🔥 जय माँ लक्ष्मी — माँ जिन्होंने समृद्धि, सौंदर्य और आध्यात्मिक लक्ष्यों का रूप धारण किया; वे ऋग्वेद के प्राचीन संदर्भों में श्री के रूप में मिलती हैं और समुन्द्रमंथन से उत्पन्न होने की पौराणिक कथा उन्हें देवी-सभ्यता का प्रतीक बनाती है। मैं यह मानता/मानती हूँ कि उनके प्रतीक—कमल पर विराजना (कमल का अर्थ: किसी भी परिस्थिति में शुद्धता और आत्म-ज्ञान का विकास) और चार भुजाएँ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का संकेत)—धार्मिक रूपक होने के साथ-साथ मनोविज्ञान और समाजशास्त्र की नजर से भी समझने योग्य हैं: उदाहरण के लिए नियमित पूजा और संस्कार लोगों में अनुशासन, आशा और सामुदायिक सहयोग बढ़ाते हैं, जबकि केवल धन की लालसा को लक्ष्मी-वंदना से जोड़ना धर्म की मूल सिखावनाओं के विरुद्ध है। आश्चर्यजनक तथ्य: प्राचीन सिक्कों और पुजारियों की मूर्तियों पर 'गजा लक्ष्मी' के रूप में उन्हें हाथियों के साथ दर्शाया गया है—यह ऐतिहासिक रूप से भी उनकी सार्वभौमिकता और राजसी वैभव का सबूत है। एक प्रेरक बात (कोट): "वह धन नहीं है जो सुख देता है—वह दृष्टि है जो धन को शुभ बनाती है;" यही संदेश हमें लक्ष्मी की संस्कृति से मिलता है—भक्ति के साथ विवेक और सामाजिक उत्तरदायित्व आवश्यक हैं। अगला सच: लोक-आधार पर गाये जाने वाले आरती-पाठ आज भी जीवित हैं और त्योहारों (जैसे दिवाली, वरलक्ष्मी व्रत) के दौरान समुदायों को जोड़ते हैं — इसलिए परंपरा को समझना और अंधविश्वास से अलग करना जरूरी है। 幸运 (luck) की चाह में अगर धर्म को केवल आर्थिक लक्ष्य तक सीमित किया जाए तो वह मूल教義 से दूर हो जाता है — इसलिए सूझ-बूझ, नैतिकता और साझा भलाई को अपनाना ही सच्ची वंदना है। 🙏✨🌺 #जयमालक्ष्मी #Lakshmi #GajaLakshmi #SamudraManthan #दिवाली #धर्म_और_अर्थ
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