।। षोडश महालक्ष्मी स्तोत्र ।।
(हिन्दी अर्थ सहित)
प्रस्तुत स्तोत्र में मां महालक्ष्मी के १६ रूपों में स्तुति की गई है-
श्रीदेवी-
ॐ ध्यायेत् सुवर्णवसनां त्रिभुवनजननीं पाशाङ्कुशमालाकमलधराम्
बिल्ववननिवासिनीं पुरुषोत्तमपत्नीं कोटिसूर्यप्रभामयीम्।
या विघ्नहरणीं सुखसौभाग्यप्रदां भक्तानां मंगलकरीं
नमामि तां श्रीदेवीं परमेश्वरीं, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।।
भावार्थ-
ॐ- मैं ध्यान करता हूँ उस देवी का- जो सुवर्णवसनधारी हैं, त्रिभुवन की जननी हैं, पाश, अंकुश, माला और कमल धारण करती हैं। जो बिल्ववन में निवास करती हैं, पुरुषोत्तम भगवान की पत्नी हैं,।जिनकी आभा कोटि-कोटि सूर्य के समान है। जो सभी विघ्नों का नाश करने वाली हैं, भक्तों को सुख और सौभाग्य देने वाली हैं, मंगलमयी हैं। मैं उन परमेश्वरी श्रीदेवी को नमस्कार करता हूँ। हे माँ! कृपा करें, मेरी रक्षा करें।
पद्मा देवी-
ॐ ध्यायेत् पीताम्बरधरां चतुर्भुजां पद्मासनाṁ शोभिताम्
इक्षुदण्डपुष्पबाणधरां चाभयवरमुद्रां विभूषिताम्।
या त्रैलोक्यमोहिनीं सकलवसुधाभोगवरदां पराम्
भक्तजनरक्षिणीं सदा विश्वरक्षिणीं नमामि तां पद्माम्।।
भावार्थ-
ॐ- मैं ध्यान करता हूँ उस पद्मा देवी का- जो पीताम्बर धारण करने वाली हैं, चार भुजाओं से अलंकृत हैं, कमलासन पर विराजमान हैं। वे अपने चारों हाथों में इक्षुदण्ड और पंचपुष्पबाण धारण करती हैं, साथ ही अभयमुद्रा और वरमुद्रा से शोभित हैं। वे त्रैलोक्य-मोहिनी हैं, सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली भोग-वरदा देवी हैं, भक्तों की सदैव रक्षा करने वाली हैं, और सम्पूर्ण विश्व की रक्षा करने वाली हैं। मैं उन पद्मा देवी को नमस्कार करता हूँ। हे माँ! कृपा करें, मेरी रक्षा करें।
कमला देवी-
ॐ ध्यायेत् रक्ताम्बरधरां त्रिनेत्रां रक्तकमलासनां शुभाम्
द्वाभ्यां कमलधारिणीं, अन्याभ्यां अभयवरमुद्रां विभूषिताम्।
या श्वेतगजराजचतुष्केणामृताभिषिक्तां मनोहराम्
दारिद्र्यदुःखनाशिनीं सौभाग्यसमृद्धिप्रदां च ताम्।।
नमामि जनार्दनपत्नीं कमलां देवीं परमेश्वरीं, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।।
भावार्थ-
ॐ- मैं ध्यान करता हूँ उस कमला देवी का- जो लाल वस्त्र धारण करती हैं, तीन नेत्रों वाली हैं, रक्तकमल पर विराजमान हैं, जिनके दो हाथों में खिले हुए कमल पुष्प हैं और अन्य दो हाथों से अभयमुद्रा और वरमुद्रा धारण किए हैं। जिनका चार श्वेत गजराज अमृत से अभिषेक कर रहे हैं, जो दारिद्र्य और दुःख का नाश करने वाली हैं, सौभाग्य और समृद्धि देने वाली हैं। मैं उन भगवान जनार्दन की पत्नी कमला देवी परमेश्वरी को नमस्कार करता हूँ। हे माँ! कृपा करें, मेरी रक्षा करें।
अम्बुजा देवी-
ॐ ध्यायेत् श्वेताम्बरां चतुर्भुजां शङ्खकमलधरां पराम्।
दुखनिवारिणीं समृद्धिप्रदां शरणागतवत्सलाम्।
नमामि अम्बुजां कष्टहन्त्रीं, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।।
भावार्थ-
सफेद वस्त्रधारी, चार भुजाओं वाली, शंख और कमल धारण करने वाली। दुख निवारक, समृद्धि देने वाली, शरणागतों के प्रति दयालु। मैं अम्बुजा देवी को नमस्कार करता हूँ, कष्टहन्त्री, कृपा करें, मेरी रक्षा करें।
इन्दिरा देवी-
ॐ ध्यायेत् शशिप्रभामिव श्वेताम्बरां श्वेतपद्मधरां मङ्गलप्रदाम्।
भक्तपालिनी सौन्दर्यसम्पन्ना चन्द्रस्मितमुखी।।
नमामि इन्दिरां जगतामिशीं, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।।
भावार्थ-
चंद्रमा के समान प्रभा वाली, श्वेत वस्त्रधारी, पद्मधारी। भक्तों की रक्षा करने वाली, सौंदर्य सम्पन्न, चंद्रस्मितमुखी। मैं इन्दिरा देवी को नमस्कार करता हूँ, जगतामाता, कृपा करें, मेरी रक्षा करें।
हेमा देवी-
ॐ ध्यायेत् सुवर्णप्रभायुक्तां तेजोमयीं वरदाभयहस्ताम्।
भक्तपालिनीं रक्षां करुणानिधिं प्रदायिनीं।।
नमामि हेमा देवीं जनानुग्रहकरिणीं, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।।
भावार्थ-
सुवर्णप्रभा वाली, तेजोमयी, वर और अभय देने वाली। भक्तों की रक्षा करने वाली, करुणानिधि। मैं हेमा देवी को नमस्कार करता हूँ, जनानुग्रह करने वाली, कृपा करें, मेरी रक्षा करें।
रमा देवी-
ॐ ध्यायेत् विष्णोः प्रियां रमां पीताम्बरधरां चतुर्भुजाम्।
चक्राङ्कुशकमलाभयकरां गरुडवाहिनीं शुभाम्।।
या शत्रुविनाशिनीं स्तम्भनकारिणीं शक्तिस्वरूपिणीं सर्वसिद्धिप्रदाम्।
कमलकुञ्जनिवासिनीं रमां नमामि परमेश्वरीं, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।।
भावार्थ-
ॐ- मैं ध्यान करता हूँ उस रमा देवी का- जो विश्वपालक भगवान विष्णु की प्रिय पत्नी हैं, पीताम्बरधारी हैं, चार भुजाओं वाली हैं, चक्र, अंकुश, कमल और अभयमुद्रा धारण करती हैं, गरुड़वाहिनी हैं। जो शत्रु नाश करने वाली हैं,
स्तम्भनकारी शक्ति स्वरूपा हैं, सभी सिद्धि देने वाली हैं। जो कमल कुंज में निवास करती हैं, मैं उन परमेश्वरी रमा देवी को नमस्कार करता हूँ। हे माँ! कृपा करें, मेरी रक्षा करें।
हरिप्रिया (तुलसी देवी)-
ॐ ध्यायेत् हरिप्रियां शालिग्रामशिलासंनिवासिनीं नीलाम्बरधरां द्विभुजाम्।
अभयवरमुद्रां पावनरूपिणीं धर्मसत्यस्वरूपिणीम्।।
या भक्तानां पापतापनाशिनी रोगशोकविनाशिनी।
नमामि तुलसीतरुवासिनीं हरिवल्लभां प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।।
भावार्थ-
ॐ- मैं ध्यान करता हूँ उस हरिप्रिया देवी का- जो शालिग्राम-शिला रूपी परमात्मा के साथ निवास करती हैं, नील वस्त्र धारण करती हैं, जो द्विभुजा हैं, अभयमुद्रा और वरमुद्रा धारण करती हैं, जिनका रूप परम पावन है, जो धर्म और सत्य स्वरूपा हैं। जो भक्तों के पाप, ताप, रोग और शोक का निवारण करती हैं। मैं उन तुलसी-तरु वासिनी हरिप्रिया देवी को नमस्कार करता हूँ। हे श्रीहरि वल्लभा! मुझ पर प्रसन्न हों, मेरी रक्षा व पालन करें।
नीलादेवी-
ॐ ध्यायेत् नीलवसनां नीलकमलासनां, मालापुस्तकधरां पराम्।
अज्ञाननाशिनीं मोक्षमार्गदायिनीं भक्तानां हृदयेश्वरम्।।
नमामि नीलां अनुपमज्ञानप्रदाम्, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।।
भावार्थ-
नीलवस्त्रधारी, नीलकमल पर विराजमान, माला और पुस्तक धारण करने वाली। अज्ञान नाश करने वाली, मोक्षमार्ग देने वाली, भक्तों की हृदयेश्वर। मैं नीलादेवी को नमस्कार करता हूँ, अनुपम ज्ञान देने वाली, कृपा करें, मेरी रक्षा करें।
कीर्ति लक्ष्मी-
ॐ ध्यायेत् गौरवर्णां श्वेताम्बराङ्गीं पुस्तक-जपमालाधारिणीम्।
यशःकीर्तिप्रदां सर्वलोकवन्दनीं भक्तसंप्रदायिनीम्।।
नमामि कीर्तिलक्ष्मीं अव्ययां, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।।
भावार्थ-
गौरवर्ण, श्वेत वस्त्रधारी, पुस्तक और जपमाला धारण करने वाली। यश और कीर्ति देने वाली, सर्वलोकवन्दनी, भक्तों की संप्रदायिनी। मैं कीर्ति लक्ष्मी को नमस्कार करता हूँ, अव्ययी, कृपा करें, मेरी रक्षा करें।
जया देवी-
ॐ ध्यायेत् सुवर्णाभां पीतवसनां शङ्खकमलधराम्।
विजयप्रदां भक्तपालिनीं लीलामयीं शुभाम्।।
नमामि जयालक्ष्मीं सर्वमङ्गलकारिणीं प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।।
भावार्थ-
सुवर्णाभा, पीतवसनधारी, शंख और कमल धारण करने वाली। विजय देने वाली, भक्तों की रक्षा करने वाली, लीलामयी और शुभा। मैं जयालक्ष्मी को नमस्कार करता हूँ, सर्वमंगलकारिणी। कृपा करें, मेरी रक्षा करें।
माया देवी-
ॐ ध्यायेत् नीलाम्बरधरां मयान्वितां सुन्दरमुखीं चतुर्भुजाम्।
कमलाङ्कुशखड्गढालधरां पापकर्मनाशिनीं मायामयीम्।।
या योगमायया विश्वं मोहयति, प्रसन्ना भक्तान् मोहमुक्तान् कृत्वा आत्मज्ञानप्रदा।
नमामि मायां लक्ष्मीं भक्तवत्सलां त्रैलोक्यजननीं, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।।
भावार्थ-
ॐ- मैं ध्यान करता हूँ उस माया देवी का- जो नीलवसन धारण करने वाली हैं, मोहिनी स्वरूपा, सुन्दर मुख वाली हैं, चार भुजाओं से युक्त हैं, कमल, अंकुश, खड्ग और ढाल धारण करने वाली हैं। जो पापकर्म का नाश करने वाली हैं, अपनी योगमाया से विश्व को मोह-माया में रखती हैं, और प्रसन्न होने पर भक्तों को मोह-माया से मुक्त करके आत्मज्ञान प्रदान करती हैं। मैं उन भक्तवत्सला, त्रैलोक्यजननी माया लक्ष्मी को नमस्कार करता हूँ। हे माँ! कृपा करें, मेरी रक्षा करें।
वसुधा (भूदेवी)-
ॐ ध्यायेत् हरिताम्बराम् भूमिं विश्वजननीं औषधान्नफलधन्यसमृद्धिदायिनीम्।
भक्तपालिनीं जगतामातरं रक्षाकरुणाम्बुधाम्।।
नमामि भूमिं मातरं जगताम्, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।।
भावार्थ-
हरिताम्बरधारी, भूमि, विश्वजननी, औषधि, अन्न, फल और धन्य समृद्धि देने वाली। भक्तों की रक्षा करने वाली, जगत की माता, करुणामयी। मैं वसुधा को नमस्कार करता हूँ, जगतमाता, कृपा करें, मेरी रक्षा करें।
धनेश्वरी-
सुवर्णवस्त्रसम्पन्नां सुवर्णकमलधारिणीम्।
अभयमुद्रया युक्तां हेममुद्रान्वितां सुधीः।।
सुवर्णकलशात् नित्यं मुद्रावृष्टिप्रवर्तिनीम्।
धनेश्वरीं जगन्मातॄं भक्तवत्सलमान्यकाम्।।
नमामि श्रीप्रभामाल्यां कृपया रक्ष मां सदा।।
भावार्थ-
मैं उस धनेश्वरी लक्ष्मी को नमस्कार करता हूँ- जो सुवर्णवस्त्रों से विभूषित हैं, जिनके दो हाथों में स्वर्णकमल शोभित हैं, अन्य हाथ में अभयमुद्रा है और दूसरे में स्वर्णमुद्राओं से भरा कलश है। उस कलश से निरंतर स्वर्णमुद्राओं की वर्षा होती रहती है। वे जगन्माता हैं, ऐश्वर्य देने वाली, करुणामयी और भक्तवत्सला हैं। हे जगतमाता आप सदैव मेरी रक्षा करें।
अमृत-संजीवनी-
ॐ ध्यायेत् अमृतसागरमध्ये विराजमानां सुवर्णाम्भोजपरिसंस्थिताम्।
हस्ते अमृतकलशं धारयन्तीं दिव्यवनस्पतिसम्पन्नीं।।
नमामि संजीवनीं प्राणदायिनीं, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।।
भावार्थ-
अमृतसागर में विराजमान, सुवर्ण कमल पर स्थित। हाथ में अमृतकलश धारण करने वाली, दिव्य वनस्पतियों से संपन्न। मैं संजीवनी को नमस्कार करता हूँ, प्राण देने वाली, कृपा करें, मेरी रक्षा करें।
रासरासेश्वरी (राधिका)-
ॐ ध्यायेत् आदिपुरुषगोविन्दपत्नीं अव्यक्तरूपिणीं नित्यगोलोकवृन्दावननिवासिनीम्।
जीवब्रह्मसंयोगप्रतिपादिनीं दिव्यारासलीलाध्यक्षीं रासरासेश्वरीम्।।
या आनन्देश्वरी प्रेमेश्वरी नीलाम्बरधरिणी करुणासिन्धुः प्रसन्नवदना।
नमामि तां आदिप्रकृतिश्वरीं भगवतीं राधिकां शरणं प्रपद्ये, प्रसीद प्रसीद मम पालनं कुरु।।
भावार्थ-
ॐ- मैं ध्यान करता हूँ उस देवी राधिका का- जो आदि पुरुष भगवान गोविन्द की पत्नी हैं, जो प्रकृति के कालचक्र से परे, अव्यक्त स्वरूप में, अपने नित्य धाम गोलोक वृन्दावन में विराजमान हैं। जो जीव और ब्रह्म के दिव्य मिलन की प्रतीक दिव्य रासलीला की अधिष्ठात्री हैं, जो रासरासेश्वरी, आनन्देश्वरी और प्रेमेश्वरी हैं। जो नीलाम्बरधारिणी, प्रसन्नवदना और करुणासिन्धु हैं। मैं उन आदि प्रकृतिश्वरी भगवती राधिका की शरण में हूँ। वह मुझ पर प्रसन्न हों, मेरा पालन करें।
।। श्री महालक्ष्म्यै नमः ।।
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