Kiran Gosavi
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#ओम श्री नवनाथाय नमः #गोरक्षनाथ वाणी #!! ओम चैतन्य मच्छिन्द्रनाथाय नमः !! #ओम चैतन्य कानिफनाथाय नमः #ओम शिवगोरक्ष
#गुरु_गौरक्षनाथजी__गोरखा_और__नेपालराष्ट्र
नेपाल देश मे #गुरु_गौरक्षनाथजी_महाराज #राजा_नरेंद्रदेव_मल्ल के शासन काल में नेपाल स्थित #मृगस्थली पर पधारे ( #मृगस्थली जहा #भगवान_शिव और #माता_पार्वती मृग रूप में विहार करते थे और पशुओ में रहने के कारण #पशुपतिनाथ नाम से पूजित हुए...)
नेपाल के राजा #नरेन्द्रदेव_मल्ल #शैव_धर्मावलंबियों पर अत्याचार ढाने लगे जब #गौरक्षनाथ जी नेपाल पधारे तो उनका यथावत सन्मान न कर राजा ने और उसकी प्रजा ने #गुरु_गौरक्षनाथजी का अपमान किया...गुरुगौरक्षनाथ जी #वाग्मती नदी के तट पर #सिद्धाचल_मृगस्थली में #96_करोड़_मेघमालाओं को #नाग_स्वरुप कर अपने आसन के नीचे दबाकर बैठ गए और राजा को दंडित करने हेतु 12 वर्ष तक #अखंड_सिद्ध_समाधि लगाई फलस्वरूप 12 वर्ष का दुर्भिक्ष सुखा पड़ा वर्षा रुक गई...
मृग स्थली स्थली पुण्यः भालं नेपाल मंडले ।।
यत्र गोरक्ष नाथेन मेघ माला सनी कृता ।।
राजा नरेन्द्रदेव ने #बुद्धदत नामक #बौध_भिक्षु के परामर्श से #महायोगी_मत्स्येन्द्रनाथजी महाराज को आग्रह कर आसाम के कामरूप पीठ से लाये और उनकी शोभा यात्रा निकाली_____यह सोच की एक मात्र #गुरु_मत्स्येन्द्रनाथ जी ही अपने #शिष्य को मना सकते है__जब गुरुदेव मत्स्येन्द्र नाथ जी की यात्रा गौरक्षनाथजी के सम्मुख आई तो #गुरुदेव के सम्मान में #गौरक्षनाथ जी ने प्रणाम किया जिससे उनका बायां घुटना कुछ हिल जाने से कुछ #मेघमालायें (नाग रूप मेघ) मुक्त हो गए____फलतः वर्षा हुई और दुर्भिक्ष समाप्त हुआ___उसी समय से #मृगस्थली_स्थान #नाथ_संप्रदाय और #गोरखा_राजवंश के लिए पूज्य सिद्धपीठ हो गया___इस उपकार की यादगार में #मत्स्येन्द्रनाथ जी की यात्रा #नेपाल में #प्रतिवर्ष निकाली जाती है...
नेपाल की राजकीय मुद्रा (सिक्के) पर श्री श्री श्री गोरखनाथ अंकित है___नेपाल का गोरखा जिले का नाम भी भी गुरु गोरखनाथ के नाम पर ही पड़ा जहां श्रीनाथ जी ने साधना की थी गुरु गोरखनाथ सबसे पहले यहीं दिखे थे___यहां एक गुफा है जहां गोरखनाथ का #पग_चिह्न (पादुका) है और उनकी एक मूर्ति भी है यहां हर साल #वैशाख_पूर्णिमा को एक उत्सव मनाया जाता है जिसे रोट महोत्सव कहते हैं और यहां मेला भी लगता है...गुरु गोरखनाथजी के नाम से ही नेपाल के गोरखाओं ने नाम पाया...
नेपाल के शाह राजवंश के संस्थापक महाराज पृथ्वीनारायण शाह को गोरक्षनाथक की कृपा से ऐसी शक्ति मिली थी जिसके बल पर उन्हें खंड-खंड में विभाजित नेपाल को एकजुट कर अखंड नेपाल राष्ट्र की स्थापना में सफलता मिली तभी से नेपाल की राजमुद्रा पर " श्री श्री श्री गौरखनाथ " नाम और राजमुकुटों में उनकी चरणपादुका का चिह्न अंकित है...
यह शिव गौरक्षनाथजी की ही कृपा रही है की वर्तमान समय तक नेपाल किसी भी विदेशी अक्रांताओ का गुलाम नहीं बना इसी कारण यहाँ कोई स्वतंत्रता दिवस नही मानते...
ॐ
अलख निरंजन
ॐ नमो पारवती पतये नम:
हे व्योमकेश आपको नमन हरो सकल उर पीर
नीलकंठ त्रिपुरारि प्रभु सतत भरो उर धीर
हे नाथ आप ही का सदा आसरा
༺꧁#हर_हर_महादेव꧂༻
आदेश।। आदेश।। जय श्रीमहाकाल।। ॐशिवगौरक्ष।।
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