laxmi
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।। महालक्ष्म्यष्टकम् ।। नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते। शंख चक्र गदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।१।। इन्द्र बोले- श्रीपीठ पर स्थित और देवताओं से पूजित होनेवाली हे महामाये। तुम्हें नमस्कार है। हाथ में शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाली हे महालक्ष्मि ! तुम्हें प्रणाम है। नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि। सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।२।। गरुड़पर आरूढ़ हो कोलासुर को भय देनेवाली और समस्त पापों को हरनेवाली हे भगवति महालक्ष्मि ! तुम्हें प्रणाम है। सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि। सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।३।। सब कुछ जाननेवाली, सबको वर देनेवाली, समस्त दुष्टों को भय देनेवाली और सबके दुःखों को दूर करनेवाली, हे देवि महालक्ष्मि ! तुम्हें नमस्कार है। सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि। मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।४।। सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देनेवाली हे मन्त्रपूत भगवति महालक्ष्मि ! तुम्हें सदा प्रणाम है। आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि। योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।५।। हे देवि ! हे आदि-अन्त-रहित आदिशक्ते ! हे महेश्वरि ! हे योग से प्रकट हुई भगवति महालक्ष्मि ! तुम्हें नमस्कार है। स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे। महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।६।। हे देवि ! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बड़े-बड़े पापों का नाश करनेवाली हो ! हे देवि महालक्ष्मि ! तुम्हें नमस्कार है। पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि। परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।७।। हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्मस्वरूपिणी देवि ! हे परमेश्वरि ! हे जगदम्ब ! हे महालक्ष्मि ! तुम्हें मेरा प्रणाम है। श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते। जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।८।। हे देवि ! तुम श्वेत वस्त्र धारण करनेवाली और नाना प्रकार के आभूषणों से विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत में व्याप्त एवं अखिल लोक को जन्म देनेवाली हो। हे महालक्ष्मि ! तुम्हें मेरा प्रणाम है। महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः। सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।।९।। जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर इस महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र का सदा पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राज्यवैभव को प्राप्त कर सकता है। एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्। द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः।।१०।। जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है, उसके बड़े-बड़े पापों का नाश हो जाता है। जो दो समय पाठ करता है, वह धन-धान्य से सम्पन्न होता है। त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्। महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।।११।। जो प्रतिदिन तीन काल पाठ करता है उसके महान् शत्रुओं का नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न होती है। ।। इति इन्द्रकृतं महालक्ष्म्यष्टकं सम्पूर्णम् ।। #mataji #🙏 મારી કુળદેવી માં #🙏ભક્તિ સ્ટેટ્સ #laxmi #👣 જય મેલડી માઁ
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।। षोडश महालक्ष्मी स्तोत्र ।। (हिन्दी अर्थ सहित) प्रस्तुत स्तोत्र में मां महालक्ष्मी के १६ रूपों में स्तुति की गई है- श्रीदेवी- ॐ ध्यायेत् सुवर्णवसनां त्रिभुवनजननीं पाशाङ्कुशमालाकमलधराम् बिल्ववननिवासिनीं पुरुषोत्तमपत्नीं कोटिसूर्यप्रभामयीम्। या विघ्नहरणीं सुखसौभाग्यप्रदां भक्तानां मंगलकरीं नमामि तां श्रीदेवीं परमेश्वरीं, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।। भावार्थ- ॐ- मैं ध्यान करता हूँ उस देवी का- जो सुवर्णवसनधारी हैं, त्रिभुवन की जननी हैं, पाश, अंकुश, माला और कमल धारण करती हैं। जो बिल्ववन में निवास करती हैं, पुरुषोत्तम भगवान की पत्नी हैं,।जिनकी आभा कोटि-कोटि सूर्य के समान है। जो सभी विघ्नों का नाश करने वाली हैं, भक्तों को सुख और सौभाग्य देने वाली हैं, मंगलमयी हैं। मैं उन परमेश्वरी श्रीदेवी को नमस्कार करता हूँ। हे माँ! कृपा करें, मेरी रक्षा करें। पद्मा देवी- ॐ ध्यायेत् पीताम्बरधरां चतुर्भुजां पद्मासनाṁ शोभिताम् इक्षुदण्डपुष्पबाणधरां चाभयवरमुद्रां विभूषिताम्। या त्रैलोक्यमोहिनीं सकलवसुधाभोगवरदां पराम् भक्तजनरक्षिणीं सदा विश्वरक्षिणीं नमामि तां पद्माम्।। भावार्थ- ॐ- मैं ध्यान करता हूँ उस पद्मा देवी का- जो पीताम्बर धारण करने वाली हैं, चार भुजाओं से अलंकृत हैं, कमलासन पर विराजमान हैं। वे अपने चारों हाथों में इक्षुदण्ड और पंचपुष्पबाण धारण करती हैं, साथ ही अभयमुद्रा और वरमुद्रा से शोभित हैं। वे त्रैलोक्य-मोहिनी हैं, सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली भोग-वरदा देवी हैं, भक्तों की सदैव रक्षा करने वाली हैं, और सम्पूर्ण विश्व की रक्षा करने वाली हैं। मैं उन पद्मा देवी को नमस्कार करता हूँ। हे माँ! कृपा करें, मेरी रक्षा करें। कमला देवी- ॐ ध्यायेत् रक्ताम्बरधरां त्रिनेत्रां रक्तकमलासनां शुभाम् द्वाभ्यां कमलधारिणीं, अन्याभ्यां अभयवरमुद्रां विभूषिताम्। या श्वेतगजराजचतुष्केणामृताभिषिक्तां मनोहराम् दारिद्र्यदुःखनाशिनीं सौभाग्यसमृद्धिप्रदां च ताम्।। नमामि जनार्दनपत्नीं कमलां देवीं परमेश्वरीं, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।। भावार्थ- ॐ- मैं ध्यान करता हूँ उस कमला देवी का- जो लाल वस्त्र धारण करती हैं, तीन नेत्रों वाली हैं, रक्तकमल पर विराजमान हैं, जिनके दो हाथों में खिले हुए कमल पुष्प हैं और अन्य दो हाथों से अभयमुद्रा और वरमुद्रा धारण किए हैं। जिनका चार श्वेत गजराज अमृत से अभिषेक कर रहे हैं, जो दारिद्र्य और दुःख का नाश करने वाली हैं, सौभाग्य और समृद्धि देने वाली हैं। मैं उन भगवान जनार्दन की पत्नी कमला देवी परमेश्वरी को नमस्कार करता हूँ। हे माँ! कृपा करें, मेरी रक्षा करें। अम्बुजा देवी- ॐ ध्यायेत् श्वेताम्बरां चतुर्भुजां शङ्खकमलधरां पराम्। दुखनिवारिणीं समृद्धिप्रदां शरणागतवत्सलाम्। नमामि अम्बुजां कष्टहन्त्रीं, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।। भावार्थ- सफेद वस्त्रधारी, चार भुजाओं वाली, शंख और कमल धारण करने वाली। दुख निवारक, समृद्धि देने वाली, शरणागतों के प्रति दयालु। मैं अम्बुजा देवी को नमस्कार करता हूँ, कष्टहन्त्री, कृपा करें, मेरी रक्षा करें। इन्दिरा देवी- ॐ ध्यायेत् शशिप्रभामिव श्वेताम्बरां श्वेतपद्मधरां मङ्गलप्रदाम्। भक्तपालिनी सौन्दर्यसम्पन्ना चन्द्रस्मितमुखी।। नमामि इन्दिरां जगतामिशीं, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।। भावार्थ- चंद्रमा के समान प्रभा वाली, श्वेत वस्त्रधारी, पद्मधारी। भक्तों की रक्षा करने वाली, सौंदर्य सम्पन्न, चंद्रस्मितमुखी। मैं इन्दिरा देवी को नमस्कार करता हूँ, जगतामाता, कृपा करें, मेरी रक्षा करें। हेमा देवी- ॐ ध्यायेत् सुवर्णप्रभायुक्तां तेजोमयीं वरदाभयहस्ताम्। भक्तपालिनीं रक्षां करुणानिधिं प्रदायिनीं।। नमामि हेमा देवीं जनानुग्रहकरिणीं, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।। भावार्थ- सुवर्णप्रभा वाली, तेजोमयी, वर और अभय देने वाली। भक्तों की रक्षा करने वाली, करुणानिधि। मैं हेमा देवी को नमस्कार करता हूँ, जनानुग्रह करने वाली, कृपा करें, मेरी रक्षा करें। रमा देवी- ॐ ध्यायेत् विष्णोः प्रियां रमां पीताम्बरधरां चतुर्भुजाम्। चक्राङ्कुशकमलाभयकरां गरुडवाहिनीं शुभाम्।। या शत्रुविनाशिनीं स्तम्भनकारिणीं शक्तिस्वरूपिणीं सर्वसिद्धिप्रदाम्। कमलकुञ्जनिवासिनीं रमां नमामि परमेश्वरीं, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।। भावार्थ- ॐ- मैं ध्यान करता हूँ उस रमा देवी का- जो विश्वपालक भगवान विष्णु की प्रिय पत्नी हैं, पीताम्बरधारी हैं, चार भुजाओं वाली हैं, चक्र, अंकुश, कमल और अभयमुद्रा धारण करती हैं, गरुड़वाहिनी हैं। जो शत्रु नाश करने वाली हैं, स्तम्भनकारी शक्ति स्वरूपा हैं, सभी सिद्धि देने वाली हैं। जो कमल कुंज में निवास करती हैं, मैं उन परमेश्वरी रमा देवी को नमस्कार करता हूँ। हे माँ! कृपा करें, मेरी रक्षा करें। हरिप्रिया (तुलसी देवी)- ॐ ध्यायेत् हरिप्रियां शालिग्रामशिलासंनिवासिनीं नीलाम्बरधरां द्विभुजाम्। अभयवरमुद्रां पावनरूपिणीं धर्मसत्यस्वरूपिणीम्।। या भक्तानां पापतापनाशिनी रोगशोकविनाशिनी। नमामि तुलसीतरुवासिनीं हरिवल्लभां प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।। भावार्थ- ॐ- मैं ध्यान करता हूँ उस हरिप्रिया देवी का- जो शालिग्राम-शिला रूपी परमात्मा के साथ निवास करती हैं, नील वस्त्र धारण करती हैं, जो द्विभुजा हैं, अभयमुद्रा और वरमुद्रा धारण करती हैं, जिनका रूप परम पावन है, जो धर्म और सत्य स्वरूपा हैं। जो भक्तों के पाप, ताप, रोग और शोक का निवारण करती हैं। मैं उन तुलसी-तरु वासिनी हरिप्रिया देवी को नमस्कार करता हूँ। हे श्रीहरि वल्लभा! मुझ पर प्रसन्न हों, मेरी रक्षा व पालन करें। नीलादेवी- ॐ ध्यायेत् नीलवसनां नीलकमलासनां, मालापुस्तकधरां पराम्। अज्ञाननाशिनीं मोक्षमार्गदायिनीं भक्तानां हृदयेश्वरम्।। नमामि नीलां अनुपमज्ञानप्रदाम्, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।। भावार्थ- नीलवस्त्रधारी, नीलकमल पर विराजमान, माला और पुस्तक धारण करने वाली। अज्ञान नाश करने वाली, मोक्षमार्ग देने वाली, भक्तों की हृदयेश्वर। मैं नीलादेवी को नमस्कार करता हूँ, अनुपम ज्ञान देने वाली, कृपा करें, मेरी रक्षा करें। कीर्ति लक्ष्मी- ॐ ध्यायेत् गौरवर्णां श्वेताम्बराङ्गीं पुस्तक-जपमालाधारिणीम्। यशःकीर्तिप्रदां सर्वलोकवन्दनीं भक्तसंप्रदायिनीम्।। नमामि कीर्तिलक्ष्मीं अव्ययां, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।। भावार्थ- गौरवर्ण, श्वेत वस्त्रधारी, पुस्तक और जपमाला धारण करने वाली। यश और कीर्ति देने वाली, सर्वलोकवन्दनी, भक्तों की संप्रदायिनी। मैं कीर्ति लक्ष्मी को नमस्कार करता हूँ, अव्ययी, कृपा करें, मेरी रक्षा करें। जया देवी- ॐ ध्यायेत् सुवर्णाभां पीतवसनां शङ्खकमलधराम्। विजयप्रदां भक्तपालिनीं लीलामयीं शुभाम्।। नमामि जयालक्ष्मीं सर्वमङ्गलकारिणीं प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।। भावार्थ- सुवर्णाभा, पीतवसनधारी, शंख और कमल धारण करने वाली। विजय देने वाली, भक्तों की रक्षा करने वाली, लीलामयी और शुभा। मैं जयालक्ष्मी को नमस्कार करता हूँ, सर्वमंगलकारिणी। कृपा करें, मेरी रक्षा करें। माया देवी- ॐ ध्यायेत् नीलाम्बरधरां मयान्वितां सुन्दरमुखीं चतुर्भुजाम्। कमलाङ्कुशखड्गढालधरां पापकर्मनाशिनीं मायामयीम्।। या योगमायया विश्वं मोहयति, प्रसन्ना भक्तान् मोहमुक्तान् कृत्वा आत्मज्ञानप्रदा। नमामि मायां लक्ष्मीं भक्तवत्सलां त्रैलोक्यजननीं, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।। भावार्थ- ॐ- मैं ध्यान करता हूँ उस माया देवी का- जो नीलवसन धारण करने वाली हैं, मोहिनी स्वरूपा, सुन्दर मुख वाली हैं, चार भुजाओं से युक्त हैं, कमल, अंकुश, खड्ग और ढाल धारण करने वाली हैं। जो पापकर्म का नाश करने वाली हैं, अपनी योगमाया से विश्व को मोह-माया में रखती हैं, और प्रसन्न होने पर भक्तों को मोह-माया से मुक्त करके आत्मज्ञान प्रदान करती हैं। मैं उन भक्तवत्सला, त्रैलोक्यजननी माया लक्ष्मी को नमस्कार करता हूँ। हे माँ! कृपा करें, मेरी रक्षा करें। वसुधा (भूदेवी)- ॐ ध्यायेत् हरिताम्बराम् भूमिं विश्वजननीं औषधान्नफलधन्यसमृद्धिदायिनीम्। भक्तपालिनीं जगतामातरं रक्षाकरुणाम्बुधाम्।। नमामि भूमिं मातरं जगताम्, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।। भावार्थ- हरिताम्बरधारी, भूमि, विश्वजननी, औषधि, अन्न, फल और धन्य समृद्धि देने वाली। भक्तों की रक्षा करने वाली, जगत की माता, करुणामयी। मैं वसुधा को नमस्कार करता हूँ, जगतमाता, कृपा करें, मेरी रक्षा करें। धनेश्वरी- सुवर्णवस्त्रसम्पन्नां सुवर्णकमलधारिणीम्। अभयमुद्रया युक्तां हेममुद्रान्वितां सुधीः।। सुवर्णकलशात् नित्यं मुद्रावृष्टिप्रवर्तिनीम्। धनेश्वरीं जगन्मातॄं भक्तवत्सलमान्यकाम्।। नमामि श्रीप्रभामाल्यां कृपया रक्ष मां सदा।। भावार्थ- मैं उस धनेश्वरी लक्ष्मी को नमस्कार करता हूँ- जो सुवर्णवस्त्रों से विभूषित हैं, जिनके दो हाथों में स्वर्णकमल शोभित हैं, अन्य हाथ में अभयमुद्रा है और दूसरे में स्वर्णमुद्राओं से भरा कलश है। उस कलश से निरंतर स्वर्णमुद्राओं की वर्षा होती रहती है। वे जगन्माता हैं, ऐश्वर्य देने वाली, करुणामयी और भक्तवत्सला हैं। हे जगतमाता आप सदैव मेरी रक्षा करें। अमृत-संजीवनी- ॐ ध्यायेत् अमृतसागरमध्ये विराजमानां सुवर्णाम्भोजपरिसंस्थिताम्। हस्ते अमृतकलशं धारयन्तीं दिव्यवनस्पतिसम्पन्नीं।। नमामि संजीवनीं प्राणदायिनीं, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।। भावार्थ- अमृतसागर में विराजमान, सुवर्ण कमल पर स्थित। हाथ में अमृतकलश धारण करने वाली, दिव्य वनस्पतियों से संपन्न। मैं संजीवनी को नमस्कार करता हूँ, प्राण देने वाली, कृपा करें, मेरी रक्षा करें। रासरासेश्वरी (राधिका)- ॐ ध्यायेत् आदिपुरुषगोविन्दपत्नीं अव्यक्तरूपिणीं नित्यगोलोकवृन्दावननिवासिनीम्। जीवब्रह्मसंयोगप्रतिपादिनीं दिव्यारासलीलाध्यक्षीं रासरासेश्वरीम्।। या आनन्देश्वरी प्रेमेश्वरी नीलाम्बरधरिणी करुणासिन्धुः प्रसन्नवदना। नमामि तां आदिप्रकृतिश्वरीं भगवतीं राधिकां शरणं प्रपद्ये, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।। भावार्थ- ॐ- मैं ध्यान करता हूँ उस देवी राधिका का- जो आदि पुरुष भगवान गोविन्द की पत्नी हैं, जो प्रकृति के कालचक्र से परे, अव्यक्त स्वरूप में, अपने नित्य धाम गोलोक वृन्दावन में विराजमान हैं। जो जीव और ब्रह्म के दिव्य मिलन की प्रतीक दिव्य रासलीला की अधिष्ठात्री हैं, जो रासरासेश्वरी, आनन्देश्वरी और प्रेमेश्वरी हैं। जो नीलाम्बरधारिणी, प्रसन्नवदना और करुणासिन्धु हैं। मैं उन आदि प्रकृतिश्वरी भगवती राधिका की शरण में हूँ। वह मुझ पर प्रसन्न हों, मेरा पालन करें। ।। श्री महालक्ष्म्यै नमः ।। #laxmi #jay ma laxmi #🙏ભગવાન વિષ્ણુ🌺 #🙏 મારી કુળદેવી માં #🙏હિન્દૂ દેવી-દેવતા🌺
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।। श्रीमहालक्ष्मी सिद्ध शाबर मन्त्र ।। विनियोग- ॐ अस्य श्री धन-प्रद महालक्ष्मी सिद्धशाबर मन्त्रस्य श्री विष्णु ऋषिः अनुष्टुप छन्दः श्रीमहालक्ष्मी देवता श्रीं बीजं ह्रीं शक्तिः क्लीं कीलकं मम सकल कामना सिद्धयर्थे जपे विनियोगः। पढ़ कर जल छोड़े। ऋष्यादिन्यास:। श्री विष्णु ऋषये नमः शिरसि। अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे। श्रीमहालक्ष्मी देवतायै नमः मुखे। श्रीं बीजाय नमः गुह्ये। ह्रीं शक्तये नमः पादयोः। क्लीं कीलकाय नमः नाभौ। मम सकल कामना सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः अञ्जलौ।। करन्यास:। श्रीं ह्रीं क्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः। श्रीं ह्रीं क्लीं तर्जनीभ्यां नमः। श्रीं ह्रीं क्लीं मध्यमाभ्यां नमः। श्रीं ह्रीं क्लीं अनामिकाभ्यां नमः। श्रीं ह्रीं क्लीं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। श्रीं ह्रीं क्लीं करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः।। हृदयादिन्यास:। श्रीं ह्रीं क्लीं हृदयाय नमः। श्रीं ह्रीं क्लीं शिरसे स्वाहा। श्रीं ह्रीं क्लीं शिखायै वषट्। श्रीं ह्रीं क्लीं कवचायै हुम्। श्रीं ह्रीं क्लीं नेत्र-त्रयाय वौषट्। श्रीं ह्रीं क्लीं अस्त्राय फट्। ध्यान- ॐ या सा पद्मासनस्था विपुल-कटि-तटिर्पद्म-पत्रायताक्षी, गम्भीरावर्त्त-नाभिः स्तन-भर-नमिता शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया। लक्ष्मीर्दिव्यैगजेन्द्रैर्मणि-गण-खचितै स्नापिता हेम-कुम्भैः, नित्यं सा पद्म-हस्ता मम वसतु गृहे सर्व-माङ्गल्य-युक्ता।। मन्त्र- ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन-पालिनी ! लक्ष्मि ! मम दारिद्रय नाशय नाशय प्रचुरं धनं मे देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ। विधि: १००० जप नित्य १० दिन तक करे | इसके बाद तद्दशांश हवन, तर्पण, मार्जन और ब्राह्मण- भोजन करे। हवन-सामग्री- खस, इन्द्र-यव, सफेद चन्दन, अगर, तगर, जटामांसी, छबीला, पञ्चमेवा, शक्कर और गौ-घृत। ।। श्रीमहालक्ष्म्यै नमः ।। #laxmi #jay laxmi ma #jay ma laxmi #🙏 મારી કુળદેવી માં #🙏ભગવાન વિષ્ણુ🌺
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श्रीसूक्त पाठ विधि 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 धन की कामना के लिए श्री सूक्त का पाठ अत्यन्त लाभकारी रहता है। (श्रीसूक्त के इस प्रयोग को हृदय अथवा आज्ञा चक्र में करने से सर्वोत्तम लाभ होगा, अन्यथा सामान्य पूजा प्रकरण से ही संपन्न करें .) प्राणायाम आचमन आदि कर आसन पूजन करें :- ॐ अस्य श्री आसन पूजन महामन्त्रस्य कूर्मो देवता मेरूपृष्ठ ऋषि पृथ्वी सुतलं छंद: आसन पूजने विनियोग: । विनियोग हेतु जल भूमि पर गिरा दें । पृथ्वी पर रोली से त्रिकोण का निर्माण कर इस मन्त्र से पंचोपचार पूजन करें – ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वं विष्णुनां धृता त्वां च धारय मां देवी पवित्रां कुरू च आसनं ।ॐ आधारशक्तये नम: । ॐ कूर्मासनायै नम: । ॐ पद्‌मासनायै नम: । ॐ सिद्धासनाय नम: । ॐ साध्य सिद्धसिद्धासनाय नम: । तदुपरांत गुरू गणपति गौरी पित्र व स्थान देवता आदि का स्मरण व पंचोपचार पूजन कर श्री चक्र के सम्मुख पुरुष सूक्त का एक बार पाठ करें । निम्न मन्त्रों से करन्यास करें :- 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं अंगुष्ठाभ्याम नमः । 2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा । 3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं मध्यमाभ्यां वष्‌ट । 4 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं अनामिकाभ्यां हुम्‌ । 5 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट । 6 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं करतल करपृष्ठाभ्यां फट्‌ । निम्न मन्त्रों से षड़ांग न्यास करें :- 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं हृदयाय नमः । 2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं शिरसे स्वाहा । 3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं शिखायै वष्‌ट । 4 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं कवचायै हुम्‌ । 5 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं नेत्रत्रयाय वौषट । 6 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं अस्त्राय फट्‌ । श्री पादुकां पूजयामि नमः बोलकर शंख के जल से अर्घ्य प्रदान करते रहें । श्री चक्र के बिन्दु चक्र में निम्न मन्त्रों से गुरू पूजन करें :- 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गुरू पादुकां पूजयामि नमः । 2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री परम गुरू पादुकां पूजयामि नमः । 3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री परात्पर गुरू पादुकां पूजयामि नमः । श्री चक्र महात्रिपुरसुन्दरी का ध्यान करके योनि मुद्रा का प्रदर्शन करते हुए पुन: इस मन्त्र से तीन बार पूजन करें :- ॐ श्री ललिता महात्रिपुर सुन्दरी श्री विद्या राज राजेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि नमः । अब श्रीसूक्त का विधिवत पाठ करें :- 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 ॐ हिरण्यवर्णा हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् । चन्द्रां हिरण्यमयींलक्ष्मींजातवेदो मऽआवह ।।1।। तांम आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्या हिरण्यं विन्देयंगामश्वं पुरुषानहम् ।।2।। अश्वपूर्वां रथमध्यांहस्तिनादप्रबोधिनीम् । श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवीजुषताम् ।।3।। कांसोस्मितां हिरण्यप्राकारामाद्रां ज्वलन्तींतृप्तां तर्पयन्तीम् । पद्मेस्थितांपद्मवर्णा तामिहोपह्वयेश्रियम् ।।4।। चन्द्रां प्रभासांयशसां ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवीजुष्टामुदाराम् । तांपद्मिनींमीं शरण प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतांत्वां वृणे ।।5।। आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः । तस्य फ़लानि तपसानुदन्तुमायान्तरा याश्चबाह्या अलक्ष्मीः ।।6।। उपैतु मां देवसखःकीर्तिश्चमणिना सह । प्रादुर्भूतोसुराष्ट्रेऽस्मिन्कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।। 7।। क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मींनाशयाम्यहम् । अभूतिमसमृद्धिं च सर्वा निर्णुद मे गृहात् ।।8।। गन्धद्वारांदुराधर्षां नित्यपुष्टांकरीषिणीम् । ईश्वरींसर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ।।9।। मनसः काममाकूतिं वाचःसत्यमशीमहि । पशुनांरुपमन्नस्य मयिश्रीःश्रयतांयशः ।।10।। कर्दमेन प्रजाभूता मयिसम्भवकर्दम । श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।।11।। आपःसृजन्तु स्निग्धानिचिक्लीतवस मे गृहे । नि च देवी मातरं श्रियं वासय मे कुले ।।12।। आर्द्रा पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्मालिनीम् । चन्द्रां हिरण्मयींलक्ष्मी जातवेदो मेंआवह ।।13।। आर्द्रा यःकरिणींयष्टिं सुवर्णा हेममालिनीम् । सूर्या हिरण्मयींलक्ष्मींजातवेदो म आवह ।।14।। तां मऽआवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वन्विन्देयं पुरुषानहम् ।।15।। यःशुचिः प्रयतोभूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् । सूक्तमं पंचदशर्च श्रीकामःसततं जपेत् ।।16।। 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 #Tirthyatraa #laxmi #🙏ભક્તિ સ્ટેટ્સ #🙏માઁ લક્ષ્મી સ્ટેટ્સ #🌺જય લક્ષ્મી માતા🌺 #
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