वे डूबते-उतराते रहे। ऐसे ही भगवान्की मायाके वशीभूत हुए उन्हें उस प्रलयार्णवमें बहुत समय व्यतीत हो गया।
घबड़ाकर मुनिने भगवान्का स्मरण किया और उसी समय उन्हें प्रलय-समुद्रमें एक विशाल वटवृक्ष दिखलायी पड़ा। मुनिको बड़ा आश्चर्य हुआ कि जब सब कुछ जलमें डूबा है तो वह वटवृक्ष कैसे नहीं डूबा, कहाँसे आ गया। कुतूहलवश वे समीपमें गये और उन्होंने देखा कि वटवृक्षकी एक शाखामें पत्तोंके दोनेमें एक तेजस्वी बालक सोया है, जिसके प्रकाशसे सारी दिशाएँ आलोकित हो उठी हैं, उसके कर एवं चरण लाल-लाल अत्यन्त सुकुमार हैं, नवीन श्यामवर्णके समान आभा है, सुन्दर मुखमण्डलपर मधुर मन्द हास्य है। वह शिशु अपने हाथोंकी सुन्दर अँगुलियोंसे दाहिने चरणको पकड़कर उसके अँगूठेको मुखमें लिये चूस रहा है, मनोहरमूर्ति बालकको देखकर मुनिको बड़ा आश्चर्य हुआ। उनके दर्शनमात्रसे उनकी सारी व्यथा दूर हो गयी, रोमाञ्च हो आया, हाथ जुड़ गये और वे स्तुति करने लगे —
करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम् ।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं शिरसा नमामि
वे भगवान्को गोदमें लेने और समीप जा उठे, लेकिन यह क्या ! भगवान्की तो माया चल ही रही थी, उस बालकके श्वास खींचते ही वे नासिका-मार्गसे उनके उदरमें जा पहुँचे और वहाँ उन्हें अनन्त ब्रह्माण्डोंका, भगवान्के विराट्स्वरूपका तथा अपना आश्रम और फिर वही प्रलयकालीन दृश्य दिखलायी पड़ा। मुनि भयभीत हो उठे। कुछ क्षणोंके अनन्तर उसी बालमुकुन्दकी प्रेरणासे वे श्वासके द्वारा बाहर उसी प्रलय-समुद्रमें आ गये। उन्हें वही गर्जन करता समुद्र, वही वटवृक्ष और उसपर वही अद्भुत सौन्दर्यघन मन्दस्मित हासयुक्त शिशु दिखलायी पड़ा।
आश्चर्यचकित हो उसे आलिङ्गन करना ही चाहते थे कि भगवान् अन्तर्धान हो गये। उनके अन्तर्धान होते ही वह वटवृक्ष, वह प्रलय-समुद्र सारा-का-सारा क्षणभरमें विलीन हो गया। मुनिने देखा कि वे तो अपने आश्रमके पास पुष्पभद्रा नदीके तटपर पहले जैसे बैठे थे, वैसे ही बैठे हैं। भगवान्की कृपा समझकर मुनिको बड़ा ही आनन्द हुआ। भगवान्से उन्होंने उनकी मायाको देखनेकी इच्छा प्रकट की थी तो मायेश्वरभगवान्ने क्षणभरमें महामुनिको मायाका खेल दिखा दिया कि किस प्रकार उन सर्वेश्वरके भीतर ही समस्त ब्रह्माण्ड हैं, उन्हींसे सृष्टिका विस्तार होता है और फिर सृष्टि उनमें ही लय हो जाती है। अब तो और अधिक भाव-विभोर हो उन्होंने भगवान्की शरण ग्रहण की और वे ध्यान लगाकर बैठ गये।
इसी समय नन्दीपर बैठे देवाधिदेव भगवान् शंकर माता पार्वतीके साथ उधर आ निकले। मुनिको शान्तभावसे बैठे देखकर पार्वतीजी भगवान् शंकरसे बोलीं— 'भगवन् ! ये कोई महातपस्वी मुनि मालूम होते हैं, आप इनपर कृपा कीजिये, क्योंकि तपस्वियोंकी तपस्याका फल देनेमें आप ही समर्थ हैं।'
शंकर बोले— देवि ! ये और कोई नहीं महातपस्वी महामुनि मार्कण्डेयजी हैं, ये भगवान् नारायणके अनन्य भक्त हैं, ऐसे भक्त कामनाहीन होते हैं, इन्हें मोक्षकी भी आकांक्षा नहीं, फिर सांसारिक सुखोंकी क्या बात है, ऐसे भगवद्भक्तोंका दर्शन एवं वार्तालापका अवसर बड़े सौभाग्यसे प्राप्त होता है, अतः इनके समीप चलना चाहिये। मार्कण्डेयजी ध्यानमें निमग्न थे, उन्हें भगवान् शंकरजीका आना मालूम न हुआ। तब शंकरजीने योगबलसे उनके शरीरमें प्रवेश किया। मुनिकी समाधि टूटी, आँखें खुली तो उन्होंने सामने भगवान् शंकर और माता पार्वतीको प्रसन्नमुद्रामें पाया। मुनिने बड़ी ही भक्तिसे उन्हें प्रणाम किया और उनका पूजन किया। भक्तवत्सल भगवान् शंकरने उनसे वरदान माँगनेको कहा। मुनिने प्रार्थना की— 'दयामय ! मैं तो आपके दर्शनमात्रसे कृतार्थ हो गया, तथापि मेरी यही प्रार्थना है कि भगवान् अच्युत और उनके भक्तोंमें तथा आपमें मेरी अविचल भक्ति बनी रहे।'
भगवान्ने 'एवमस्तु' कहकर मुनिको कल्पकल्प-पर्यन्त अटल कीर्ति रहने और अजर-अमर होनेका वर प्रदान किया और त्रिकालविषयक ज्ञान, विज्ञान, वैराग्य तथा ब्रह्मवर्चस्वी और पुराणोंका आचार्य होनेका भी वर दे दिया।†
कामो महर्षे सर्वोऽयं भक्तिमांस्त्वमधोक्षजे ।
आकल्पान्ताद् यशः पुण्यमजरामरता तथा ॥
ज्ञानं त्रैकालिकं ब्रह्मन् विज्ञानं च विरक्तिमत् ।
ब्रह्मवर्चस्विनो भूयात् पुराणाचार्यतास्तु ते ॥
श्रीमद्भा०
वर देकर भगवान् शंकर चले गये और मार्कण्डेयजी भगवान् शंकरकी कृपा प्राप्त कर साधन-भजनमें लग गये।
मार्कण्डेयजीपर भगवान् शंकरकी कृपा पहलेसे ही थी। पद्मपुराण उत्तरखण्डमें आया है कि इनके पिता मुनि मृकण्डुने अपनी पत्नीके साथ घोर तपस्या करके भगवान् शिवजीको प्रसन्न किया और उन्हींके वरदानसे मार्कण्डेयजीको पुत्ररूपमें पाया। भगवान् शंकरने उसे सोलह वर्षकी आयु उस समय दी। सोलहवाँ वर्ष आरम्भ होनेपर मृकण्डु मुनिका हृदय शोकसे भर गया। पिताजीको उदास देखकर जब उदासीका कारण पूछा तो मृकण्डुजीने कहा— 'बेटा ! भगवान् शंकरने तुम्हें सोलह वर्षकी आयु दी है और उसकी समाप्तिका समय समीप आ पहुँचा है।' इसपर मार्कण्डेयजी बोले— 'पिताजी ! आप शोक न करें। मैं भगवान् शंकरको प्रसन्न करके ऐसा यत्न करूँगा कि मेरी मृत्यु हो ही नहीं।' तदनन्तर माता-पिताकी आज्ञा लेकर मार्कण्डेयजी दक्षिण समुद्रके तटपर गये और वहाँ विधिपूर्वक शिवलिङ्गकी स्थापना करके आराधना करने लगे। समयपर उन्हें लेनेके लिये 'काल' आ पहुँचा।
मार्कण्डेयजीने कालसे कहा— 'मैं मृत्युञ्जयस्तोत्रसे भगवान् शंकरका स्तवन कर रहा हूँ, इसे पूरा कर लूँ, तबतक तुम ठहर जाओ। मैंने भगवान् चन्द्रशेखरकी शरण ग्रहण की है, तुम मेरा कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते।' काल बोला— 'ऐसा नहीं हो सकता।' तब मार्कण्डेयजीने भगवान् शंकरके लिङ्गको कसकर पकड़ लिया और कालको बहुत फटकारा। कालने क्रोधमें भरकर ज्यों ही उन्हें हठपूर्वक ग्रसना चाहा, त्यों ही महादेवजी उसी लिङ्गसे प्रकट हो गये और गर्जना करते हुए उन्होंने कालकी छातीमें लात मारी। मृत्यु देवता उनके चरणप्रहारसे पीडित होकर दूर जा पड़े। तब मार्कण्डेयजी उसी स्तोत्रसे‡ भगवान्की आराधना करने लगे। इस प्रकार भगवान् शंकरकी कृपासे उन्होंने कालपर भी विजय पाली और वे सदाके लिये अजर-अमर हो गये।
महामुनि मार्कण्डेय जी द्वारा की गयी यह स्तुति 'मृत्युञ्जय स्तोत्र' के नामसे प्रसिद्ध है। यह अमोघ फलदायी है। इससे भक्ति भाव पूर्वक आराधना करने पर भगवान् शंकर की कृपा से काल को भी जीता जा सकता है। उस स्तुति का एक पद यहाँ दिया जा रहा है—
रत्नसानुशरासनं रजताद्रिश्रृंगनिकेतनं
शिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युतानलसायकम्
क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदशालयैरभिवन्दितं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः
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🕉 हे शिव, हे शंकर, हे महादेव, हे शम्भो 🕉
🕉 कोटि - कोटि प्रणाम ! हर हर महादेव 🕉
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*लिपिड प्रोफाइल क्या है ?*
एक प्रसिद्ध डॉक्टर ने लिपिड प्रोफाइल को बहुत ही बेहतरीन ढंग से समझाया और अनोखे तरीके से समझाने वाली एक खूबसूरत कहानी साझा की।
कल्पना कीजिए कि हमारा शरीर एक छोटा-सा कस्बा है। इस कस्बे में सबसे बड़े उपद्रवी हैं - *कोलेस्ट्रॉल।*
इनके कुछ साथी भी हैं। इनका मुख्य अपराध में भागीदार है - *ट्राइग्लिसराइड।*
इनका काम है - गलियों में घूमते रहना, अफरा-तफरी मचाना और रास्तों को ब्लॉक करना।
*दिल* इस कस्बे का सिटी सेंटर है। सारी सड़कें दिल की ओर जाती हैं।
जब ये उपद्रवी बढ़ने लगते हैं तो आप समझ ही सकते हैं क्या होता है। ये दिल के काम में रुकावट डालने की कोशिश करते हैं।
लेकिन हमारे शरीर-कस्बे के पास एक पुलिस बल भी तैनात है -
*HDL*
वो अच्छा पुलिसवाला इन उपद्रवियों को पकड़कर जेल *(लिवर)* में डाल देता है।
फिर लिवर इनको शरीर से बाहर निकाल देता है – हमारे ड्रेनेज सिस्टम के ज़रिए।
लेकिन एक बुरा पुलिसवाला भी है - *LDL* जो सत्ता का भूखा है।
LDL इन उपद्रवियों को जेल से निकालकर फिर से सड़कों पर छोड़ देता है।
जब अच्छा पुलिसवाला *HDL* कम हो जाता है तो पूरा कस्बा अस्त-व्यस्त हो जाता है।
ऐसे कस्बे में कौन रहना चाहेगा?
क्या आप इन उपद्रवियों को कम करना और अच्छे पुलिसवालों की संख्या बढ़ाना चाहते हैं?
*चलना* शुरू कीजिए!
हर कदम के साथ *HDL* बढ़ेगा, और *कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड* और *LDL* जैसे उपद्रवी कम होंगे।
आपका शरीर (कस्बा) फिर से जीवंत हो उठेगा।
आपका दिल – सिटी सेंटर – उपद्रवियों की ब्लॉकेज *(हार्ट ब्लॉक)* से सुरक्षित रहेगा।
और जब दिल स्वस्थ होगा तो आप भी स्वस्थ रहेंगे।
इसलिए जब भी मौका मिले – चलना शुरू कीजिए!
*स्वस्थ रहें...* और
*अच्छे स्वास्थ्य* की कामना
*यह लेख HDL (अच्छा कोलेस्ट्रॉल) बढ़ाने और LDL (खराब कोलेस्ट्रॉल) कम करने का बेहतरीन तरीका बताता है यानी चलना।*
हर कदम HDL को बढ़ाता है।
इसलिए – *चलो, चलो और चलते रहो
यदि आपके मित्र हैं इस आयु सीमा में *(45-80 वर्ष)* कृपया उन्हें यह भेजें
#🌿आयुर्वेदिक नुस्खों पर चर्चा #💁🏻♀️घरेलू नुस्खे #🌿दादी नानी के नुस्खे
लौकी एक पौष्टिक सब्जी है जो कैलोरी में कम और फाइबर में उच्च होती है, जो इसे स्वस्थ आहार के लिए एक बढ़िया अतिरिक्त बनाती है। दिन में लौकी खाने के कुछ फायदे इस प्रकार हैं:
हाइड्रेशन को बढ़ावा देता है: लौकी में पानी की मात्रा अधिक होती है, जो आपको दिन के दौरान हाइड्रेटेड रखने में मदद कर सकती है।
पाचन में सहायक: लौकी आहार फाइबर से भरपूर होती है, जो पाचन में सुधार करने, कब्ज को रोकने और नियमित मल त्याग को बढ़ावा देने में मदद कर सकती है।
रक्तचाप कम करता है: लौकी में ऐसे यौगिक होते हैं जो रक्तचाप को कम करने में मदद करते हैं, जो हृदय रोग और स्ट्रोक के जोखिम को कम कर सकते हैं।
प्रतिरक्षा समारोह का समर्थन करता है: लौकी एंटीऑक्सिडेंट और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर होती है जो प्रतिरक्षा समारोह का समर्थन करने और पुरानी बीमारियों से बचाने में मदद कर सकती है।
वजन घटाने में मदद करता है: लौकी में कैलोरी कम और फाइबर अधिक होता है, जो कम कैलोरी का सेवन करते हुए आपको पूर्ण और संतुष्ट महसूस करने में मदद कर सकता है।
रक्त शर्करा को नियंत्रित करता है: लौकी में ऐसे यौगिक होते हैं जो रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं, जिससे यह मधुमेह वाले लोगों या स्थिति विकसित होने के जोखिम वाले लोगों के लिए एक अच्छा विकल्प बन जाता है।
कुल मिलाकर, अपने आहार में लौकी को शामिल करने से कई तरह के स्वास्थ्य लाभ मिल सकते हैं।
#लौकी
रात का भोजन: केवल पेट नहीं, तन-मन को भी देना चाहिए विश्राम!
“जैसा खाए अन्न, वैसा होए मन।”\
यह कहावत आयुर्वेद में केवल दिन के खाने पर नहीं, बल्कि रात्रि के आहार पर भी लागू होती है। रात का भोजन हल्का, सुपाच्य और शरीर को शांति देने वाला होना चाहिए, क्योंकि यह शरीर की मरम्मत, नींद की गुणवत्ता और अगले दिन की ऊर्जा को प्रभावित करता है।
आयुर्वेद कहता है — “रात्रौ भोजनं लघु भूयात्” अर्थात् रात को भोजन हमेशा हल्का होना चाहिए।
तो आइए जानते हैं वो 10 श्रेष्ठ आयुर्वेदिक आहार, जिन्हें रात में लेने से पाचन तंत्र ठीक रहता है, नींद बेहतर होती है और जीवनशैली रोगों से दूर रहती है।
🥗 1. मूंग की दाल – सुपाच्य और शांति देने वाली
मूंग की दाल आयुर्वेद में त्रिदोष नाशक मानी जाती है। यह हल्की, सुपाच्य और शाम के भोजन के लिए आदर्श होती है।
गुण: वात-पित्त-कफ संतुलित करती है, नींद को बढ़ावा देती है, पेट साफ रखती है।
👉 घरेलू सुझाव: मूंग की पतली खिचड़ी में देसी घी डालें और सेंधा नमक के साथ सेवन करें।
🍚 2. सादी खिचड़ी – रात्रि की उत्तम थाली
मूंग दाल और चावल की सादी खिचड़ी को आयुर्वेद रात्रि भोज में सर्वश्रेष्ठ मानता है। यह पचने में आसान होती है और अग्नि (डाइजेस्टिव फायर) को शांत करती है।
गुण: बुखार, अपच, कब्ज, तनाव और अनिद्रा में फायदेमंद।
🥛 3. गुनगुना दूध – निद्रा और शक्ति का सूत्र
आयुर्वेदिक ग्रंथों में गुनगुने दूध में केसर, हल्दी या जायफल मिलाकर सेवन करने की सलाह दी गई है।
गुण: वात और पित्त को शांत करता है, नींद गहरी करता है, मांसपेशियों की मरम्मत में सहायक।
👉 सावधानी: जिनको लैक्टोज इन्टॉलरेंस है, वे गाय का दूध या बकरी का दूध ले सकते हैं।
🍌 4. पकी हुई केले की सब्जी या उबला केला
कच्चा केला भारी होता है, लेकिन पका हुआ केला आयुर्वेदिक दृष्टि से वात नाशक और सुपाच्य होता है।
गुण: पाचन ठीक करता है, ऊर्जा देता है, नींद बढ़ाता है।
🥥 5. नारियल पानी या नारियल की गिरी
रात्रि भोजन के बाद थोड़ा-सा कच्चा नारियल या उसका पानी शरीर को ठंडक और हाइड्रेशन देता है।
गुण: पित्त को शांत करता है, त्वचा को साफ रखता है, अनिद्रा में लाभदायक।
🍠 6. उबली हुई शकरकंद
यह ऊर्जा देने वाला खाद्य है, जो गैस और अपच नहीं करता। इसमें फाइबर भरपूर होता है।
गुण: वात दोष शांत करता है, नींद में सहायक, पेट साफ करता है।
🍲 7. लौकी की सब्ज़ी – सबसे हल्की और शांतिदायक
लौकी को आयुर्वेद में “शीतल प्रकृति” का माना गया है, जो पेट को ठंडक देती है।
गुण: नींद को उत्तम बनाती है, पाचन सुधारती है, पेट के रोगों में लाभकारी।
🍽️ 8. रागी/नाचनी का दलिया
रात को रागी का दलिया लेना वात और पित्त दोष को शांत करता है। यह शरीर को ठंडक देता है और कब्ज से राहत दिलाता है।
गुण: हड्डियों को मज़बूत करता है, अनिद्रा में उपयोगी।
🧄 9. लहसुन तड़का वाली मूंग दाल/सब्ज़ी
लहसुन का सेवन रात को सीमित मात्रा में करें। यह अग्नि को बढ़ाता है और वात दोष को शांत करता है।
गुण: गैस, अपच और अनिद्रा में फायदेमंद।
🌿 10. त्रिफला का सेवन (सोने से पहले)
त्रिफला पाचन, लिवर और आंखों के लिए लाभकारी है। भोजन के बाद त्रिफला चूर्ण या टैबलेट गर्म पानी से लेना आयुर्वेद में रात्रिकालीन औषधीय भोजन माना गया है।
गुण: पेट साफ करता है, लीवर को डिटॉक्स करता है, नींद को बढ़ाता है।
🌕 विशेष आयुर्वेदिक सुझाव:
रात का भोजन सूर्यास्त के 2 घंटे के भीतर कर लेना चाहिए।
ज्यादा तैलीय, भारी और मसालेदार भोजन रात्रि में वर्जित है।
भोजन के तुरंत बाद सोना हानिकारक है – कम से कम 30 मिनट टहलना चाहिए।
रात को फ्रिज का ठंडा पानी, कोल्ड ड्रिंक या दही का सेवन वर्जित है।
🧘♂️ निष्कर्ष:
रात्रि भोजन का आयुर्वेदिक संतुलन केवल शरीर को पोषण नहीं देता, बल्कि आपके मन, नींद और अगले दिन की ऊर्जा को आकार देता है।
इसलिए अगली बार जब आप रात का खाना सोचें, तो केवल स्वाद नहीं, बल्कि शरीर की प्रकृति (वात, पित्त, कफ) और उसकी ज़रूरत को समझकर चुनाव करें।
#🌿दादी नानी के नुस्खे #🌿आयुर्वेदिक नुस्खों पर चर्चा #💁🏻♀️घरेलू नुस्खे
शिलाजीत
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शिलाजीत का स्वाद
शिलाजीत स्वाद में कसैल, गर्म और ज्यादा कडवा होता है। इसमें से गोमूत्र की तरह की गंध आती है।
शिलाजीत के प्रकार
यह चार प्रकार का होता है।
स्वर्ण।
रजत।
लौह और
ताम्र।
शिलाजीत के लाभ
यौन तकात
शिलाजीत का सबसे पहला और अहम फायदा यह है कि यह पुरूषों की यौन क्षमता को बढ़ाता है। साथ ही यह शीध्रपतन को भी रोकता है।
शिलाजीत वीर्य को भी बढ़ाता है। शिलाजीत का सेवन करते हुए आपको मिर्च मसाले, खटाई और अधिक नमक के सेवन से परहेज करना है।
स्वपनदोष की समस्या
शिलाजीत में केसर, लौहभस्म और अम्बर को मिलाकर सेवन करने से स्पनदोष ठीक हो जाता है। और पुरूष की इंद्री यौन इच्छा के लिए प्रबल हो जाती है। यह उपाय करते समय भी अधिक खटाई और मिर्च मसालों के सेवन से बचें।
तनाव की समस्या
शिलाजीत का सेवन करने से तनाव को पैदा करने वाले हार्मोन्स संतुलित हो जाते हैं जिससे इंसान को टेंशन की समस्या नहीं होती है।
ताकत
तुरंत उर्जा देता है शिलाजीत। इसमें अधिक मौजूद विटामिन और प्रोटीन की वजह से शरीर में उर्जा बढ़ जाती है।
हड्डियों के रोग में
शिलाजीत खाने से हड्डियों की मुख्य बीमारियां जैसे जोड़ों का दर्द और गठिया की समस्या दूर होने के साथ हड्डियां मजबूत बनती हैं।
ब्लडप्रेशर में
बल्डप्रेशर को सामान्य किया जा सकता है शिलाजीत के इस्तेमाल करने से। यह शरीर में खून को साफ करके नसों में रक्तसंचार को ठीक करता है।
बूढ़ा होने से बचाता है
उम्र बढ़ने के साथ ही चेहरे और शरीर की त्वचा झुर्रीदार होने लगती है। ऐसे में सफेद मसूली, अश्वगंधा और शिलाजीत को मिलाकर बनाई गई दवा शरीर को फिर से जवां बनाने का काम करती है।
डायबिटीज के रोग में
शिलाजीत मधुमेह से ग्रसित लोगों के लिए बेहद फायदेमंद औषधि है। एक चम्मच त्रिफला चूर्ण और एक चम्मच शहद को दो रत्ती शिलाजीत के साथ खाने से मधुमेह ठीक हो जाता है।
बढ़ाए दिमाग की क्षमता को
रोज एक चम्मच मक्खन के साथ शिलाजीत का सेवन करने से दिमाग की क्षमता बढ़ती है। शिलाजीत न केवल शरीर की ताकत को बढ़ाता है यह दिमाग को भी तेज करता है।
शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना
शरीर की कमजोरी दूर करना और बीमारियों से लड़ने में रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना शिलाजीत के सेवन से होता है। दूध के साथ शुबह शाम शिलाजीत को खाने से इंसान बीमार नहीं पड़ता है। जयभारत ।
■शिलाजीत के अधिक सेवन से बचना चाहिए। ■
#🌿आयुर्वेदिक नुस्खों पर चर्चा #🌿दादी नानी के नुस्खे #💁🏻♀️घरेलू नुस्खे
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सुबह को मूली मूल है, दोपहर को मूली धूल है, रात को मूली शूल है, ऐसा क्यों कहा जाता है....
सुबह को मूली गुणकारी है :
बेशक यह बात मूली खाने के फायदे को ध्यान में रखकर कही गयी है। उसकी प्रकृति ऐसी होती है कि इसे सुबह 12 बजे से पहले खाना सबसे ज्यादा लाभकारी होता है।
मूली खाने के फायदे-
भोजन पचाने में सहायक है। क्योंकि मूली में फाइबर उच्च मात्रा में उपस्थित होता है यह भोजन को आसानी से पचा देता है। पर्याप्त मात्रा में रोज सुबह मूली खाने से कब्ज जैसी बीमारी से बचा जा सकता है।
जुकाम और खाँसी में लाभकारी सर्दियों में नियमित रुप से इसे खाने से आप जुकाम और खाँसी से दूर रहेंगे क्योंकि इसमें म्यूकस और श्वासनली को साफ रखने का गुण पाया जाता है । बेहतर होगा आप सर्दी जुकाम की दवा ना लेकर, मूली खायें।
प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है मूली में विटामिन A, C, E, B6 , पोटैशियम और दूसरे खनिज होते हैं जो हमें विभिन्न रोगों से सुरक्षा प्रदान करता है।
रक्तसंचार को संतुलित रखता है मूली पोटेशियम का अच्छा स्रोत है इसलिये यह रक्तसंचार को दुरुस्त रखता है।
त्वचा के लिए सहायक फॉस्फोरस और जिंक की उपस्थिति त्वचा को मुलायम और नमी प्रदान करते हैं।
दोपहर को मूली स्वाद के लिए है :
इसका अर्थ यह है कि आप दोपहर में मूली खा सकते हैं जिसका कोई नुकसान या खास लाभ नहीं होगा।
रात को मूली नहीं खाना चाहिए
मूली को अगर रात में खाया जाये तो उसके बहुत सारे नुकसान हो सकते हैं।
मूली में फाइबर की मात्रा बहुत ज्यादा होती है यह पेट में बैठ जाता है और इसे पचने में काफी वक्त लगता है। इसलिये रात के वक्त यह सही से पच नहीं पाता। इसका असर सुबह तक रहता है।
#डॉ0_विजय_शंकर_मिश्र:।।













