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#🖋ग़ालिब की शायरी
🖋ग़ालिब की शायरी - वो शख़्स मेरी रग रग से वाक़िफ 5776,1 कि उसी रग पर हाथ रखता है जो बहुत है, | दुखती 1 वो शख़्स मेरी रग रग से वाक़िफ 5776,1 कि उसी रग पर हाथ रखता है जो बहुत है, | दुखती 1 - ShareChat
#📖 कविता और कोट्स✒️
📖 कविता और कोट्स✒️ - चाय और राय हर जगह सही नही मिलती!! चाय और राय हर जगह सही नही मिलती!! - ShareChat
#📖 कविता और कोट्स✒️
📖 कविता और कोट्स✒️ - शौक की कीमत और जिद के अंजाम नहीं देखे जाते . SardarArunsingh शौक की कीमत और जिद के अंजाम नहीं देखे जाते . SardarArunsingh - ShareChat
#📖 कविता और कोट्स✒️
📖 कविता और कोट्स✒️ - दूरी है लंबी मगर मंज़िल का यकीन है आज़माइश सख्त है मगर वो भी तो रहीम है ao Ctahwood दूरी है लंबी मगर मंज़िल का यकीन है आज़माइश सख्त है मगर वो भी तो रहीम है ao Ctahwood - ShareChat
#गुलज़ार शायरी
गुलज़ार शायरी - उन जख्मों को भरने में वक्त लग ही जाता है , जिनमें अपनों की मेहरबानियां शामिल हो। अभ्युदय साहित्य गुलज़ार उन जख्मों को भरने में वक्त लग ही जाता है , जिनमें अपनों की मेहरबानियां शामिल हो। अभ्युदय साहित्य गुलज़ार - ShareChat
#गुलज़ार शायरी
गुलज़ार शायरी - कौन कहता है कि दूरियां किलोमीटरों में नापी जाती है खुद से मिलने में भी उम्र गुज़र जाती है गुलज़ार कौन कहता है कि दूरियां किलोमीटरों में नापी जाती है खुद से मिलने में भी उम्र गुज़र जाती है गुलज़ार - ShareChat
#📖 कविता और कोट्स✒️
📖 कविता और कोट्स✒️ - < ज़हन में सोचों का हजूम है, और कहने को ज़बान पर लफ्ज़ भी नहीं, < ज़हन में सोचों का हजूम है, और कहने को ज़बान पर लफ्ज़ भी नहीं, - ShareChat
#गुलज़ार शायरी
गुलज़ार शायरी - अ ~Iட7- স ঢুপা লীনিত खामोशी की तह उलझनें क्योंकि , शोर कभी मुश्किलें आसान नहीं करता अभ्युदय साहित्य गुलज़ार अ ~Iட7- স ঢুপা লীনিত खामोशी की तह उलझनें क्योंकि , शोर कभी मुश्किलें आसान नहीं करता अभ्युदय साहित्य गुलज़ार - ShareChat
#🖋ग़ालिब की शायरी
🖋ग़ालिब की शायरी - इससे पहले के कोई और उड़ा ले जाए जिसके हाथों से गिरे हैं वो उठा ले जाए इन दिनों देख मेरी जान मेरी आँखों में इतना पानी है के सब ख़ाब बहा ले जाए 42 के बिखरे हैं सो इसकी मर्ज़ी शाख़ ख़ुश्क़ पत्तों को जिधऱ चाहे हवा ले जाए इससे पहले के कोई और उड़ा ले जाए जिसके हाथों से गिरे हैं वो उठा ले जाए इन दिनों देख मेरी जान मेरी आँखों में इतना पानी है के सब ख़ाब बहा ले जाए 42 के बिखरे हैं सो इसकी मर्ज़ी शाख़ ख़ुश्क़ पत्तों को जिधऱ चाहे हवा ले जाए - ShareChat
#🖋ग़ालिब की शायरी
🖋ग़ालिब की शायरी - एक ही काफ़ी था बंया तजुर्बा ` लिए। करने के 2 मेंने देखा ही नहीं इश्क दुबारा करके, I!| एक ही काफ़ी था बंया तजुर्बा ` लिए। करने के 2 मेंने देखा ही नहीं इश्क दुबारा करके, I!| - ShareChat